कट्टरता घटी, संपन्नता बढ़ी (prosperity and link with social harmony)

#Nabharat_times

धर्म की तेज होती जकड़बंदी वाले इस दौर में एक स्टडी रिपोर्ट ने नितांत नए निष्कर्ष के साथ सबका ध्यान खींचा है। अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ‘साइंस एडवांसेज’ में छपी इस खास स्टडी रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि जो समाज या देश जितना धर्मनिरपेक्ष होता है, वहां आर्थिक विकास की गति उतनी तेज होती है।
सौ अलग-अलग देशों में पिछली पूरी एक शताब्दी (1900 से 2000) के दौरान समाज में प्रचलित मूल्यों और वहां चली आर्थिक विकास प्रक्रिया के अध्ययन पर आधारित इस रिपोर्ट के मुताबिक यह मान्यता ठीक नहीं है कि आर्थिक विकास से धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्य मजबूत होते हैं। वास्तव में प्रक्रिया इसके उलट चलती है। धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्य मजबूत होने पर समाज में संपन्नता आती है

Ø  रिपोर्ट बताती है कि दोनों में प्रत्यक्ष कार्य-कारण संबंध तो नहीं मिले, लेकिन जैसे-जैसे समाज में सहिष्णुता आती है, वैसे-वैसे आर्थिक गतिविधियों में आबादी के ज्यादा से ज्यादा हिस्से की सहज सहभागिता बढ़ती है। यह सहिष्णुता धर्म तक सीमित नहीं है।

Ø  वैयक्तिक अधिकारों को मान्यता देने वाले मूल्यों के साथ भी यही बात है। जिन समाजों में समलैंगिक संबंध, महिला स्वतंत्रता, विवाह, तलाक आदि मसलों पर जितना उदार रुख प्रचलित होता है वहां आर्थिक विकास की प्रक्रिया भी उतनी ही सहज गति से आगे बढ़ती है।

Ø  इस अनूठी स्टडी में पाया गया कि धर्मनिरपेक्षता की मजबूती के साथ किसी देश में प्रति व्यक्ति जीडीपी में 10 वर्षों में 1000 डॉलर, 20 वर्षों में 2800 डॉलर तो 30 वर्षों में 5000 डॉलर इजाफा होता है। यह स्टडी उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो मानते हैं कि समाज में फैल रही खास धर्म या जाति की श्रेष्ठता की भावना का देश के विकास से कोई मतलब नहीं होता और ये दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।

आज विश्व के एक बड़े हिस्से में इस्लाम का झंडा बुलंद करने के नाम पर जो खौफनाक अभियान चलाया जा रहा है, उसके खतरे सबके सामने हैं। ज्यादा खतरनाक बात यह है कि इसकी प्रतिक्रिया में अन्य धर्मों में भी अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने की होड़ दिखने लगी है। यह होड़ जारी रही तो 20वीं सदी ने श्रेष्ठ और उदार मूल्यों के सहारे दुनिया को जो संपन्नता दी है, 21वीं सदी पूरी निर्ममता से उसे स्वाहा भी कर सकती है

 

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