देश में लगभग दो करोड़ 10 लाख बेटियां ऐसी हैं जिन्हें उनके माता-पिता जन्म नहीं देना चाहते थे. यानी उनके माता-पिता को चाहत तो बेटे की थी लेकिन उसकी जगह अनचाही बेटियों का जन्म होता गया. देश में पहली बार अपनी तरह का यह आकलन सामने आया है. वह भी सरकारी स्रोत से.
वित्त वर्ष 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण में यह आकलन शामिल किया गया है. और इसके लिए अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर सीमा जयचंद्रन के अध्ययन और शोध पत्रों को आधार बनाया गया है.
सीमा इस यूनिवर्सिटी में विकास अर्थशास्त्री हैं. उनके शोध पत्र 2017 में प्रकाशित किए गए हैं. शोध पत्रों के अनुसार भारत में 0 से 25 साल तक की जितनी बेटियां हैं उनमें अधिकांश ‘सन मेटा प्रिफ़रेंस’ का नतीज़ा हैं.