विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली में विशिष्ट फेलो प्रोफेसर अमिताभ कुंडू के एक शोध पत्र ‘मोबिलिटी इन इंडिया, रिसेंट ट्रेंड्स ऐंड इश्यूज कंसर्निंग डेटाबेस’ में कहा गया है कि भारत के भीतर एक जगह छोड़कर दूसरी जगह जाने वाली महिलाओं की तादाद पुरुषों से भी ज्यादा तेजी से बढ़ रही है।
इस पत्र में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण खोज यह है कि :
· अब भी महिलाओं के स्थान परिवर्तन में शादी की अहम भूमिका है
· लेकिन रोजगार, कारोबार और शिक्षा जैसे आर्थिक कारण भी अहम बनते जा रहे हैं। इस पत्र में वृहद स्तर के संकेतकों का हवाला दिया गया है, जो इसकी पुष्टि करते हैं।
· प्रोफेसर कुंडू के पत्र में कहा गया है, ‘चौथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण दर्शाता है कि 18 साल की उम्र से पहले शादी करने वाली 20 से 24 वर्ष की महिलाओं का प्रतिशत 2015-16 में घटकर केवल 27 रह गया है, जो वर्ष 2005-06 में 47 था। इसके अलावा सर्वेक्षण के समय तक मां बन चुकीं या गर्भवती 15 से 19 वर्ष की महिलाओं का प्रतिशत घटकर 8 रह गया है, जो 2005-06 में 16 प्रतिशत था।’
महिलाओं के स्थान परिवर्तन में शादी पर निर्भरता कम होने की नई हकीकत एक अच्छी खबर है। लेकिन यह रुझान तभी बरकरार रह सकता है, जब केंद्र और राज्य सरकार दोनों श्रम पलायन कानून एवं नीतियां बनाने में लैंगिक संवेदनशील एवं अधिकार आधारित रुख अपनाती हैं। यह तस्वीर अब भी पूरी तरह उजली नहीं हैं। इसके चलते ही अब भी भारत उन उभरते बाजारों और विकासशील देशों में से एक है, जहां महिला श्रमबल की भागीदारी दर सबसे कम है। यह दर काम करने योग्य उम्र की महिला आबादी के मुकाबले काम कर रहीं या काम करने की इच्छुक महिलाओं का प्रतिशत है। यह राष्ट्रीय स्तर पर करीब 33 फीसदी है। भारत के महिला श्रमबल की भागीदारी दर करीब 50 फीसदी के वैश्विक औसत और करीब 63 फीसदी के पूर्वी एशिया के औसत से बहुत कम है।
इसकी एक वजह यह है कि देश में आंतरिक स्थान परिवर्तन की नीतियों में लैंगिक नजरिया नदारद है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इसमें लैंगिक हिंसा एक अहम मुद्दा है क्योंकि इन महिलाओं के एजेंटों और ठेकेदारों के हाथों यौन शोषण और दुव्र्यवहार का शिकार होने का जोखिम होता है। स्थान परिवर्तन करने वाली, विशेष रूप से निचले स्तर के अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर भेदभाव किया जाता है। स्थान परिवर्तन करने वाली महिलाओं की संख्या स्थायी नौकरियों में कम और वे ज्यादातर खुद का काम-धंधा करती हैं। हालांकि उन्हें स्थान परिवर्तन करने वाले पुरुषों की तुलना में कम मेहनताना दिया जाता है और उन्हें मातृत्व अवकाश एवं अन्य सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं। ऐसी महिलाओं को उचित स्वच्छता नहीं मिलती है, लेकिन महिलाओं और लड़कियों को महिलाओं के व्यक्तिगत स्वच्छता मसलों के कलंक की पीड़ा मौन रूप से सहन करनी पड़ती है
Kerala model for social security
केरल ने एक ऐसा मॉडल बनाया है, जिससे अन्य राज्य प्रेरणा ले सकते हैं। इसने दूसरे राज्यों से आने वाले कामगारों के लिए एक मुफ्त स्वास्थ्य एवं बीमा योजना शुरू की है। इस योजना को ‘आवाज’ नाम दिया गया है। इसमें राज्य में काम करने वाला कोई भी 18 से 60 साल का दूसरी जगह का कामगार 15,000 रुपये तक के मुफ्त इलाज और आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में 2 लाख रुपये के बीमा का हकदार है। उन्हें इलाज सभी सरकारी अस्पतालों और योजना से जुड़े निजी अस्पतालों में मिलेगा।
दूसरा बड़ा मुद्दा महिला-पुरुष के आधार पर पारिश्रमिक में अंतर है और यह केवल निचले स्तर के नौकरियों तक ही सीमित नहीं है। लेकिन कंपनियों का कहना है कि वेतन में ऐसा लैंगिक अंतर काम और परिवार की जिम्मेदारियों को एक साथ निभाने से है। महिलाएं अपने परिवार के लिए नौकरी से लंबा अवकाश लेती हैं और इसलिए उनके करियर में लंबे अंतराल होते हैं। जब वे रोजगार बाजार में फिर से लौटती हैं, तब तक बहुत देर हो गई होती है। इस बात के सबूत हैं कि जब महिलाएं अनुभव एïवं करियर का मध्यम स्तर हासिल कर लेती हैं, तब उनके स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोडऩे की दर पुरुषों की तुलना में दोगुनी या तिगुनी होती है।
दरअसल भारत में महिलाएं जूनियर से मध्यम स्तर के पदों पर सबसे ज्यादा नौकरी छोड़ती हैं। इससे इतर बहुत से अन्य एशियाई देशों में महिलाएं मध्यम से वरिष्ठ पदों पर नौकरी छोड़ती हैं। इससे उच्च पदों के लिए कर्मचारियों की तादाद घटती है। आंकड़े ये भी दर्शाते हैं कि घर पर बच्चे की देखभाल के लिए कोई व्यवस्था न हो पाने के कारण करीब एक-तिहाई महिला कर्मचारी फिर से नौकरी पर आती ही नहीं हैं। महिलाओं के स्थान परिवर्तन के बेहतर आंकड़ों के बावजूद करीब 80 फीसदी योग्य महिला स्नातक संगठित कार्यबल में शामिल नहीं होती हैं
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