अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, 15 वर्ष से 24 वर्ष की महिलाओं के लिए यह अनुपात 1994 में जहां 35.8 प्रतिशत था, वहीं यह गिरते हुए 2012 तक 20.2 प्रतिशत पर पहुंच गया और उसके बाद भी लगातार इसमें कमी आती ही जा रही है. दूसरे सिरे पर देखें, तो स्वीडन जैसे देश में यह अनुपात 88 प्रतिशत की ऊंचाई का स्पर्श कर रहा है. काबिलेगौर यह भी है कि भारत में यह गिरावट महिलाओं के भिन्न-भिन्न उम्रवर्गों के साथ ही पूरे महिला श्रमबल में भी सामने आयी है.
Why this is surprising
- वर्ष 2004 के बाद का काल उच्च आर्थिक विकास का था, जिसमें बड़े पैमाने पर रोजगारों का सृजन हुआ. इसलिए इस अवधि में महिलाओं की भागीदारी दर बढ़नी चाहिए थी.
- मनरेगा के अंतर्गत सृजित रोजगारों में महिलाओं की भागीदारी लगभग 50 प्रतिशत रही है, अतः इससे भी यह अनुपात ऊंचा होना चाहिए था. पर आश्चर्यजनक रूप से, इन दो शक्तिशाली कारकों के बावजूद यह दर लगातार कम होती चली गयी.
- कम उम्रवर्ग की महिलाओं के लिए इस दर में गिरावट को तो इस आधार पर स्वाभाविक ठहराया जा सकता है कि इस दौरान स्कूलों-कॉलेजों में लड़कियों की उपस्थिति काफी बढ़ी है, जिसने उन्हें श्रमबल से बाहर कर दिया है.
Looking into the answer
- भारत में एक और विडंबना सामने आयी है कि जब महिलाओं की आय बढ़ती है, तब वे श्रमबल से बाहर हो जाती हैं. सोनाल्दे देसाई तथा अन्य द्वारा संपन्न एक शोधपत्र में इन शोधकर्ताओं ने बताया है कि जब महिलाएं अधिक शिक्षा और कौशल हासिल करती हैं, तो उनकी संभावित आय अर्जन क्षमता भी ऊंची उठती है.
- इसलिए वे कम वक्त में कम काम के साथ अधिक जीविकोपार्जन करती हैं. इससे वे अवकाश तथा गृहकार्य में ज्यादा वक्त देने लगती हैं, जो उनकी भागीदारी में कमी ला देता है. शिक्षित महिलाओं की शादी भी उच्च आयवर्ग परिवारों में होती है और यह भी इसकी एक वजह बनती है.
- इसके अतिरिक्त, शिक्षित महिलाओं के उपयुक्त रोजगार की कम उपलब्धता भी एक गंभीर बाधा है. मिसाल के लिए लिपिकीय तथा विक्रय कार्यों में स्थित अंतर्निहित लैंगिक अलगाव भी महिलाओं की भागीदारी में कमी के लिए जिम्मेदार है. बांग्लादेश के परिधान उद्योग का 90 प्रतिशत महिलाओं द्वारा ही संचालित है, जिसमें वे तीनों शिफ्ट में काम करती हैं.
- नतीजा है कि उसका परिधान निर्यात भारत से अधिक है. इंडोनेशिया के वस्त्र उद्योग की कताई मिलों में महिलाएं ज्यादा हैं. थाईलैंड में बड़ी संख्या में महिला टैक्सी ड्राइवर हैं. पर अपने देश में ऐसी स्थितियों की कल्पना अभी दूर की कौड़ी है.
- महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की चुनौती के सार्वजनिक नीति, श्रम कानून, सांस्कृतिक तथा सामाजिक परिपाटी से संबद्ध आयाम हैं, जिन्हें संबोधित करना होगा. पर समाज तथा अर्थव्यवस्था के लिए इस दर में वृद्धि के साथ ही लैंगिक वेतन विषमता दूर किये जाने के दूरगामी सुपरिणाम होंगे. भारत में इस दर में वृद्धि लाने को सार्वजनिक नीति के केंद्र में लाया ही जाना चाहिए.