- बाल विकास सुधारों की रफ्तार बढ़ाने की दरकार
- दुनियाभर में करीब 70 करोड़ बच्चे बचपन का अनुभव लेने या इसके खत्म होने से पहले ही वयस्क हो जाते हैं। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन- सेव दी चाइल्ड ने अपनी 2019 की रिपोर्ट जारी की है। संगठन ने विश्व बैंक, यूनेस्को, वैश्विक आबादी के लिए संयुक्त राष्ट्र के अन्य कार्यालयों, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि से आंकड़े जुटाए हैं। इसने देश भर बच्चों की स्थिति को लेकर बहस छेड़ दी है।
- समय से पहले बचपन खत्म होने के आकलन के मापदंड में आठ संकेतक शामिल हैं। ये संकेतक पांच साल से पहले मृत्युु (प्रति 1,000 जीवित जन्म), कुपोषण से कम लंबाई (0 से 59 महीनों के बच्चों का प्रतिशत), प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा से वंचित होना (5 से 17 साल की आयु के बच्चों का प्रतिशत), बाल श्रमिकों के वयस्कों के काम करना (5 से 17 साल की आयु का प्रतिशत), प्रति 1,000 लड़कियों पर विवाहित लड़कियां या किशोरावस्था मां बनना (दोनों 15 से 19 वर्ष की लड़कियों के लिए) और हिंसा से विस्थापन या नरसंहार के शिकार (0 से 19 वर्ष की आयु में प्रति एक लाख पर मृत्यु) हैं।
- हम भारत के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए आठ तुलना करने लायक देशों का इस्तेमाल करते हैं। इसके लिए हमने दो सवाल रखे हैं- 1. वर्तमान स्कोर क्या है? 2. स्कोर में कितना सुधार हुआ है? सारणी 1 कुछ अच्छी खबरों से शुरू होती है। अधिकतम 1,000 के स्कोर में भारत का 2019 में स्कोर 769 रहा। यह बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान से अधिक था, लेकिन चीन, ब्राजील, इंडोनेशिया और श्रीलंका से कम था। केवल चीन और श्रीलंका का स्कोर ही 900 से अधिक रहा। इस स्कोर के निर्धारण को व्यापक रूप में देखने की जरूरत है। आठ संकेतकों में से हरेक को अलग-अलग तरीके से मापा गया है, इसलिए इसे 'सामान्य' बनाया जाना चाहिए या इसका एक मापक तय किया जाना चाहिए।
- इस तरह एक सामान्यीकृत संकेतक मूल्य एक्सएन (एक्स - एल)/(एच - एल) के बराबर है। यहां एक्स किसी देश का उस संकेतक2 के लिए वास्तविक मूल्य है, एल (सबसे खराब) सभी देशों में संकेतक के लिए सबसे ज्यादा देखे जाने वाला मूल्य है और एच (सबसे बेहतर) सूचकांक के लिए सबसे कम देखे जाने वाला मूल्य है। किसी देश के कुल स्कोर का आकलन सभी आठ संकेतकों के एक्सएन को जोड़कर, इस योग को आठ से विभाजित कर और फिर 1,000 से गुणा करके किया जाता है ताकि आंकड़े 0 से 1000 के बीच प्राप्त हों।
- भारत का वर्तमान स्कोर वर्ष 2000-2019 के दौरान 137 अंकों के सुधार को दर्शाता है, जो 632 से बढ़कर 769 पर पहुंच गया। यह सुधार बांग्लादेश और नेपाल के सुधार से कम रहा। हालांकि वे भारत के स्कोर तक नहीं पहुंच पाए। चीन और श्रीलंका का स्कोर पहले ही काफी ऊपर है, इसलिए वे निस्संदेह बहुत अधिक सुधार दर्ज नहीं कर पाए। ब्राजील का सुधार भी तुलनात्मक रूप से कम रहा। इंडोनेशिया और पाकिस्तान में भी सुधार कमजोर रहा। विभिन्न देशों को मिले इन स्कोरों से उन्हें क्रमबद्ध किया जा सकता है। वर्ष 2019 के लिए भारत की रैंकिंग 176 देशों में 113वीं रही।
- सारणी 2 पूरी तस्वीर को चुनिंदा संकेतक घटकों में तोड़ती है। इस तरह भारत में 2015-2017 के दौरान बाल मृत्यु की दर में गिरावट दर्ज की गई, जो नमूने में शामिल अन्य देशों के समान थी। लेकिन लंबी अवधि 2011-18 के दौरान भारत गंभीर कुपोषण (कम लंबाई) को कम करने में कोई सुधार दर्ज नहीं कर सका, जबकि इस पैमाने पर श्रीलंका और पाकिस्तान में हालात और बिगड़े हैं। विशेष रूप से श्रीलंका में हालात बदतर होना आश्चर्यजनक है। साफ तौर पर स्कूल न जाने वाले बच्चों का भारत का संकेतक 2011 से 2018 के दौरान बदतर हुआ है। यह इसलिए बहुत चिंताजनक है क्योंकि इस स्तर पर नमूने में शामिल हर देश और वैश्विक औसत में सुधार आया है।
- सारणी 3 उस चीज पर केंद्रित है, जिसे मैं 'बाल-वयस्क' संकेतक कहना चाहूंगा। भारत में बाल श्रम को घटाने में कोई सुधार नहीं हुआ। बांग्लादेश और इंडोनेशिया में भी बाल श्रम को घटाने के स्तर पर कोई प्रगति नहीं हुई। हालांकि ब्राजील और श्रीलंका ने सुधार दर्ज किया है।
- भारत ने 2011-18 के दौरान चीज क्षेत्र में शानदार प्रगति की है, वह बाल विवाह है। हालांकि अन्य देशों की तस्वीर मिलीजुली है। इस स्तर पर बांग्लादेश और श्रीलंका में सुधार हुआ है। इस मामले में चीन और पूर्ववत स्तर पर हैं। हालांकि चीन इस पैमाने पर पहले ही काफी ऊपर है। वहीं नेपाल, पाकिस्तान और ब्राजील में बाल विवाह के पैमाने पर हालात बदतर हुए हैं। वास्तव में ब्राजील की इस पैमाने पर स्थिति खराब होना आश्चर्यजनक है। संभïवतया यह गलती की वजह से हो सकता है। किशोरावस्था में मां बनने के पैमाने पर भारत का 2016 का स्कोर चीन और श्रीलंका को छोड़कर नमूने में शामिल अन्य देशों से काफी बेहतर रहा है। भारत की यह उपलब्धि गौर करने लायक है।
- अंतिम संकेतक बाल मृत्यु दर से संबंधित है। भारत इस पैमाने पर चीन और श्रीलंका के ठीक पीछे है। यह गरीबी के बावजूद अच्छा स्कोर है। इस स्तर पर ब्राजील की हालत काफी खराब है। कुल मिलाकर भारत बच्चों की स्थिति सुधारने में प्रगति कर रहा है, लेकिन कुछ संकेतक स्थिर बने हुए हैं। भारत को अपनी वैश्विक रैंकिंग सुधारने के लिए तेजी से सुधार लाना होगा। एक अन्य निष्कर्ष यह है कि हिंसाग्रस्त क्षेत्र के रूप में ब्राजील की छवि सही साबित होती नजर आती है। मैं फिर इस बात पर जोर दूंगा कि शुद्ध आर्थिक संकेतक तब तक निरर्थक हैं, जब तक उनमें सामाजिक-आर्थिक संकेतकों को शामिल नहीं किया जाता है। यह भारत से अधिक प्रासंगिक और कहीं नहीं हो सकता।