Current Context
बीते समय में देश के अलग-अलग हिस्सों से दलितों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं सामने आती रही हैं. इस तरह अपनी जाति की श्रेष्ठता जताने की कोशिश करने वाले उपद्रवी तत्व सीधे-सीधे देश के कानून के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं. दलितों के खिलाफ हिंसा करने वालों में से ज्यादातर बहुत अच्छे से जानते हैं कि वे संविधान के तहत नागरिकों को मिले बराबरी के अधिकार का उल्लंघन कर रहे हैं और उन पर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून जैसे सख्त कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है. इसके बावजूद ये लोग अपनी इस हरकत का प्रचार करना चाहते हैं और वीडियो भी बनाते हैं.
- पिछले हफ्ते ऐसे ही दो वीडियो चर्चा में आए थे. इनमें से एक वीडियो महाराष्ट्र का है. इसमें दलित समुदाय के दो बच्चों की पिटाई की जा रही है और इन्हें नंगा करके घुमाया जा रहा है क्योंकि ये दोनों गांव के कुएं पर नहा रहे थे.
- दूसरा वीडियो गुजरात का है. इसमें 13 साल के एक किशोर के साथ मारपीट के दृश्य हैं. इस लड़के को इसलिए पीटा गया था क्योंकि वह ‘क्षत्रियों’ जैसे कपड़े पहने हुए था.
Why VIDEOS
- जातिवादी दबंग जानबूझकर इन बर्बर घटनाओं का वीडियो बनाते हैं ताकि दलितों को और अपमानित किया जा सके. इस तरह ये लोग यह भी चाहते हैं कि दलितों को सार्वजनिक स्थानों पर बराबरी के अधिकार का दावा करने से हतोत्साहित किया जाए. हालांकि लगता नहीं कि दलित इन घटनाओं से हतोत्साहित हो रहे हैं. वहीं जिग्नेश मेवाणी और चंद्रशेखर आजाद ‘रावण’ जैसे युवा दलित नेताओं का उभार बताता है कि ये समुदाय अब किसी टकराव से पीछे हटने को भी तैयार नहीं हैं.
- दलित समुदाय के ज्यादा से ज्यादा लोग आज आधुनिकता को स्वीकार कर रहे हैं और इस तरह अतीत की अपनी जातिगत सामाजिक स्थिति से बाहर निकलने में जुटे हैं. वहीं दूसरी तरफ इसमें कोई दोराय नहीं है कि अपनी जातिगत श्रेष्ठता से भरे ऊंची जातियों के लोग दलितों के खिलाफ आज इस मोर्चे पर एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं.
Social Consciousness should come in Society
आज राजनीति में ध्रुवीकरण चरम पर है, लेकिन दिलचस्प बात है कि सभी पार्टियां जातिगत उत्पीड़न की निंदा करती हैं. यह राजनीतिक चेतना समाज में भी आनी चाहिए. साथ ही इसका असर प्रशासन, खासकर पुलिसकर्मियों में दिखना चाहिए क्योंकि जमीनी स्तर पर सबसे पहले पुलिस को ही ऐसे अपराधों से निपटना होता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बीते दिनों में ‘न्यू इंडिया’ के अपने विज़न के साथ जातिवाद-संप्रदायवाद रहित सोच को समाज में आगे बढ़ाने की बात कहते रहे हैं. हालांकि इस बीच भाजपा के दलित सांसद ‘सबका साथ, सबका विकास’ नारे के असफल होने की बात करते रहे हैं.
कुल मिलाकर दलित उत्पीड़न की घटनाओं में कमी आए और वे बंद हों, इसके लिए मजबूत बुनियाद पर मुकदमे दर्ज होने और तेजी से सुनवाई की जरूरत है. इसके अलावा न्यू इंडिया में ज्यादा से ज्यादा आर्थिक अवसरों की जरूरत है ताकि इससे जातिगत संरचनाएं टूटें और विभिन्न वर्गों के बीच समानता स्थापित हो.