महिला-पुरुष अंतर को पाटने के लिए तय करना होगा लंबा सफर

Recent Global Summit in Hyderabad shows women's power but the path to this equality is long and concerted efforts are required.
#Business_Standard


वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन अपने मुख्य विषय- ‘महिलाएं सबसे पहले, सभी के लिए समृद्धि’ पर खरा उतरा है। इस सम्मेलन में आमंत्रित 1,500 उद्यमियों में महिलाओं की तादाद पुरुषों से अधिक थी। हर किसी ने बहुत से वादे किए और सफलता की बहुत सी कहानियां साझा की गईं। ऐसा होना बहुत उत्साहवर्धक है क्योंकि ऐसे सम्मेलन उद्यमियों के सामने आने वाली दिक्कतों के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद करते हैं।


लेकिन सम्मेलन का असली माहौल इवांका ट्रंप ने बनाया, जिन्होंने महिलाओं की ताकत की प्रशंसा करते हुए उनकी वास्तविक तस्वीर पेश की। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देशों में स्त्री-पुरुष समानता के लिए कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को सुधारने की जरूरत है, लेकिन खुद अमेरिका भी इस समस्या से जूझ रहा है। अमेरिका में केवल 13 फीसदी इंजीनियर और 24 फीसदी कंप्यूटर विज्ञान पेशेवर महिलाएं हैं।
India and women Entrepreneur 


    नैशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के मुताबिक भारत में केवल 14 फीसदी व्यवसायों को महिला उद्यमी चला रही हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर छोटे कारोबार हैं, लेकिन 80 फीसदी उनके खुद के पैसे से चल रहे हैं। 
    वर्ष 2015 में वैश्विक उद्यमिता एवं विकास संस्थान ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें उसका महिला उद्यमिता सूचकांक पेश किया गया था। इस सूचकांक में देशों को उन स्थितियों के आधार पर क्रम (रैंकिंग) दिया गया था, जो महिला उद्यमिता के विकास की संभावनाएं बढ़ाएंगी। इस सूचकांक में भारत पैंदे के आसपास था, जिसे 77 देशों की सूची में 70वां स्थान मिला था। वर्ष 2017 में मास्टरकार्ड ने महिला उद्यमिता का अपना सूचकांक जारी किया, जिसमें 54 देशों की सूची में भारत 49वें पायदान पर था।
    मैकिंजी की रिपोर्ट में पाया गया है कि पूरे विश्व की कामकाजी आबादी में 50 फीसदी हिस्सेदारी होने के बावजूद महिलाओं का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान 37 फीसदी ही है। लेकिन यह वैश्विक औसत भौगोलिक क्षेत्रों में भारी अंतर को ढक देता है। उदाहरण के लिए भारत के जीडीपी में महिलाओं का हिस्सा महज 17 फीसदी है। 


Causes of this Gender gap


इस लैंगिक खाई की वजह कई हैं। 
    कार्यस्थल पर महिला-पुरुष भेदभाव और महिलाओं को कौशल मुहैया कराने के लिए कमजोर बुनियादी ढांचे के अलावा खुद महिलाओं में भी अपनी क्षमताओं को लेकर जागरूकता की कमी है।
     इसमें सामाजिक बेडिय़ां भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। बहुत सी महिलाओं को अपना कारोबार शुरू करने से पहले अपने नजदीकी लोगों के विरोध का सामना करना पड़ता है। 
    अन्य लोगों का कहना है कि भारत में बहुत सी महिलाएं कुछ अवसरों को भुनाने की क्षमता नहीं रखती हैं क्योंकि उनके पास व्यावहारिक कुशलता नहीं होती है। उदाहरण के लिए वे अपना कारोबारी मॉडल निवेशकों के सामने नहीं रख पाती हैं। हालांकि ऐसा होना संभव है क्योंकि अगर वे किसी एक ऐसे परिवार से नहीं आई हैं, जिसका अपना कारोबार है या उन्होंने किसी उद्यम में काम नहीं किया है तो महिला उद्यमियों का कोई रोल मॉडल नहीं होगा और उनके पास कारोबार को शुरू करने, चलाने और बड़ा बनाने का कोई ज्ञान नहीं होगा। 


Solution

  • इस कमी को परामर्श कार्यक्रम पूरा कर सकता है। इसके अलावा बहुत से अध्ययनों में यह पाया गया है कि उभरते बाजारों में महिलाओं को ऋण लेने में पुरुषों से ज्यादा दिक्कत झेलनी पड़ती है और उन्हें अपने धन पर निर्भर रहना पड़ता है। विकासशील देशों में महिलाओं के स्वामित्व वाले लघु एवं मझोले कारोबारों में से 70 फीसदी को पूंजी नहीं मिल पाती है।
  • इसी वजह से आईएफसी जैसे संगठन आगे आए हैं। भारत में सभी सूक्ष्म ऋणों में से करीब आधे आईएफसी से जुड़े सूक्ष्म वित्त संस्थानों द्वारा मुहैया कराए जाते हैं और कर्ज लेने वाले उनके 4 करोड़ ग्राहकों में से ज्यादातर महिलाएं हैं। इसके अलावा आठ लघु वित्त बैंक आईएफसी के साझेदार हैं और उससे निवेश हासिल करते हैं। उनमें से सभी सूक्ष्म वित्त मॉडल की तरह कर्ज लेने वाली महिला ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
  • भारत में आईएफसी ने वितरकों के रूप में महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सौर उत्पादों का बाजार तैयार किया है। देश में 40 करो लोगों को बिजली की उपलब्धता नहीं है। आईएफसी ने स्वच्छ ऊर्जा उत्पाद कंपनी फ्रंटियर मार्केट्स के साथ करार किया है ताकि स्व-सहायता समूहों से नियुक्त की गईं स्व-रोजगार महिलाओं का एक नेटवर्क विकसित किया जा सके। ये महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे समूह पैसा और तकनीक मुहैया कराते हैं ताकि गांवों की महिलाएं अपने जीवन स्तर में सुधार ला सकें और खुद का काम-धंधा शुरू कर सकें।
  • वर्ष 2016 में नेटवर्क में महज 250 महिलाएं शामिल थीं, जबकि 2020 तक महिला वितरकों की संख्या बढ़कर 20,000 होने की संभावना है। अगर भारत महिलाओं की कम वेतन और कम कौशल वाले रोजगार पर निर्भरता खत्म करना चाहता है तो उसे ऐसे कई कदम उठाने होंगे। दरअसल भारत में कनिष्ठ से मध्यम स्तर के पदों पर महिलाओं की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। यह रुझान अन्य एशियाई देशों से अलग है, जहां मध्यम से वरिष्ठ स्तर के पदों पर महिलाओं की संख्या तेजी से घट रही है। आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि करीब एक-तिहाई महिला कर्मचारी बच्चे की परवरिश के लिए घर से मदद न मिलने के कारण फिर से नौकरी शुरू नहीं कर पाईं। करीब 80 फीसदी योग्य महिला स्नातक संगठित कार्यबल में शामिल नहीं होने या अपना कारोबार शुरू करने का फैसला ही नहीं लेती हैं

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