यौन प्रताडऩा के मामलों से निपटने की कवायद

 If India is found wanting, it is not for the lack of courage. There are strong sociological and cultural reasons why women are deterred from registering a complaint. This article discusses why no or less number of cases are registered


#Business_Standard
आखिरकार ‘मी टू’ अभियान के चलते एक राजनेता को अमेरिकी सीनेट के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। रॉय मूर अल्बामा सीनेट सीट से रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी थे। परंतु किशोर उम्र की लड़कियों पर हमले और उनका पीछा करने के तमाम खुलासों के बाद उन्हें अपनी सीट गंवानी पड़ी। यौन शोषण के खुलासों से जुड़े ‘मी टू’ अभियान ने अब तक अनेक वरिष्ठ राजनेताओं, पत्रकारों और तमाम विचारधाराओं से जुड़े कलाकारों को प्रभावित किया है।


Problem in India and registration of cases


भारतीय बार महासंघ द्वारा इस वर्ष कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में 70 फीसदी महिलाएं इस डर से शिकायत नहीं करतीं कि उनके खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई की जाएगी। एक सच यह भी है कि वर्ष 2013 में कार्यस्थल पर यौन शोषण संबंधी नया कानून पारित होने के बाद मामलों का दर्ज होना बढ़ा है। अधिकांश संगठनों में औपचारिक शिकायत की प्रक्रिया को मानव संसाधन विभाग के स्तर पर ही रोक दिया जाता है। अगर आरोपित व्यक्ति अच्छा प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति हुआ तो शायद ही शिकायत को औपचारिक रूप से दर्ज किया जाए। यौन शोषण शिकायत समिति का गठन अब कानूनन जरूरी है और उम्मीद की जाती है कि यह समस्या से निपटने में व्यवस्थागत प्रणाली अपनाएगी।


Big Hurdles?


    पहली बाधा: देश की एक तिहाई से ज्यादा कंपनियां मानती हैं कि उनके यहां आंतरिक शिकायत समिति नहीं है। हर चौथी बहुराष्ट्रीय कंपनी का भी यही मानना है। देश की आधी से अधिक कंपनियों का कहना है कि उनके यहां इन समितियों में काम करने के लिए प्रशिक्षित लोगों की कमी है।
    दूसरी बाधा: अनुक्रम व्यवस्था की दिक्कत भी बरकरार है। सन 1997 में जारी किए गए दिशानिर्देश और 2013 का कानून कहते हैं कि हर शिकायत समिति में एक बाहरी सदस्य, महिलाओं के लिए काम करने वाले एक स्वयंसेवी संगठन का सदस्य होना चाहिए। इसके पीछे विचार यह है कि स्वतंत्र सदस्य को एक प्रतिष्ठिïत व्यक्ति होना चाहिए जो निष्पक्ष मशविरा दे सके।
Sexual harassment act and way around
कंपनियों ने इस शर्त से बच निकलने का रास्ता भी निकाल लिया है। महिलाओं के खिलाफ अपराध पर शोध में विशेषज्ञता रखने वाली अनघा सरपोतदार इस बात को स्पष्टï करती हैं, ‘कुछ ऐसे कदम उठाए जाते हैं जिनकी मदद से इस प्रावधान को नाकाम किया जा सके। इसके तहत किसी भी अनुशासन में स्नातक की पढ़ाई करने वाले बच्चों को बाहरी सदस्य बना दिया जाता है। नियोक्ताओं के समक्ष एक सूची होती है जिसमें से वे बाहरी सदस्य का चयन कर सकते हैं।’ वह कहती हैं कि नए आदमी की या गैर अनुभव व्यक्ति की मौजूदगी समिति की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकती है। यह पूरी कवायद को सीमित करने वाली बात है।
वर्ष 2013 के अधिनियम में एक संशोधन किया गया और आंतरिक शिकायत समिति को आंतरिक समिति में बदल दिया गया। अब इसके दायरे में परोक्ष शिकायतें भी शामिल हैं। अब यह समिति कार्यस्थल को महिलाओं के अनुकूल बनाने के लिए भी जवाबदेह हैं। यह कदम यकीनन अमेरिका की तुलना में भी प्रगतिशील है। अमेरिका के सामाजिक माहौल में भी पर्याप्त बदलाव आया है और वहां सार्वजनिक पदों पर बैठे पुरुष अब इसे महसूस कर रहे हैं। भारतीय समाज व्यापक तौर पर अभी उससे दूर है परंतु आशा है इसमें बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा।
 

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