संरक्षण कृषि (Conservation agriculture) वह पद्धति है जिसमें कृषिगत लागत को कम रखते हुए अत्यधिक लाभ व टिकाऊ उत्पादकता लाई जा सकती है। साथ में प्राकृतिक संसाधनों जैसे मृदा, जल, वातावरण व जैविक कारकों में संतुलित वृद्धि होती है। इसमें कृषि क्रियाओं उदाहरणार्थ शून्य कर्षण या अति न्यून कर्षण के साथ कृषि रसायनों एवं अकार्बनिक व कार्बनिक स्त्रोतों का संतुलित व समुचित प्रयोग होता है ताकि कृषि की विभिन्न जैव क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव न हो।
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- संरक्षण खेती (Conservation agriculture) को सभी प्रकार की जलवायु जैसे शीतोष्ण, सम शीतोष्ण, कटिबंधीय, उष्ण कटिबंधीय इत्यादि में अपनाया जा सकता है।
- इसको समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई वाले बोलिविया तक और 250-3000 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों तक में आसानी से उगाया जा सकता है।
- न्यूनतम/जीरो-टिलेज, मिट्टी की सतह पर फसल अवशेष को कायम रखना तथा उचित फसल चक्र अपनाकर विश्व के कई स्थानों पर संरक्षण खेती लगभग 40 वर्षों पूर्व से अपनाई जा रही है।
- संरक्षण खेती की तकनीक को अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेटीना, ब्राजील इत्यादि ने बड़े स्तर पर अपनी परिस्थितियों एवं क्षमताओं के अनुसार अपनाया है। संरक्षण खेती विश्व में कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 8.5 प्रतिशत क्षेत्रफल में होती है जो लगभग 12.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र है। इसका 90 प्रतिशत क्षेत्र अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा व अमेरिका में है