एक सांख्यिकीय संस्थान का दम तोड़ रहा वजूद
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) की भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर तैयार रिपोर्ट जारी न होने से उठे विवाद और राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) की घरेलू उपभोग पर तैयार रिपोर्ट लीक होने से संबंधित विवादों से भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। ऐसे वक्त में यह बेहद जरूरी है कि एनएसएसओ के कामकाज पर एक नजर डाली जाए। भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली का विकास हमारी बेहद विशाल एवं विकेंद्रित अर्थव्यवस्था के बारे में विभिन्न मसलों से संबंधित आंकड़े जुटाने के लिए किया गया था। इस प्रणाली की प्रभावी उपलब्धियों के बावजूद आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर चिंताएं बढ़ती रही हैं। आंकड़ों का संग्रह, सारिणीकरण और उनकी व्याख्या की समस्याएं दूर करने के लिए 1961 में भारतीय सांख्यिकी सेवा (आईएसएस) का गठन किया गया। फिर रंगराजन आयोग की अनुशंसाओं के मुताबिक 12 जुलाई, 2006 को राष्ट्रीय सांख्यिकीय आयोग वजूद में आया।
एनएसएसओ को अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं से संबंधित घरेलू एवं उद्यम जगत से जुड़े व्यापक सर्वेक्षण करने का जिम्मा दिया गया। सरकार ने दिवंगत प्रोफेसर पी सी महालनोबिस की सलाह पर एनएसएसओ का गठन 1950 में किया था। महालनोबिस उस समय नेहरू मंत्रिमंडल के सांख्यिकी सलाहकार थे। राष्ट्रीय आय समिति ने राष्ट्रीय आय के कुल जोड़ की गणना के लिए उपलब्ध सांख्यिकी आंकड़ों में बड़ी खामियां पाई थीं। इन कमियों को दूर करना ही एनएसएसओ का मुख्य मकसद था। अप्रैल 1961 में सांख्यिकी विभाग का गठन किया गया और एनएसएसओ इसका अंग बना दिया गया। अक्टूबर 1999 में एनएसएसओ सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय में एक संबद्ध कार्यालय बन गया।
एनएसएसओ ने अपने सर्वेक्षण अभियान की शुरुआत अक्टूबर 1950 से मार्च 1951 के दौरान ग्रामीण इलाकों में विभिन्न मुद्दों के बारे में पड़ताल से की थी। दसवें दौर का सर्वेक्षण होने तक एनएसएसओ पूरी तरह व्यवस्थित हो चुका था। संसद में 1959 में अधिनियम पारित होने के बाद भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) को भी वैधानिक दर्जा मिल गया। इसकी आम स्वीकृति इससे पता चलती है कि सरकारी संगठन एवं स्वायत्त संस्थान जरूरी आंकड़े जुटाने के लिए एनएसएस की सर्वे पद्धति में रुचि दिखाते थे।
सांख्यिकी मंत्रालय के एक प्रशासकीय आदेश के मुताबिक मई 2019 में एनएसएसओ को केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के साथ मिलाकर नया संगठन एनएसओ बना दिया गया। हालांकि एनएसएसओ के चार प्रकोष्ठ यथावत बने रहे। लेकिन ऐसा लगता है कि एनएसएसओ को विश्लेषणात्मक रिपोर्ट पेश करने को लेकर पहले जो थोड़ी-बहुत स्वायत्तता हासिल थी, अब वह क्षीण हो गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अब भी कार्य-समूह एवं तकनीकी समितियां और राष्ट्रीय सांख्यिकीय आयोग (एनएससी) मौजूद हैं, लेकिन उनकी मौजूदा भूमिका विशुद्ध रूप से तकनीकी ही हैं। एनएसएसओ की कुछ हालिया रिपोर्ट जारी होने के पहले मीडिया में लीक होने के बाद कई तरह के आरोप लगाए गए थे।
अगले साल एनएसएसओ 70 साल पुराना संगठन हो जाएगा। भारतीय सांख्यिकीय प्रणाली का एक शुभचिंतक होने और खुद इस व्यवस्था का 37 वर्षों तक हिस्सा रहने वाले शख्स के नाते मैं आंकड़ों की गुणवत्ता सुधारने के लिए कुछ सुझाव रख रहा हूं:
सत्ता पर काबिज सरकार को आंकड़ा संग्रह का काम प्राथमिकता में रखना चाहिए और संक्षिप्त अवधि की अनुबंधित नियुक्तियों से परहेज करना चाहिए। आंकड़े जुटाने के काम में लगे नियमित कर्मचारियों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि किए जाने से रोजगार अवसर भी बढ़ेंगे। अधिक स्वायत्तता के लिए एनएसएसओ को सांख्यिकीय आयोग के मातहत रखा जाना चाहिए। इसके अलावा सांख्यिकीय आयोग को कानूनी रूप से अधिक सशक्त भी बनाया जाना चाहिए।
आंकड़े जुटाने के काम में लगे कर्मचारियों को मौजूदा समय की अधीनस्थ सांख्यिकीय सेवा का अंग होना चाहिए।
अधीनस्थ सांख्यिकीय सेवा का नाम बदलकर सहयोगी सांख्यिकीय सेवा कर दिया जाना चाहिए। इसमें डेटा संग्राहकों को भी जगह दी जानी चाहिए।
डेटा संग्राहकों की संख्या एनएसएसओ द्वारा किए जाने वाले सर्वेक्षण के नमूना आकार के आधार पर तय की जा सकती है। उन्हें उन राज्यों में तैनात करना चाहिए जहां के वे निवासी हों और वहां की स्थानीय भाषा से भी परिचित हों।
एनएसएसओ दरों, अनुपात एवं प्रतिशत के संदर्भ में पैमानों का आकलन करता रहा है लिहाजा एनएसएस के हालिया सर्वेक्षणों का मौजूदा नमूना आकार बुनियादी मानकों के बारे में विश्वसनीय अनुमान देने के लिए पर्याप्त है।
एनएसएसओ को अब पैनल नमूना दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जैसा कि भारत के महापंजीयक (आरजीआई) में नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) के लिए किया जा रहा है। नमूना डिजाइन में इस तरह का बदलाव लाने के लिए कुछ तकनीकी पहलुओं पर भी गौर करने की जरूरत पड़ सकती है।
एनएसओ के सर्वे डिजाइन एवं शोध प्रभाग (एसडीआरडी) के लिए अनुसंधान पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। अभी तक वे बुनियादी तौर पर सर्वे सूची के डिजाइन, सारिणीकरण योजना, क्षेत्र में तैनात कर्मचारियों के लिए दिशानिर्देश जारी करने, प्रशिक्षण और संग्रहीत आंकड़ों पर आधारित विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार करने में ही लगे हुए हैं। उन्हें यूनिट स्तरीय डेटा पर आधारित अधिक विश्लेषणात्मक अध्ययन करना चाहिए।
एनएसओ के फील्ड ऑपरेशन प्रभाग को अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण एवं औचक निगरानी के अलावा पर्यवेक्षकों की यात्रा डायरी के विश्लेषण पर अधिक ध्यान देना चाहिए।