प्रसंग: ग्लासगो में संपन्न वैश्विक जलवायु सम्मेलन (कॉप-26) में महत्वाकांक्षी नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों की घोषणा की गई थी, लेकिन दुबई में चल रहे कॉप-28 पर इन वादों को जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी है। जिस तरह से वर्ष 2023 ने गर्मी, सूखा, बाढ़, लू और दावानल (जंगल की आग) के रिकॉर्ड तोड़े हैं, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए तेज और निर्णायक कदम उठाने की जरूरत को कम करके नहीं आंका जा सकता है।
मुद्दा:
कॉप-28 में ग्लोबल स्टॉकटेक एक निर्णायक अवसर के रूप में सामने आया है। यह देशों की सामूहिक प्रगति का एक रिपोर्ट कार्ड है, जिसमें वादों, उठाए गए कदमों और भविष्य के सख्त कदमों की जानकारी शामिल होगी। ग्लोबल स्टॉकटेक पेरिस जलवायु समझौते की आधारशिला है, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 से दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए सामूहिक प्रगति की समय-समय पर समीक्षा करना है।
महत्वपूर्ण क्यों?
कॉप-28 में संपन्न हो रहा पहला ग्लोबल स्टॉकटेक एक सतर्क दृष्टिकोण अपनाने, दोषारोपण से दूर रहने और जलवायु गतिविधियों के लिए जलवायु न्याय व उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने की माँग करता है। यह जलवायु परिवर्तन को रोकने वाली कार्य योजनाओं के अगले चरण की जानकारी देगा, जिन्हें सदस्य देशों को 2025 में सामने रखने की जरूरत होगी।
कॉप-28 में जलवायु न्याय के चार प्रमुख स्तंभ:
- पहला स्तंभ, हानि व क्षति कोष की मात्रा और इसमें विकसित देशों की भूमिका को परिभाषित किया जाना चाहिए। कॉप-28 के पहले दिन हानि व क्षति कोष को स्वीकार कर लिया गया है, जिसकी देख-रेख अस्थायी रूप से विश्व बैंक करेगा। हालांकि, इस कोष में सहायता देने की कोई बाध्यता नहीं है, और कोष के आवश्यक लक्ष्य का भी उल्लेख नहीं है। लेकिन जलवायु परिवर्तन से विकासशील देशों को अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए कोष इस मांग के अनुरूप होना चाहिए। साथ में, यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि कितनी मात्रा अनुदान और कितनी मात्रा रियायती ऋण के रूप में दी जाएगी।
- दूसरा स्तंभ उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना है। बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के लिए सभी देश समान रूप से जिम्मेदार नहीं हैं। इसलिए कॉप-28 को विकसित देशों से विस्तारित एनडीसी, नेट-जीरो लक्ष्य के लिए साल-दर-साल उत्सर्जन कटौती का खाका तैयार करने और जलवायु वित्त की मात्रा बढ़ाने की मांग करनी चाहिए, जिसे (वित्त) विकसित देशों को तेजी से उपलब्ध कराने की जरूरत है।
- तीसरा स्तंभ जलवायु लचीलापन है, जिस पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। विभिन्न आपदाओं के खतरों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और कृषि वानिकी जैसे प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेश करना, समय से तैयारी करना और आपदाओं से मुकाबला करने के लिए लचीलापन विकसित करना बहुत जरूरी है। देशों और व्यक्तियों की अनुकूलन क्षमताओं को बढ़ाने और बदले में लाभ पाने के लिए कॉप-28 में भारत की ओर से घोषित ग्रीन क्रेडिट पहल एक अच्छी दिशा है।
- चौथे स्तंभ के तहत, कॉप-28 में जलवायु वित्त को स्पष्ट परिभाषित करना चाहिए, और पुराने वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। भारत को नेट-जीरो बुनियादी ढांचे के विकास का लक्ष्य पाने के लिए अगले पांच दशकों में लगभग 100 खरब डॉलर के पूंजीगत व्यय की जरूरत होगी। ग्लोबल साउथ को तत्काल कम दर पर वित्तपोषण की जरूरत है। बहुपक्षीय विकास बैकों में भी सुधार की जरूरत है, ताकि वे विकासशील देशों के लिए वित्तीय जोखिम और लागत घटा सकें।