शिक्षा की गुणवत्ता का सवाल (Question mark on Quality of Education)

स्कूल-कॉलेजों में न सिर्फ शिक्षा का व्यवसायीकरण हो रहा है, बल्कि निजी ट्यूशन का धंधा आज धीर-धीरे काफी जोर पकड़ चुका है। समय के साथ यह एक अनिवार्य व्यवस्था का रूप लेती जा रही

Data from NSSO

  • देश में निजी ट्यूशन ले रहे विद्यार्थियों की कुल संख्या लगभग 7.1 करोड़
  • कुल विद्यार्थियों की संख्या का छब्बीस फीसद है।
  • पारिवारिक पृष्ठभूमि का कोई विशेष महत्त्व नहीं : पहले यही होता था कि प्राय: संपन्न परिवार के ही बच्चे ट्यूशन लेते थे, मगर अब इस स्थिति में परिवर्तन आ गया है। संपन्न परिवार हों या गरीब परिवार, सब अपनी पूरी क्षमता के अनुसार अपने बच्चों को निजी ट्यूशन के लिए भेजने लगे हैं।
  • ट्यूशन लेने वाले छात्रों में उच्च शिक्षा के छात्र कम हैं, अधिक छात्र स्कूली शिक्षा से संबंधित हैं।
  • ट्यूशन के प्रति लोगों के इस आकर्षण का ही परिणाम है कि लोगों के घर खर्च में अब ट्यूशन का हिस्सा बढ़ कर बारह फीसद हो गया है।

ट्यूशन को लेकर लोगों में इस आकर्षण के बढ़ने का कारण

  • जब एनएसएसओ ने सर्वेक्षण के दौरान यही सवाल पूछा तो उनमें नवासी फीसद का कहना था कि अपने बच्चों को ट्यूशन भेज कर वे उनकी शैक्षिक बुनियाद मजबूत कर रहे हैं।
  •  इनमें बहुतों ने स्कूल के वृहद् पाठ्यक्रम के मद्देनजर ट्यूशन लेने को आवश्यक बताया
  •  कई अभिभावकों का तो स्पष्ट रूप से यही कहना रहा कि स्कूली शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं होने के कारण उन्हें अपने बच्चों को ट्यूशन भेजना पड़ रहा है।
  • यह देखते हुए समझना आसान है कि ट्यूशन के प्रति लोगों में बढ़ रहे आकर्षण का मुख्य कारण स्कूली शिक्षा पर से उनका विश्वास कमजोर होते जाना है

प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था

देश की प्राथमिक शिक्षा अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। इनमें गुणवत्तायुक्त शिक्षा से लेकर ढांचागत सुविधाओं तक हर स्तर पर समस्याएं हैं।

  • देश में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता के संदर्भ में एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट पर गौर करना उपयुक्त होगा, जिसके मुताबिक देश की कक्षा पांच के आधे से अधिक बच्चे कक्षा दो की किताब ठीक से पढ़ने में असमर्थ हैं। ये तथ्य हमारी प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता के सरकारी दावों के खोखलेपन को सामने लाने के लिए पर्याप्त हैं।
  • शिक्षकों की कमी तो है, पर सरकारी स्कूलों में अधिक
  • उत्तम पाठ्यक्रम: एक एलकेजी कक्षा का बच्चा जब स्कूल से निकलता है तो पीठ पर लादे बस्ते के बोझ के मारे उससे चला नहीं जाता। यह समस्या अंगरेजी माध्यम या निजी स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चों के साथ कुछ अधिक है। अंगरेजी माध्यम के पाठ्यक्रम पर नजर डालें तो उसमे केजी के बच्चों के लिए तैयार पाठ्यक्रम दूसरी-तीसरी कक्षा के बच्चों के पाठ्यक्रम जैसा है। उदाहरण के तौर पर देखें तो जिन बच्चों की बौद्धिक क्षमता गिनती-पहाड़ा आदि सीखने की है, उनके लिए जोड़-घटाना सिखाने वाला पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। ऐसे पाठ्यक्रम से यह उम्मीद बेमानी है कि बच्चे कुछ नया जानेंगे, बल्कि सही मायने में तो ऐसे पाठ्यक्रम के बोझ तले दब कर बच्चे पढ़ी चीजें भी भूल जाएंगे।

इन समस्याओं के मद्देनजर आज अभिभावकों का स्कूली शिक्षा से विश्वास डगमगाने लगा है और वे ट्यूशन की शरण ले रहे हैं।

Way Forward:

शिक्षित अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अंधोत्साह में ट्यूशन भेजने के बजाय अगर खुद समय निकाल कर नियमित रूप से उन्हें पढ़ाएं तो वे बच्चे ट्यूशन ले रहे बच्चों की अपेक्षा अधिक सुशिक्षित होंगे।

Source: Jansatta

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download