मौद्रिक नीति का देश के आर्थिक विकास पर प्रभाव और उसकी समीक्षा

ðसंदर्भ:- रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा अपनी पहली मौद्रिक नीति समीक्षा घोषित करते हुए रेपो रेट कम करने के कदम से बाजार में भरोसे का निर्माण हुआ है.

=>प्रभाव कैसे :-
- दरअसल ब्याज दरों के घटने से निवेश लागत घटती है और व्यवसायों में ही नहीं बल्कि इंफ्रास्ट्रक्चर में भी निवेश बेहतर होता है। इसका अर्थव्यवस्था पर गुणात्मक प्रभाव पड़ता है।

- यही नहीं, इससे घर, कार या अन्य साजो-सामान खरीदना भी आसान हो जाता है क्योंकि ईएमआई घट जाती है।

- उर्जित पटेल की मौद्रिक नीति समीक्षा की खास बात यह है कि उन्होंने स्वयं को स्फीति बाज (इंफ्लेशन हॉक) की छवि से अलग कर लिया है।

- जब रघुराम राजन ने कार्यभार संभाला था, उस समय लक्षित मुद्रा स्फीति थोक मूल्य सूचकांक से देखी जाती थी, जिसे उन्होंने बदलकर उपभोक्ता कीमत सूचकांक से जोड़ दिया था। गौरतलब है कि यह सुझाव **उर्जित पटेल की अध्यक्षता में बनी समिति** ने ही दिया था।

- उसका असर यह हुआ जब थोक मुद्रा स्फीति शून्य से नीचे चली गई और उपभोक्ता मुद्रा स्फीति 5 प्रतिशत तक आ गई तो भी यह कहकर कि अभी यह लक्षित मुद्रा स्फीति से ज्यादा है, वे ब्याज दरों को घटाने के लिए मना करते रहे।

=>ऊंची ब्याज दरों की नीति के पक्ष में तर्क :-                   

1. मुद्रा स्फीति के चलते ब्याज दरों को इसलिए ऊंचा रखना जरूरी है ताकि वास्तविक ब्याज दर धनात्मक रहे।

2. जब ब्याज दर घटेंगी तो विदेशी निवेशक अपना निवेश स्थानांतरित कर देंगे

3. ब्याज दर घटने से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ जाएगी और आपूर्ति कम होने के कारण मुद्रा स्फीति बढ़ सकती है।

=> ऊंची ब्याज दरों का अर्थव्यवथा पर प्रभाव :-

- लेकिन दूसरी ओर यह भी उतना ही सत्य है कि ऊंची ब्याज दरों के चलते हमारी ग्रोथ भयंकर रूप से प्रभावित हुई है। गौरतलब है कि जैसे-जैसे रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में वृद्धि की, उसके साथ ही जीडीपी ग्रोथ रेट घटने लगे।
उदाहरण  :- देखा जाए तो 2010 में, जबकि रेपो रेट 5 प्रतिशत था, जीडीपी की ग्रोथ की दर 8.9 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। 2014 से लेकर अब तक रेपो रेट 8 प्रतिशत से घटती हुई वर्तमान 6.25 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इसका असर यह हो रहा है कि 2015-16 में ग्रोथ की दर 7.6 प्रतिशत से ज्यादा हो गई है और 2016-17 में इसका 8 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है।

=> मौद्रिक नीति का देश के आर्थिक विकास पर प्रभाव की अर्थशास्त्रीय व्याख्या :-

- अर्थशास्त्री गोर्डन के अनुसार सैद्धांतिक रूप से यदि मुद्रा स्फीति पूर्ति घटने के कारण हो रही हो तो इसे रोकने हेतु ब्याज दरों को घटाने की नीति सही नहीं है क्योंकि ब्याज दरों को घटाने से उत्पादन और अधिक घटता है। इससे निजी निवेश ही नहीं, सार्वजनिक निवेश बुरी तरह से प्रभावित होता है।

- गौरतलब है कि भारत में पिछले कुछ समय से मुद्रा स्फीति का मुख्य कारण कृषि उत्पादन में अपर्याप्त वृद्धि थी। 2012-13 में कृषि विकास की दर 0.9 प्रतिशत, 2013-14 में 3.7 प्रतिशत और 2014-15 में 1.1 प्रतिशत रही। यानी तीन सालों में कृषि की ग्रोथ दर औसतन 2 प्रतिशत से कम रही।

- देश में मुद्रा स्फीति का मुख्य कारण कृषि वस्तुओं की कमी रहा। ऐसे में ब्याज दरों में वृद्धि ने गैर कृषि क्षेत्र में ग्रोथ को प्रभावित करना शुरू कर दिया। इसलिए कहा जा सकता है कि ब्याज दरों में वृद्धि के कारण भी हमारी ग्रोथ प्रभावित हुई।

=>दुनिया के अन्य देशों की मौद्रिक नीति से तुलना :-
- दुनिया के विकसित देशों में ब्याज दरें शून्य के आसपास चल रही हैं। ऐसे में भारत में ऊंची ब्याज दरों के कारण हमारी प्रतिस्पर्धा शक्ति घटती है, जिसके कारण दुनिया के मुकाबले में हम पीछे रह सकते हैं।

- आशा की जानी चाहिए कि ग्रोथ बढ़ने के साथ-साथ कीमतें भी नियंत्रण में आयेंगी और भविष्य में ब्याज दरें और घटेंगी। यह पहली बार हुआ है कि अब मौद्रिक नीति खासतौर पर ब्याज दर निर्धारण में मौद्रिक नीति समिति की भूमिका रहेगी। सरकार ने मौद्रिक नीति समिति के लिए अपने प्रतिनिधि नामजद किए हैं। इसलिए RBI के लिए यह जरूरी होगा कि सरकार के साथ समन्वय बनाकर मौद्रिक नीति बनाए।

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