★ देश के इतिहास में पहली बार जारी किए गए इनकम टैक्स के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011 में आयकर के दायरे में आने वालों की संख्या चार करोड़ थी, जो 2014 में बढ़कर पांच करोड़ से कुछ अधिक हो गई है।
★ इनमें एक बड़ी तादाद उन लोगों की है, जिनके लिए टैक्स रिटर्न दाखिल करना जरूरी नहीं है। इनसे ऊपर के आय वर्ग में आने वाले कुल 2.9 करोड़ लोग आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं लेकिन इनमें भी 1 करोड़ 60 लाख लोगों को कोई टैक्स नहीं देना पड़ता।
★ कुल मिलाकर एक करोड़ से कुछ ज्यादा लोग टैक्स देते हैं, जो कौन हैं, इस बारे में गंभीरता से बातचीत होनी चाहिए।
★ हालत यह है कि आज इकॉनमी में डायरेक्ट टैक्स की हिस्सेदारी पिछले वित्त वर्ष में एक दशक के निचले स्तर 5.47 फीसद पर आ गई है।
★ सरकार का दावा है कि आयकर के आंकड़े जारी करना पारदर्शिता लाने और नीति निर्धारण में एक बड़ा कदम साबित होगा।
★करदाताओं के सबसे बड़े समूह की औसत सालाना आमदनी 6,94,000 रुपये यानी 58 हजार रुपया महीने के आसपास है। इस आमदनी से अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि यह कौन सा तबका है।
★ निश्चित रूप से यह नौकरीपेशा लोगों का वर्ग है, जिनमें एक बड़ी तादाद सरकारी कर्मचारियों की है, जिससे टैक्स वसूल करना सबसे आसान है।
★ देश का व्यापारी वर्ग आयकर के दायरे से आम तौर पर बाहर है क्योंकि उससे टैक्स वसूलने का कोई कारगर तरीका सरकार नहीं ढूंढ पाई है। या फिर यूं कहें कि सरकारी मशीनरी में इसके लिए जरूरी इच्छाशक्ति नहीं है। यह वर्ग अक्सर कागजी कसरत के जरिये टैक्स देने से साफ बच निकलता है।
★ टैक्स न देने वाले सुपर अमीरों में सबसे बड़ी तादाद उन लोगों की है, जो अपनी आमदनी का मुख्य जरिया खेती-किसानी को बताकर टैक्स का कोई झंझट ही अपने सामने नहीं आने देते। खेती से आय पर आयकर लगाने की बात कई बार चली पर किसान विरोधी मान लिए जाने के डर से सरकारें इन करोड़पतियों पर हाथ डालने से बचती हैं।
★ एक राय है कि किसानों को नाराज किए बगैर भी कृषि से जुड़ी आमदनी को कर के दायरे में लाया जा सकता है। अगर ऐसा किया जाता है तो छोटे और सीमांत किसान कर के दायरे से बाहर रहेंगे क्योंकि उनकी आमदनी ढाई लाख रुपये सालाना की बुनियादी छूट सीमा से नीचे ही रहेगी।
★ जो कंपनियां कृषि क्षेत्र में निवेश कर रही हैं उन्हें भी कर छूट मिलती है, जिसका कोई औचित्य नहीं है।
★वैसे अपने यहां सबसे कमाऊ पेशा पॉलिटिक्स का है। लेकिन इस चतुर और ताकतवर बिल्ली के गले में घंटी बांधने से पहले सरकार को इनकम टैक्स के आंकड़ों में और ज्यादा पारदर्शिता बरतनी होगी।