NITI AYOG report, ‘Ease of Doing business — An enterprise survey of Indian states’, among other things, said starting a business in India took longer than that estimated by the World Bank.
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सरकार आर्थिक विकास के सपने जरूर दिखा रही है, लेकिन इसके लिए जो उपाय किए जाने चाहिए, वे उससे नहीं हो पा रहे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट ‘Ease of doing business: ऐन एंटरप्राइज सर्वे ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में बताया गया है कि :
- आज भी देश में कारोबार के अनुकूल माहौल नहीं बन पाया है। नया कारोबार शुरू करने में औसतन 118 दिन लगते हैं। तमाम तरह की मंजूरियां लेने में देरी होती है।
- विश्व बैंक की सालाना ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनस’ रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में कारोबार शुरू करने में मात्र 26 दिन लगते हैं। नीति आयोग ने आइडीएफसी इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर यह सर्वे तकरीबन पूरे देश में किया है।
- सर्वे में छोटी-बड़ी 3,276 कंपनियों से सवाल पूछे गए। आयोग का कहना है कि सरकार को श्रम सुधार जल्द से जल्द करने होंगे। कोई भी शख्स बिना किसी परेशानी के अपना कारोबार शुरू कर सके, ऐसे कदम उठाने होंगे। कारोबार दरअसल एक मानसिकता है, जिसका देश में प्राय: अभाव रहा है।
इसका एक सामाजिक पहलू भी है, जिस पर बात नहीं होती। देश में प्रचलित वर्ण व्यवस्था में कारोबार का दायित्व एक जाति विशेष पर ही था। वर्ण व्यवस्था के बंधन ढीले पड़ने के बावजूद समाज में उद्योग-व्यापार का काम कुछ जाति समूहों तक ही सीमित रहा। लोगों को विरासत में कारोबार मिलते रहे। समाज में व्यापार को बहुत अच्छी नजरों से देखा भी नहीं जाता था। सामंती व्यवस्था में कृषि को सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। उसके बाद कारोबार का स्थान था, जबकि नौकरी निकृष्ट मानी जाती थी। लेकिन सामंती समाज के खात्मे के बाद नौकरी पहले नंबर पर चली आई। सरकारी नौकरी सम्मान का सबसे बड़ा जरिया बन गई। सबसे शिक्षित तबका किसी सरकारी नौकरी में ऊंचा ओहदा पाने को अपना लक्ष्य समझने लगा। कारोबार उसके लिए दोयम दर्जे की ही चीज बनी रही।
नौकरशाही और राजनीतिक नेतृत्व में कारोबारियों से अधिक से अधिक वसूली करने का भाव रहा, लिहाजा कारोबार में मदद करने से ज्यादा इसमें रोड़े अटकाने की प्रवृत्ति ही देश पर हावी रही। उदारीकरण के बाद स्थितियां काफी हद तक बदली हैं। अब कारोबार को सम्मान की नजर से देखा जाने लगा है। देश में कारोबारी माहौल बनने और सरकारी नौकरियों में कमी आने से उन जाति-समुदायों के लोग भी कारोबार के क्षेत्र में आ रहे हैं, जो हाल तक इसे अपने दायरे से बाहर मानते थे। कई राज्यों में अगर कारोबार का कोई माहौल नहीं है, तो इसका बड़ा कारण है वहां के स्थानीय लोगों और सरकारों में इसके प्रति उदासीनता। केंद्र सरकार को लगातार प्रो-एक्टिव रुख अपनाकर नए कारोबारियों को प्रोत्साहन देना चाहिए।