#Dainik_Tribune
रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 99 फीसदी अमान्य करेंसी तीस जून तक बैंकों तक पहुंच चुकी थी।
- पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का यह बयान सोचने को मजबूर करता है कि सरकार ने 26 हजार करोड़ खर्च करके 16 हजार करोड़ बचाये।
- नोटबंदी ने पूरे देश को हिलाया, लाखों असंगठित छोटे उद्योग ठप हुए, पूरा देश बैंकों की कतारों में धक्के खाता रहा, कई लोगों की जान गई और हासिल क्या हुआ? दुनिया की किसी विश्वसनीय अर्थव्यवस्था में इतना बड़ा तुगलकी प्रयोग आज तक नहीं हुआ।
Argument in favour of Demonetisation
- दलील थी कि इससे काले धन पर लगाम लगेगी। मगर भ्रष्ट व्यवस्था के चलते बड़ी मात्रा में काला धन नौकरशाहों व बैंकों की मिलीभगत से सफेद हो गया।
- शीर्ष पर ईमानदार प्रयास के बावजूद नौकरशाही व व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार का आकलन करने में सरकार विफल रही।
- वहीं बरामद नकली करेंसी में पिछले साल के मुकाबले मामूली फर्क नजर आया। आतंकवाद एवं नक्सलवाद की कमर टूटी हो, ऐसा भी नजर नहीं आता।
Failure of government
- सरकार इस आकलन में विफल रही कि लोग काला धन नकद के रूप में सिर्फ पांच फीसदी के आसपास रखते हैं।
- ज्यादातर का विभिन्न बेनामी संपत्तियों के रूप में निवेश कर दिया जाता है। दूसरे, काले धन को जन धन खातों व सुरक्षा कवच पाये राजनीतिक दलों के जरिये बड़ी मात्रा में सफेद किया गया। सहकारी बैंकों की भूमिका पर भी सवाल उठे।
- भारत एक बड़ी कैश इकॉनोमी है और नोटबंदी की नीति से उसको भारी चोट पहुंची। रियल एस्टेट सेक्टर पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा। कृषि क्षेत्र पर गहरा प्रभाव दिखा और किसानों को उनकी उपज का न्यायसंगत दाम नहीं मिला। जिसके चलते देश की विकास दर में गिरावट दर्ज की गई।
- जहां तक सरकार का कैशलेस इकॉनाेमी बढ़ाने का दावा है तो उसमें महज दस फीसदी के करीब इजाफा हुआ और नकद लेनदेन बदस्तूर जारी है। आखिर इसके लिये पूरे देश को मुश्किल झेलने को मजबूर करना जरूरी था?
देश कई माह नकदी की किल्लत से जूझता रहा। इसके अलावा नये नोट छापने का बोझ अर्थव्यवस्था पर पड़ा, यह लागत दुगनी बढ़ी है। यानी देश के धन व समय की अनावश्यक बर्बादी हुई। पड़ोस से आने वाली नकली करेंसी कम तो हुई मगर आशंका है कि कुछ समय बाद फिर उसी तरह नये नोट छपकर आने शुरू हो जायेंगे।