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GST लागू होने के बाद सामने आए राजस्व के नतीजे भी उत्साह बढ़ाने वाले हैं। वित्त मंत्री ने पिछले दिनों कहा कि नई कर व्यवस्था के अधीन पहले महीने में संग्रहीत राजस्व सरकार के तय लक्ष्य को पार कर गया है।
- जुलाई महीने का GST संग्रह 92,282 करोड़ रुपये रहा जबकि पूर्वानुमान 91,000 करोड़ रुपये का लगाया गया था।
- गौरतलब है कि यह लक्ष्य तभी हासिल हो गया जबकि अभी एक तिहाई करदाताओं को कर रिटर्न दाखिल करना है। जाहिर सी बात है अंतिम आंकड़े और अधिक सुस्पष्टï और ज्यादा होंगे।
- GST के चलते सरकारी राजस्व में गिरावट के अनुमान जताए जा रहे थे। उनके ठीक विपरीत पहले महीने का प्रदर्शन बताता है कि कारोबारियों और जनता ने इसे सही ढंग से अपनाया है।
- वित्त मंत्री ने कहा है कि 72 लाख करदाताओं ने पुरानी कर व्यवस्था को छोड़कर जीएसटी अपनाया जबकि सरकार 18 लाख नए करदाता इसमें शामिल करने में कामयाब रही। अगर उन 31 लाख लोगों को छोड़ दिया जाए जो या तो अगस्त में इसमें शामिल हुए या फिर जिन्होंने क्षतिपूर्ति योजना अपनाई, तो 25 अगस्त तक 59 लाख लोगों को रिटर्न दाखिल करना था।
- इसमें 64.5 फीसदी यानी करीब 38 लाख लोगों ने रिटर्न दाखिल किया जो बहुत अच्छी तादाद है
बहरहाल, अब जबकि शुरुआती चिंताएं और संदेह छंट गए हैं तो GST में सुधार पर विचार शुरू कर दिया जाना चाहिए। अगर देखा जाए तो अनुमान से अधिक राजस्व संग्रह इस बात की गवाही देता है कि जीएसटी दरें शायद बहुत ज्यादा हैं। अगर पहले ही महीने से करदाताओं का दायरा 65 फीसदी हो तो राजस्व के मोर्चे पर बेहतरी तो आनी ही आनी है। इसकी मदद से आयकर राजस्व में इजाफा होना भी तय है। क्योंकि कर दायरा निश्चित रूप से बढ़ेगा। बल्कि कहा जा सकता है कि ऐसा हो चुका है।
सरकार को इस अप्रत्याशित राजस्व का क्या करना चाहिए?
सरकार को अतिरिक्त आय कर राजस्व को अपने पास रखने का पूरा अधिकार है क्योंकि इसका संग्र्रहण मौजूदा कर दर पर किया जाएगा। परंतु, उसे जीएसटी के जरिये हासिल अतिरिक्त राजस्व को अपने पास नहीं रखना चाहिए। सरकार को अब जीएसटी के अगले चरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उसे अब यह प्रयास शुरू कर देना चाहिए कि मुख्य दर को 18 फीसदी से कम करके 15 फीसदी तक लाया जाए। इसके अतिरिक्त उसे 5 फीसदी और 12 फीसदी की दरों का विलय कर देना चाहिए ताकि 8 फीसदी, 15 फीसदी और 28 फीसदी की तीन ही कर दरें रह जाएं। व्यापक पैमाने पर देखा जाए तो सरकार को जीएसटी का दायरा बढ़ाने पर भी विचार करना चाहिए। ऐसा करके वह उन चीजों को इसमें शामिल कर सकती है जो अभी इसके दायरे से बाहर हैं। इनमें मुख्य तौर पर पेट्रोलियम उत्पाद, बिजली और शराब आदि शामिल हैं।
व्यय के मोर्चे पर यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि कर से हुए लाभ का समुचित इस्तेमाल किया जाए और उसे राज्य सरकारें जाया न होने दें। दरअसल इस राशि का अधिकांश हिस्सा राज्य सरकारों के पास ही जाएगा। उनका अपना हिस्सा तो है ही, उसके अलावा उन्हें केंद्र की ओर से भी राशि मिलेगी। राज्यों को स्वास्थ्य और शिक्षा पर व्यय को प्राथमिकता देनी चाहिए। जबकि अतिरिक्त केंद्रीय व्यय को बुनियादी विकास तथा रक्षा क्षेत्र पर खर्च किया जाना चाहिए। अगर समझदारीपूर्वक लागू किया जाए तो आधा-अधूरा जीएसटी भी बड़ा बदलाव ला सकता है।