जीएसटी : उत्सव और उम्मीद

#Editorial_Business_Standrad

जीएसटी आजादी के बाद देश का सबसे बड़ा कर सुधार है। यह एक बड़ी उपलब्धि है कि देश इस स्थिति में आ चुका है जहां वस्तुओं एवं सेवाओं को एकीकृत करने वाला मूल्यवर्धित कर पेश किया जा सकता है। यह कर केंद्र और राज्यों को समेटे है। यह भी सच है कि देश के तमाम अन्य कार्यों की तरह इसे लागू करने में भी समझौते और देरी दोनों हुए।

  • अंतिम नतीजे के तौर पर यह कर व्यवस्था वैसी नहीं रह गई है जैसी हमने सोची थी।
  •  इसके अलावा हमें परिचालन क्षेत्र की समस्याओं के लिए भी कमर कस लेनी चाहिए। नया कर चुकाने वालों को अब पहले के मुकाबले कहीं अधिक कागजी कार्रवाई करनी होगी और फॉर्म भरने होंगे।
  •  लेकिन इन बातों से यह उपलब्धि छोटी नहीं हो जाती। न ही इसकी बदौलत आ रहे बदलाव की महत्ता कम होती है। नई कर व्यवस्था लागू करने में राजकोषीय व्यवहार के साथ विशेषज्ञों की राय का भी बखूबी ध्यान रखने का प्रयास किया गया

Historical perspective:

बौद्घिक स्तर पर देखें तो एल के झा, राजा चेल्लैया और अमरेश बागची से लेकर एम गोविंद राव और विजय केलकर जैसे नाम कर व्यवस्था से जुड़े रहे हैं। जिन प्रधानमंत्रियों को इसका श्रेय मिलना चाहिए वे हैं: विश्वनाथ प्रताप सिंह जो मोडवैट लाए, मनमोहन सिंह जिन्होंने उसका दायरा बढ़ाया, यशवंत सिन्हा जिन्होंने 16 फीसदी की स्थिर दर वाला सैनवेट पेश किया,

  •  पी चिदंबरम जो जीएसटी पर पहला संविधान संशोधन विधेयक लाए और अब अरुण जेटली जिनकी निगरानी में नई व्यवस्था लागू हो रही है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी पूरा श्रेय मिलना चाहिए। साथ ही राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति के विभिन्न चेयरमैन को भी जिनमें असीम दासगुप्ता, सुशील मोदी और अमित मित्रा के नाम हैं। केंद्र के कई वित्त मंत्रियों ने राज्यों को प्रोत्साहित किया कि वे राज्य मूल्यवर्धित कर की व्यवस्था अपनाएं। जीएसटी की ओर बढऩे के लिए ऐसा करना आवश्यक था। आखिरकार प्रणव मुखर्जी ने नंदन नीलेकणी को एक समूह का अध्यक्ष बनाया। जिसका काम था नई कर व्यवस्था को तकनीकी संबल मुहैया कराना। इसे जीएसटी नेटवर्क का नाम दिया गया है और इसकी परीक्षा अगले सप्ताह शुरू हो जाएगी।

 

Benefit:

  • जीएसटी के बहुआयामी होने की बात कही गई है। उम्मीद है कि इससे कर दायरा बढ़ेगा, कर दायरे में शामिल लोगों का अनुपालन मजबूत होगा और इस प्रकार सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कर का अनुपात मजबूत होगा।
  •  लब्बोलुआब यह कि इससे सरकार के संसाधन बढ़ेंगे।
  • इस प्रक्रिया में उम्मीद यह भी है कि जीडीपी को गति मिलेगी और लाखों नए लोगों के लेनदेन की डिजिटल रिकॅार्डिंग होने से देश में कारोबारी माहौल एकदम बदल जाएगा।
  • इससे सड़क परिवहन में भी तेजी आएगी क्योंकि राज्यों की सीमाओं पर किसी तरह की रोकटोक नहीं होगी।

अब यह देखने वाली बात होगी चीजें कैसे निकलकर आती हैं और इन लाभों का किस हद तक फायदा मिल सकेगा। यह सारी जानकारी आने वाले महीनों और वर्षों में सामने आएगी।

  • दुनिया भर में करीब 140 देशों ने जीएसटी अपनाया है।
  •  मलेशिया ऐसा करने वाले नए देशों में शामिल है लेकिन उसे भी ढेरों कठिनाइयां हुईं। देश के कारोबारी ने हमेशा सरकारी अधिकारियों के तरीकों की काट निकाल ही लेते हैं।
  • नोटबंदी के छह महीने बाद देश में डिजिटलीकृत लेनदेन का स्तर वापस कम होने लगा है। कारोबारियों ने दोबारा नकद भुगतान की मांग शुरू कर दी है।
  • अचल संपत्ति के लेनदेन में भी नकदी की वापसी हो चुकी है। इलेक्ट्रॉनिक सामान से लेकर हार्डवेयर तक विभिन्न उत्पाद खुदरा स्तर पर बिना किसी बिल के धड़ल्ले से नकदी पर खरीदे-बेचे जा रहे हैं। जीएसटी का ढांचा ऐसा है कि इसमें समस्त कर समाहित हैं और यह आधिकारिक डिजिटल लेनदेन का एक व्यापक डिजिटल नेटवर्क तैयार होगा।

किसी को नहीं पता कि कारोबारी जो लंबे समय तक चतुराईपूर्वक कर से बचते आए हैं वे क्या तरीके निकालेंगे। ऐसे में नई सुधरी हुई कर व्यवस्था की ओर सुगम बदलाव की उम्मीद करते हुए हमें सतर्कतापूर्वक भविष्य पर निगाह रखनी होगी

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