1. आबादी हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि हमारे इस संसाधन में युवा और कार्यशील आबादी की हिस्सेदारी लगातार विस्तार ले रही है।
- 63.4 फीसद - कुल कार्यशील आयु (15-64 साल) वाली आबादी
- 60 फीसद - (करीब) 2001 में कुल कार्यशील आबादी
2. आश्रितों के अनुपात में कमी
- यह दूसरी बड़ी खूबी है कि कार्यशील आबादी के ऊपर निर्भर बच्चों (0-14) और बुजुर्गों (65-100) का अनुपात घटकर 0.55 रह गया है।
3. ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा युवा
- शहरों में प्रजनन दर में तेजी से गिरावट के चलते ग्रामीण भारत शहरी क्षेत्र की अपेक्षा अधिक युवा है।
- 51.73 फीसद: ग्रामीण भारत की आबादी में उनकी हिस्सेदारी जिनकी आयु 24 साल से कम है
- 45.9 फीसद: शहरी भारत की आबादी में 24 साल से कम की हिस्सेदारी
- 24 साल- 2011 में देश की माध्य आयु
- 22 साल- 2001 में देश की माध्य आयु
- 47.2 करोड़: देश में 18 साल से कम उम्र की आबादी
- 49.91 फीसद: देश की कुल आबादी में 24 साल से कम की हिस्सेदारी
=>आर्थिक विकास में मददगार :-
- अन्स्र्ट एंड यंग और फिक्की के एक अध्ययन के अनुसार वर्तमान में भारत एक ऐसे ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है जहां पर वह अगले कई दशकों तक प्रचुर आर्थिक लाभ लेने की स्थिति में है। बड़ी आबादी और तेज वृद्धि दर ने एक ऐसा जनसांख्यिकीय पिरामिड तैयार कर दिया है जिसका लाभ देश-दुनिया को कई दशकों तक मिलता रहेगा।
=>विकसित देश होंगे हम
- 2015 से जनसांख्यिकीय खूबियों से मिलने वाला लाभ चीन का कम होता जाएगा। वहीं भारत को 2040 तक इसका लाभ मिलने का अनुमान है। कार्यशील आबादी का बढ़ता अनुपात श्रम उत्पादकता को बढ़ाने का मौका साबित हो सकता है।
- घरेलू उत्पादन में वृद्धि हो सकती है। सेवाओं से मिलने वाला राजस्व कई गुना बढ़ सकता है। बचत में वृद्धि और कार्यशील आबादी पर आश्रित बुजुर्गों और बच्चों का बोझ घटने से उनकी आय का ज्यादा हिस्सा अर्थव्यवस्था के सकारात्मक पक्षों में लगेगा।
=>कुशल बनाम अकुशल श्रम :-
- करीब 93 फीसद भारतीय श्रमशक्ति असंगठित क्षेत्र में काम करती है। श्रमशक्ति के इस बड़े हिस्से का औपचारिक कौशल विकास तंत्र से दूर-दूर का नाता नहीं है। मुश्किल से 2.5 फीसद असंगठित श्रमशक्ति औपचारिक कौशल विकास कार्यक्रम से जुड़ पाती है।
- इसी तरह संगठित क्षेत्र की 11 फीसद श्रमशक्ति का ही औपचारिक स्तर पर कौशल विकास हो पाता है। इसी तरह असंगठित क्षेत्र में 12.5 फीसद श्रमशक्ति और संगठित क्षेत्र की 10.4 फीसद श्रमशक्ति का ही अनौपचारिक कौशल विकास हो पाता है।
=>भविष्य में कुशल श्रम की जरूरत:-
- 2020 तक 2 अरब अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या के साथ 2025 तक हम दुनिया की सबसे बड़ी श्रमशक्ति होंगे। इसी दौरान हम अपने कौशल विकास कार्यक्रमों के बूते 4.7 करोड़ कुशल श्रमशक्ति तैयार कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि इसी समयावधि के दौरान दुनिया में 5.65 करोड़ कुशल कामगारों की बड़ी कमी होगी। यह कमी भारत के कुशल श्रमशक्ति से पूरी की जा सकेगी।
=>कहां होगी कैसी कमी
- यूके -- लॉजिस्टिक, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों में
- लैटिन और दक्षिण अमेरिका -- इंजीनियरिंग, लाइफ साइंसेज और खुदरा क्षेत्र
- ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड -- निर्माण और प्राकृतिक संसाधन
- यूरोप और अमेरिका -- इंजीनियरिंग और विनिर्माण
=>अनुमान -
- 2025 तक भारत की जनसंख्या 1.4 अरब तक पहुंचने का अनुमान है। उस दौरान जो जनसंख्या पिरामिड होगा उसमें 15-64 आयु वर्ग का सर्वाधिक विस्तार होगा।
- साथ ही कार्यशील आबादी की संख्या 2011 में 76.1 करोड़ के मुकाबले बढ़कर 2020 में 86.9 करोड़ होगी। परिणामस्वरूप 2020 तक देश जनसांख्यिकीय बोनस का अनुभव करता रहेगा। इस कालखंड में कार्यशील आबादी की वृद्धि दर कुल आबादी की वृद्धि दर से अधिक होगी।
=>64 फीसद: 2026 तक देश के 15-59 आयु वर्ग की कुल आबादी में अनुमानित हिस्सेदारी
=>13 फीसद: कुल आबादी में 60 साल से ऊपर की अनुमानित हिस्सेदारी
=>कौशल विकास :-
- दुनिया में सर्वाधिक कार्यशील आबादी का पूरा लाभ तभी संभव है जब हर हाथ हुनर और हर दिमाग कौशल युक्त हों। भारत ने इस चिंता को ध्यान में रखते हुए कौशल विकास कार्यक्रम में तेजी दिखाई है।
- सरकार के थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ अप्लाइड मैनपॉवर रिसर्च (आइएएमआर) के अनुसार 2022 तक 24.9 से 29.0 करोड़ लोगों को कौशल प्रदान करने की जरूरत होगी।
- देश के सामने कौशल विकास की बड़ी चुनौती है। अगले दशक तक हर साल करीब 1.2 करोड़ लोग देश की श्रमशक्ति में शामिल होंगे। इसके विपरीत देश की कुल प्रशिक्षण क्षमता 43 लाख है। लिहाजा करीब 64 फीसद लोग हर साल सामान्य कौशल विकास से दूर रह सकते हैं।
- व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में हमारे यहां प्रति वर्ष 55 लाख छात्रों का नामांकन होता है जबकि चीन में यह आंकड़ा 9 करोड़ और अमेरिका में 1.13 करोड़ है।