★ एमआइसीआइ-2017 में उत्पादों की साख के मामले में चीन भारत से सात पायदान पीछे है।
★ सूचकांक में भारत को 36 अंक मिले हैं, जबकि चीन को 28 से ही संतोष करना पड़ा है।
★ सौ अंकों के साथ पहले स्थान पर जर्मनी, दूसरे पर स्विट्जरलैंड है।
★ स्टैटिस्टा ने अंतरराष्ट्रीय शोध संस्था डालिया रिसर्च के साथ मिलकर यह अध्ययन दुनियाभर के 43,034 उपभोक्ताओं की संतुष्टि के आधार पर किया।
★ यूरोपीय संघ समेत सर्वे हुए 50 देश दुनिया की 90 फीसद आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सर्वे में उत्पादों की गुणवत्ता,
- सुरक्षा मानक,
- कीमत की वसूली,
- विशिष्टता, डिजायन,
- एडवांस्ड टेक्नोलॉजी,
- भरोसेमंद, टिकाऊपन,
- सही तरीके का उत्पादन और
- प्रतिष्ठा को शामिल किया गया है।
=>'मेड इन' लेबल का इतिहास :-
★ बात 19वीं सदी के समापन के दौरान की है। जिस तरीके से आज चीन अपने सस्ते और घटिया उत्पादों से दुनिया के बाजारों को पाट रहा है, तब इसी तरह की कारस्तानी के लिए जर्मनी कुख्यात था।
★भले ही आज उसके उत्पादों और इंजीनियरिंग का कोई सानी न हो, लेकिन तब वह भारी मात्रा में अपने घटिया और बड़े ब्रांडों की नकल करके बनाए उत्पादों को ब्रिटेन निर्यात कर रहा था।
★ ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने लगी। लिहाजा ब्रिटेन ने नकली उत्पादों से बचने को ‘मेड इन’ लेवल की शुरुआत की।
=>खुली चीन की कलई
★ संसाधनों की सीमित उपलब्धता के चलते मैन्युफैक्चरिंग में घटिया कच्चे माल का इस्तेमाल करता है। न्यूनतम मजदूरी के बूते उसने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जमकर घटिया और सस्ता माल उतारा। उसके उत्पादों की कलई खुल चुकी है। उत्पाद वैश्विक गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतर रहे।