- सरकार की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना दुनिया में अपनी तरह की सबसे बड़ी योजना कही जा रही है, जो पूरे देश में 1 जनवरी से तकनीकी रूप से लागू हो गई।
- इसकी शुरुआत एलपीजी यानी रसोई गैस के लिए सब्सिडी के प्रत्यक्ष हस्तांतरण के लिए की गई है, जो ग्राहक के आधार संख्या से जुड़े हुए बैंक खाते में जाएगी।
- यह जरूरतमंद लोगों तक सीधे सब्सिडी पहुंचाने की महत्त्वाकांक्षी सरकारी योजना का हिस्सा है, ताकि लोगों तक सहायता पहुंचने की बीच राह में गड़बडिय़ों को रोका जा सके।
=> यह योजना तीन चरणों पर टिकी हुई है:-
- रसोई गैस सिलिंडरों की आपूर्ति के मामले में एक तो उपभोक्ता की पहचान बायोमेट्रिक आधार तंत्र के जरिये सत्यापित की जाएगी, जिस बैंक खाते में सब्सिडी जाएगी और जो सेवा मुहैया कराई जा रही है उसके लाभार्थी विवरणों को भी देखा जाएगा।
- अभी तक 7.5 करोड़ परिवारों या कुल 63 फीसदी उपभोक्ताओं को पंजीकृत किया जा चुका है और बैंक खातों के जरिये 1624 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जा चुकी है।
- आधार के तहत अब तक देश में 72.8 करोड़ लोगों या वर्ष 2014 की जनगणना के अनुसार 58 फीसदी आबादी को पंजीकृत किया जा चुका है।
- पिछले तीन महीनों में जन धन योजना के तहत 10.3 करोड़ बैंक खाते खोले गए हैं और इस तरह वह लक्षित किए गए परिवारों के 98 फीसदी के दायरे तक पहुंच गई।
- किसी भी सूरत में यह न केवल किसी विकासशील देश बल्कि किसी भी देश के लिए एक बड़ी विश्वसनीय तकनीकी उपलब्धि है। इसमें पहचान सत्यापित करने वाला प्रमुख कारक आधार संख्या हैI
- फिलहाल आधार पंजीकरण की अनिवार्यता जरूरी नहीं है और जिन लोगों ने एलपीजी के लिए पंजीकरण कराया है, उनमें से बड़ी संख्या में लोगों ने आधार का ब्योरा पेश नहीं किया है। उन्हें ऐसा करने के लिए तीन महीनों की मोहलत मिली है। फिर भी अगर कोई ग्राहक ऐसा करने में नाकाम रहता है तो उसकी सब्सिडी पर रोक नहीं लगेगी और जब तक कागजी कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती, तब तक वह निलंब लेखा में जमा रहेगी।
- इस मामले में कदम इसलिए पीछे खींचे गए हैं ताकि उपभोक्ताओं को इस पूरी प्रक्रिया को समझने का वक्त मिल सके कि उन्हें ऐसा क्यों करना है और उसे भरोसे के साथ कैसे किया जाए।
=>लाभ :- जब एक बार डीबीटी योजना पूरी तरह लागू हो जाएगी तो फर्जी उपभोक्ताओं के चलते होने वाली गड़बडिय़ां और जालसाजी एक तरह से खत्म हो जाएंगी।
=>"सुझाव ":-
--> सब्सिडी को तार्किक रूप से लक्षित करने के लिए और कदम उठाए जाने की जरूरत है।
- ऐसे में जरूरतमंद लोगों को चिह्नित भी करना होगा, जो कम कड़ी चुनौती नहीं होगी।
- कई राज्यों में गलत पैमानों के चलते एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाली श्रेणी में है, जिससे वह कई सब्सिडी हासिल करने की पात्र बन जाती है। यह लक्षित करने की नाकामी है।
- केवल तीन फीसदी भारतीय ही आयकर अदा करते हैं, ऐसे में सही तरह से लक्षित करने के लिए शेष लोगों की आमदनी निर्धारण करना मुश्किल और विवादित मसला होगा।