आर्थिक बेहतरी की खातिर

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बाजार की अपेक्षाओं के मुताबिक कदम उठाया। आरबीआई की द्विमासिक मौद्रिक नीति की घोषणा से पहले देश के विभिन्न् बिजनेस अखबारों के सर्वेक्षणों में 80 फीसदी से ज्यादा विश्लेषकों ने ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद जताई थी।

  • इसके अनुरूप ही रिजर्व बैंक ने रेपो रेट (जिस दर पर रिजर्व बैंक अन्य बैंकों को कर्ज देता है) में 0.25 फीसदी की कटौती की है।
  • अब रेपो रेट 6 प्रतिशत हो गई है, जो इसका सात साल का सबसे निचला स्तर है। इसके अलावा रिजर्व बैंक ने रिवर्स रेपो रेट (वो दर जिस पर अपने पास जमा रकम पर रिजर्व बैंक दूसरे बैंकों को ब्याज देता है) में भी चौथाई फीसदी की कटौती की। ये दर अब 5.75 फीसदी हो गई है।

Effect

  • बैंकों के पास आसान शर्तों पर कर्ज देने के लिए ज्यादा पैसा होगा। रिजर्व बैंक अब तय पैमाने के आधार पर ब्याज दर संबंधी फैसले करता है। ये निर्णय छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) करती है। चूंकि जून में खुदरा मुद्रास्फीति दर पांच साल के सबसे निचले स्तर (1.54 प्रतिशत) पर थी, इसलिए एमपीसी के सदस्य सहमत हुए कि ब्याज दरों में कटौती का ये सही मौका है। मतभेद सिर्फ इस पर था कि कटौती चौथाई फीसदी हो, या आधा प्रतिशत। चार सदस्यों ने चौथाई फीसदी का पक्ष लिया।

Virtuous economic cycle

कर्ज दरें सस्ती होने से अर्थव्यवस्था को दो स्तरों पर लाभ होता है। मकान, कार या अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के लिए कम ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध होता है, जिससे लोग इन चीजों की खरीदारी के लिए उत्साहित होते हैं। इससे बाजार में मांग बढ़ती है, तो ज्यादा उत्पादन की स्थितियां बनती हैं। तब निवेशक नए निवेश के लिए प्रेरित होते हैं। नए निवेश से आर्थिक गतिविधियां तेज होती हैं, तो उससे रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं

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