सन्दर्भ :- भारत में एक सक्षम इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली के लिए एक प्राधिकरण स्थापित किए जाने की जरूरत है।
- देश में डिजिटल लेनदेन के बढ़ते चलन के साथ सरकार इस क्षेत्र के लिए अलग से नियामक बनायेगी। यह रेगुलेटर इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली को समर्थ बनाने के साथ इसके ट्रांजैक्शन शुल्कों का भी नियमन करेगा।
- डिजिटल पेमेंट पर रतन वातल समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार को ऐसे भुगतान के नियमन का बंदोबस्त केंद्रीय बैंक के कामकाज से अलग स्वतंत्र रूप से कराना चाहिए।
- रिजर्व बैंक बैंकिंग नियामक के तौर पर बैंकों के फायदे के लिए नीतियां बनाता है। वह भुगतान उद्योग में कंपनियों के कामकाज में प्रतिस्पर्धा और नवाचार उद्देश्यों पर जोर नहीं देता है। अब तक नियमन बैंकों पर केंद्रित रहे हैं।
- अगर अलग नियामक होगा तो उसका फोकस लेनदेन को आसान और लागत को तर्कसंगत बनाने पर होगा। लिहाजा भारत में एक सक्षम इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली के लिए एक प्राधिकरण स्थापित किए जाने की जरूरत है।
- रिजर्व बैंक वातल समिति के समक्ष अपनी बात रखते हुए कह चुका है कि पेमेंट का रेगुलेशन केंद्रीय बैंक के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिए। इसकी वजह यह है कि मुद्रा आपूर्ति का नियमन उसके कामकाज का अभिन्न हिस्सा है। इसमें लेनदेन के लिए मुद्रा में विश्वास बनाए रखना भी शामिल है।
- अलग रेगुलेटर की जरूरत का कारण बताते हुए कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट में नकदी एक हाथ से दूसरे हाथ में नहीं जाती है। यानी कुल मिलाकर इसमें मानवीय हस्तक्षेप नहीं होता है।
- बैंकिंग के बगैर इस तरह के लेनदेन हो सकते हैं। पेमेंट रेगुलेशन बैंकिंग नियमन से अलग हैं।
(Note:- आरबीआइ इस पर राजी नहीं हो रहा है।)