रेल मंत्री सरेश प्रभु ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के लिए ‘रोल आॅन, रोल आॅफ’ (रो-रो) परियोजना का शुभारंभ किया था. इसका लक्ष्य दिल्ली होकर दूसरे राज्यों में जाने वाले हजारों ट्रकों को दिल्ली आने से रोकना था ताकि सड़कों पर जाम और प्रदूषण में कमी की जा सके. लेकिन कई समस्याओं के चलते यह महत्वाकांक्षी परियोजना जल्द ही ढेर हो गई.
What was the scheme:
Ø इसके तहत व्यवस्था की गई थी कि पंजाब और हरियाणा से सोनीपत के रास्ते दिल्ली होते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे राज्यों में जाने वाले ट्रकों को दिल्ली से बाहर ही रोक दिया जाए.
Ø उसके बाद इन ट्रकों को वहां मालगाड़ी पर लादकर दिल्ली से बाहर तक पहुंचाया जाता था. वहां से आगे का रास्ता वे सड़क मार्ग से तय कर सकते थे.
Ø परियोजना को हरियाणा के गुरुग्राम से शुरू किया गया था. पहली खेप में वहां से 30 ट्रक लादकर उत्तर प्रदेश के मुरादनगर पहुंचाए गए.
Benefit to Trucks
Ø इस नई व्यवस्था से ट्रक मालिकों को काफी फायदा होना था
Ø इससे एक तो उनका दिल्ली पार करने में होने वाला ईंधन बचना था. हालांकि यह उतना नहीं था कि अकेले ही ट्रक मालिकों को इस योजना के प्रति आकर्षित कर सकता. क्योंकि ट्रक मालगाड़ी पर लादकर पहुंचाने के लिए उन्हें रेलवे को भी पैसा देना था.
Ø ट्रक मालिकों की असली बचत दिल्ली में अदा किए जाने वाले ग्रीन टैक्स के बचने से होती. दिल्ली की सीमा में आने पर सभी छोटे-बड़े ट्रक या अन्य वाणिज्यिक वाहनों को ग्रीन टैक्स के रूप में एक मोटी रकम चुकानी पड़ती है.
Ø ट्रक मालिकों को सबसे बड़ी समस्या दिल्ली के ‘नो एंट्री’ के नियम से होती है. यहां की सड़कों पर हर वक्त ट्रकों को नहीं चलाया जा सकता
Ø ट्रकों को दिल्ली से गुजरने के लिए अक्सर इसके बाहर घंटों इंतजार करना पड़ता है. इससे उन्हें खासा आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. यदि रेलवे की यह परियोजना सही ढंग से चलती तो ट्रक मालिकों और इन्हें चलाने वालों की इन सारी समस्याओं का समाधान भी हो जाता. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बड़े अरमानों के साथ शुरू हुई यह परियोजना ठीक से महीने भर भी नहीं चल पाई.
Why Stoppage
Ø परन्तु तो इस परियोजना की परिकल्पना से लेकर क्रियान्वयन तक इसमें मोजूद रहीं अनेक खामियों के चलते इसे रोकना पड़ गया. इसकी सबसे बड़ी गलती तो यही रही कि रेलवे के अधिकारियों ने इसे शुरू करने से पहले ठीक से जमीनी सर्वेक्षण तक नहीं किया.
Ø इस परियोजना के तुरंत बंद हो जाने की वजह यह बताई जा रही है कि मालगाड़ी और बिजली के तारों के बीच की दूरी इसके मुताबिक नहीं है. ट्रक जब मालगाड़ी पर लादे जाने लगे तब अधिकारियों को इस बात का अंदाजा हुआ. अब तारों और ट्रैक की दूरी तो बढ़ाई नहीं जा सकती. सरकार यदि ऐसा करना भी चाहे तो उसे कई तकनीकी समस्याओं से जूझना पड़ेगा और इसमें कई साल लग सकते हैं.
Ø ऐसे में तय हुआ कि मालगाड़ी पर केवल छोटे ट्रकों को ही लादा जाए. जो ट्रक लादे जा सकते थे, उसकी अधिकतम ऊंचाई 3.2 मीटर तय की गई. तकरीबन दो हफ्ते तक ऐसा ही हुआ. लेकिन उनकी संख्या उतनी नहीं थी जितनी इस योजना को सही से चलाने के लिए पर्याप्त होती. रेलवे अधिकारियों की परेशानी यह थी कि उन्होंने कुछ ही दिनों में इस सेवा से 20 हजार ट्रकों की रोज ढुलाई करने का लक्ष्य तय किया था. लेकिन उनकी सारी योजना धरी रह गई.
Ø अधिकारियों ने रेल मंत्रालय को एक रिपोर्ट भेजी. इसमें कहा गया कि तकनीकी वजहों से अभी यह सेवा चलाना संभव नहीं है, इसलिए इसे बंद करने की अनुमति दी जाए. इसके बाद इस सेवा को बंद कर दिया गया.
Ø इस परियोजना से जुड़े रहे रेलवे अधिकारियों का दावा है कि इसे जल्द ही दोबारा शुरू किया जाएगा. लेकिन मंत्रालय के ही अन्य लोग बताते हैं कि कम से कम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इसके दोबारा शुरू होने की संभावना काफी कम है. इस क्षेत्र में बिजली के तारों की ऊंचाई बाकी क्षेत्रों से काफी कम इसलिए भी है कि यहां रेल पटरियों के ऊपर से गुजरने वाले पुलों की संख्या काफी ज्यादा हैं