सहकारी आंदोलन समृद्धि का संवाहक

- सहकारिता को नए विश्व की परिकल्पना का आधारभूत सिद्धांत I
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सन् 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित किए जाने वाले सुस्थिर विकास लक्ष्यों के क्रियान्वयन में सहकारी संस्थाओं की प्रमुख भूमिका।
- अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) एवं अंतरराष्ट्रीय सहकारिता सहयोग (आईसीए) जैसे विविधता भरे संगठन चाहते हैं कि संयुक्तराष्ट्र संघ द्वारा सन् 2015 में परिभाषित होने वाले सुस्थिर विकास लक्ष्यों हेतु सहकारिता को प्रमुख भूमिका दी जाए। आईएलओ और आइसीए की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में करीब एक अरब लोग सहकारिता से या तो सदस्यों, उपभोक्ताओं, कर्मचारियों या भागीदारों के रूप में जुड़े हुए हैं। सबसे बड़े 300 सहकारिता उद्यमों का वार्षिक राजस्व 1,600 अरब डॉलर है जो स्पेन की अर्थव्यवस्था के बराबर है।

- सर्वेक्षण से यह भी जाहिर हुआ है कि जिन सहकारी संस्थानों से बात की गई उनमें से 85 प्रतिशत महसूस करते हैं कि वे रोजगार और समुचित कार्य स्थितियों को प्रोत्साहित करने में बहुत योगदान दे सकते हैं।
- सहकारिता के अंतर्गत स्वैच्छिक एवं खुली सदस्यता, सदस्यों की आर्थिक भागीदारी के माध्यम से लोकतांत्रिक नियंत्रण एवं शिक्षा प्रशिक्षण एवं समुदाय के प्रति जवाबदारी का भाव होता है। अपनी स्वाभाविक प्रकृति के चलते ये सामान्य मनुष्यों की आवश्यकताओं और चिंताओं से भी परिचित होते हैं। 
- अगर आप वास्तव में सुस्थिर विकास में विश्वास रखते हैं तो इसके क्रियान्वयन हेतु आपको सहकारिता को मुख्य मार्ग बनाना चाहिए।

- सहकारी संस्थाओं को लंबे समय से राज्य के स्वामित्व एवं निजी उद्यमों के मध्य एक तीसरे विकल्प के रूप में देखा जाता रहा है। हालांकि विकासशील देशों में सहकारी संस्थाओं का इतिहास दागदार रहा है। इनकी आर्थिक एवं सामाजिक सफलताओं ने सरकारों, खासकर अफ्रीका सरकारों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया गया है। इसकी वजह से ये बजाए अपने हिस्सेदारों के राज्य का उपकरण बनकर रह गए थे।

- सन् 1980 एवं 1990 के दशकों में सामने आए उदारीकरण एवं विनियमन की वजह से राज्य का प्रभाव काफी हद तक पाश्र्व में चला गया। परंतु सहकारिता व्यापार को संभाव्य लाभों को पुन: वैश्विक प्रमुखता सन् 2008 में प्रारंभ हुए वैश्विक आर्थिक संकट के बाद मिलनी प्रारंभ हुई।

- सहकारी संस्थाएं विकासशील देशों में भी मायने रखती हैं। सहकारी साख संस्थाओं की सदस्यता जो सन् 2000 में करीब 25 लाख थी वह सन् 2013 में बढ़कर 1 करोड़ 70 लाख हो गई। उनके अनुसार 24 अफ्रीकी देशों की 22385 सहकारी साख संस्थाओं (क्रेडिट यूनियन) की कुल संपत्ति 7.2 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर है। आईएलओ के शोध ने दर्शाया है कि अतीत की प्रतिष्ठा की समस्याओं के बावजूद सहकारी संस्थाओं में लोगों की भागीदारी स्थिर बनी हुई है।

- मूलत: कृषि सहकारी संस्थाओं की गिरावट ने सहकारी बैंकों के तेज प्रसार में योगदान दिया है। अपनी सफलताओं के बावजूद सहकारी संस्थाओं का नीति निर्माण में बहुत प्रभाव नहीं है। आवश्यकता है कि आज सहकारी संस्थाओं की भूमिका को हर क्षेत्र में स्वीकार किया जाना चाहिए।

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