- सरकारें मानकर चलती हैं कि वे अपने मनमुताबिक शहर बसा सकती हैं। लेकिन शहरीकरण सरकार की उंगली पकड़कर चलने वाली प्रक्रिया नहीं है। यह अपने आप चलती रहती है और कई बार इसका पता भी नहीं चलता। भारत में शहरीकरण का मामला कुछ ऐसा ही है।
- विश्व बैंक की रिपोर्ट 'अर्बनाइजेशन इन साउथ एशिया' में साफ कहा गया है कि भारत में शहरीकरण गुपचुप और अव्यवस्थित रूप में हो रहा है, यानी बिना किसी योजना के। हमारे देश में बड़े शहरों के आसपास शहरनुमा इलाके बनते जा रहे हैं, जिन पर किसी का ध्यान नहीं है।
- सरकारी आंकड़े (2011 की जनगणना के अनुसार) बताते हैं कि भारत में शहरी जनसंख्या लगभग 31 प्रतिशत है। लेकिन शहरों के इर्द-गिर्द की बसावट को भी नजर रखें तो यह आंकड़ा 55.3 प्रतिशत तक पहुंच जाता है।
- वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद जैसे महानगरों की आधिकारिक सीमारेखा के बाहर दूर तक एक बड़ी आबादी रहती है जो व्यावहारिक रूप से इन्हीं शहरों का हिस्सा है।
- दरअसल ये निकट या दूर के कस्बों, गांवों से आए लोग होते हैं जो बड़े शहरों की परिधि पर बस जाते हैं क्योंकि वहां रहने में ज्यादा खर्च नहीं पड़ता और कई तरह की बंदिशें भी नहीं होतीं। गांव वे इसलिए छोड़ देते हैं क्योंकि खेती में उन्हें अपना कोई फायदा नहीं दिखता।
- इसके अलावा गांवों में पारंपरिक पेशे और छोटे-मोटे कारोबार पहले ही खत्म हो चुके हैं। रोजी-रोटी की तलाश में निकले ये विस्थापित लोग शहरों के आसपास छोटे-छोटे काम-धंधे करते हैं। उनमें से कुछ रोज कोई न कोई सामान बेचने शहर जाते हैं, फिर शाम को लौट आते हैं। लेकिन अपने अस्थायी ठिकानों में वे बेहद नारकीय स्थितियों में रहते हैं।
- न वहां पानी-बिजली की सुविधा रहती है, न स्वास्थ्य और शिक्षा की। ये इलाके सरकारी परिभाषा के हिसाब से शहर नहीं कहे जा सकते। इनके अलावा पिछले दो दशकों में हर जगह उग आए छोटे-मोटे बाजार और कस्बे भी शहर नहीं कहे जा सकते।
- जब भी शहरों के विकास की बात होती है, पहले से आबाद शहरों में सुविधाएं बढ़ाने की योजना बन जाती है। यूपीए सरकार का अर्बन रिन्यूअल मिशन और मौजूदा सरकार की स्मार्ट सिटी योजना, दोनों इसी श्रेणी में आते हैं। पर शहरों के हाशियों या कस्बाई इलाकों के बारे में कभी कोई बात नहीं होती। इस बात की क्या गारंटी है कि कल को बनने वाले स्मार्ट शहरों के इर्द-गिर्द ऐसे इलाके नहीं बसेंगे।
-अगर ऐसे इलाके चिह्नित कर उनके लिए अलग से योजनाएं बनाई जाएं तो महानगरों पर बोझ कम किया जा सकता है। ऐसे क्षेत्रों में बिजली, सीवर लाइन, पीने का पानी, अस्पताल, स्कूल और तकनीकी शिक्षण संस्थानों की व्यवस्था की जाए तो देश का चेहरा बदल सकता है।