- पहले जहां किसी प्रोजेक्ट आदि पर खर्च हुए पैसे का हिसाब पाना टेढ़ी खीर होती थी वहीं, अब आरटीआइ के माध्यम से पाई-पाई का हिसाब मिल जाता है। इस बात का कुछ लोग बेजा इस्तेमाल भी कर रहे हैं। आरटीआइ कानून के जरिये सिस्टम में पारदर्शिता, जवाबदेही बढ़ी है और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक माहौल तैयार हुआ है। आरटीआइ के नाम से ही अधिकारी डरने लगे हैं।
- लेकिन इस स्थिति का फायदा उठाकर आरटीआइ से ऊल-जुलूल सूचनाएं मांगने वाले लोगों की पहचान भी होनी चाहिए ताकि इस कानून की विश्वसनीयता बनी रहे। ऐसे लोगों के बारे में संबंधित सूचना कार्यालयों में जानकारी होनी चाहिए जो इस कानून का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे लोगों के आवेदन पर निगाह भी रखी जानी चाहिए।
- पहले जिन छोटी-छोटी सूचनाओं के लिए हमें अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते थे, नेताओं, मंत्रियों व विधायकों की सिफारिश लगवानी पड़ती थी। वही काम अब एक आरटीआइ से बड़ी आसानी से हो जाते हैं।
- इससे कम्यूनिटी सर्विस, विकास कार्य, विभिन्न प्रोजेक्ट आदि के बारे में जानकारी हासिल कर उनका इस्तेमाल भ्रष्टाचार रोकने में, काम की गति बढ़ाने में व अन्य विभिन्न कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- पहले लोगों को पता भी नहीं चल पाता था कि उनके हित के लिए कौन-कौन से प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उन पर काम हो भी रहा है या नहीं, काम कहां तक पहुंचा है। लेकिन अब यह काम आसान हो गया है।
- हालांकि कई बार आरटीआइ के कारण कुछ कामों में बाधा भी आती है लेकिन ऐसे मामले बहुत कम ही सामने आते हैं। पर्यावरण, पानी, सीवर, शिक्षा, समाजसेवा, नागरिक सुविधाओं के लिए काम करने के इच्छुक लोगों के लिए आरटीआइ एक बेहतर हथियार है।
- इसके माध्यम से इन क्षेत्रों की योजनाओं व कार्यक्रमों में होने वाले गैरवाजिब खर्च, धांधली आदि का पता तो लगाया ही जा सकता है, भ्रष्ट अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई के लिए यह सुबूत के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
- आरटीआइ से फायदे अनगिनत हैं और नुकसान कुछ गिने-चुने ही हैं। जैसे कि बहुत से लोग व्यक्तिगत या राजनीतिक दुर्भावना के तहत आरटीआइ लगाकर दूसरे पक्ष के बारे में ऐसी सूचनाएं हासिल करने का प्रयास करते हैं जो किसी भी तरह न तो जनहित में होते हैं और न ही व्यावहारिक। दरअसल, ऐसे लोगों ने इस कानून की अच्छाइयों को पकड़कर ही उनका गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है।