#Editorial_Business_Standard
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केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते विभिन्न मंत्रालयों का दायित्व संभालने के लिए जिन 16 सचिवों की नियुक्ति की है उनमें से करीब एक दर्जन नौकरशाहों के सेवानिवृत्त होने में दो साल से भी अधिक समय बचा हुआ है। सरकार का यह फैसला स्वागत-योग्य कदम है। सचिव स्तर पर नियुक्त होने वाले अधिकारियों को कम-से-कम दो साल का वक्त मिलना ही चाहिए ताकि वे मंत्रालय से संबंधित निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में स्थायित्व और निरंतरता प्रदान कर सकें। ऐसा होने पर केंद्रीय मंत्रालयों की कार्यक्षमता और प्रदर्शन में सुधार आने की उम्मीद है।
Why long duration at this level:
- शीर्ष स्तर पर निरंतरता एवं स्थायित्व प्रदान करने का मकसद शासन में सुधार लाने में मददगार होने की वजह से वांछनीय है।
लेकिन कम-से-कम तीन कारण ऐसे हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पिछले सप्ताह लिया गया सरकार का यह फैसला अपेक्षित परिणाम दे पाने में असफल भी हो सकता है।
- पहला, यह निष्कर्ष निकालना दोषपूर्ण होगा कि अगले दो साल में इन दर्जन भर मंत्रालयों के नेतृत्व में निरंतरता बनी ही रहेगी। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सचिव बनाए गए इन अधिकारियों में से कुछ को सेवानिवृत्त होने के पहले उनके मौजूदा दायित्व से इतर किसी अन्य मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाएगी। पहले भी इस तरह के स्थानांतरण हो चुके हैं और आने वाले 24 महीनों में भी इसकी संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
- इस तरह सचिव के तौर पर दो साल का कार्यकाल सुनिश्चित होने का यह मतलब नहीं है कि उन्हें मौजूदा मंत्रालय में ही तैनात रहते हुए सेवानिवृत्त होने का मौका मिल जाएगा। उस तरह की स्थिति पैदा करने के लिए यह जरूरी होगा कि सभी महत्त्वपूर्ण केंद्रीय मंत्रालयों में सचिव के पद पर नियुक्ति के दौरान अधिकारियों का कार्यकाल सुनिश्चित किया जा
- , निश्चित कार्यकाल का विचार केंद्रीय मंत्रालयों के विभागों या प्रकोष्ठों के लिए कहीं अधिक प्रासंगिक है। इन विभागों का प्रत्यक्ष परिचालन उत्तरदायित्व होता है और शीर्ष स्तर पर लगातार होने वाले बदलाव उनके कामकाज को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष का औसत कार्यकाल हमेशा दो साल से भी कम रहा है। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड या केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के प्रमुखों का औसत कार्यकाल तो उससे भी कम रहा है।
Need to change current system:
- फिलहाल सचिव स्तर के केवल चार पदों पर ही दो साल का कार्यकाल सुनिश्चित किया गया है। कैबिनेट सचिव, रक्षा सचिव, विदेश सचिव और गृह सचिव के रूप में नियुक्त होने वाले अधिकारियों का कार्यकाल तय है। लेकिन अब समय आ गया है कि इस व्यवस्था का विस्तार दूसरे अहम मंत्रालयों तक भी किया जाए। सुनिश्चित कार्यकाल वाली व्यवस्था को वित्त सचिव, राजस्व सचिव, वाणिज्य सचिव, कृषि सचिव, दूरसंचार सचिव या पर्यावरण सचिव के लिए नहीं अपनाए जाने की कोई वजह नहीं दिखाई देती है।
- सरकार को इस तरह के विभागों के प्रमुखों को कम-से-कम तीन साल का कार्यकाल देने की व्यवस्था बनाने के बारे में सोचना चाहिए। वैसे इस तरह के फैसले से कनिष्ठ अधिकारियों की करियर विकास संबंधी आकांक्षाओं को पूरा करने में चुनौती खड़ी हो सकती है।
- सरकार को इन चुनौतियों से निपटने का रास्ता निकालना होगा और शीर्ष तक नहीं पहुंच पाने वाले अधिकारियों के समक्ष वैकल्पिक करियर का खाका पेश करना चाहिए। इन अधिकारियों को स्वैच्छिक अलगाव या निजी क्षेत्र में काम करने के मौके दिए जा सकते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभों पर भी कोई विपरीत असर नहीं पडऩा चाहिए। लेकिन इन विभागों की कमान कुछ महीनों में ही सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों के हाथ में देना एक गंभीर खामी है और सरकार को इससे निजात पानी होगी।
- सचिवों या विभागीय प्रमुखों को निश्चित कार्यकाल देने से ही बात नहीं बनेगी। इसी के साथ नौकरशाहों के करियर की विभिन्न स्तरों पर जांच भी चलती रहनी चाहिए ताकि उन्हें तरह- तरह के कार्यों के लिए विधिवत तैयार किया जा सके। वर्तमान में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकतर अधिकारियों का करियर एक ही ढर्रे से आगे बढ़ता है जिससे वे सेवानिवृत्ति के पहले सचिव स्तर के पद तक पहुंच जाते हैं। इन अधिकारियों को करियर के शुरुआती दौर में किसी खास क्षेत्र या मंत्रालय में महारत हासिल कराने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए जाते हैं जिससे वे एक तय रास्ते पर ही आगे बढ़ते जाते हैं।