पीएमओ का प्रारूप : तानाशाही या प्रभावशाली

- आजादी से पहले एक्जीक्यूटिव काउंसिल ऑफ गवर्नर जनरल सेक्रेटरी जनरल ऑफ फॉरेन एंड कॉमनवेल्थ ऑफिस के मार्फत सचिवालयी सहायता मुहैया कराती थी।

=>काम का निर्धारण
भारत सरकार में पीएमओ के कार्य दायित्व का निर्धारण बिजनेस रूल 1961 से होता है। अक्टूबर, 1970 में संशोधन के बाद मुख्य रूप से पांच कार्य तय किए गए।

=>नेहरू युग: प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान पीएमओ निरपवाद रूप से संयुक्त सचिव के नेतृत्व में काम करता था। समन्वय के काम का बड़ा हिस्सा कैबिनेट आफिस के मातहत होता था। यह व्यवस्था प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक बनी रही।

=>शास्त्री युग: पहली बार ऑफिस ऑफ द प्राइम मिनिस्टर प्राइम मिनिस्टर्स सेक्रेटिएट में तब्दील हुआ। अब इसकी कमान सरकार के सचिव के हाथ में आ चुकी थी। हालांकि पीएमओ को नया रंग-रोगन करने की शुरुआत इसी समय हुई लेकिन इंदिरा गांधी ने इसे नया तेवर-कलेवर दिया।

=>इंदिरा युग: प्रधान सचिव के रूप में पीएन हक्सर प्रधानमंत्री के सचिव बने। आर्थिक मामलों पर पीएन धर की पकड़ रही तो प्रशासन के सभी अंगों पर हक्सर का आधिपत्य कायम रहा। यह वही दौर था जब तमाम फैसले पीएमओ द्वारा लिए गए। अन्य मंत्रालयों, खुफिया विभागों, आदि पर इसकी खास नजर रहती थी।

=>मोरारजी देसाई का कार्यकाल: प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के कार्यकाल के दौरान सचिवालय का नामकरण प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) हुआ। इस दौरान गठबंधन सरकार का धर्म निबाहने के लिए पीएमओ के कार्य दायित्व में कई लचीले फेरबदल किए गए। लिहाजा इसकी ताकत थोड़ी कम हुई।

=>राजीव गांधी का कार्यकाल: राजीव गांधी की सरकार के कार्यकाल के दौराव फिर एक बार पीएमओ का ताकतवर रूप सामने आया। आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने में इसकी सक्रियता जगजाहिर हुई। हालांकि वीपी सिंह और चंद्रशेखर की सरकारों के दौरान कुछ खास बदलाव नहीं हुए।

=>नरसिंह राव सरकार: पीएमओ ने आर्थिक नीतियों को आकार देने में भूमिका निभाई। उदारीकरण को लागू करने और लाइसेंसी राज को खत्म करने में अति सक्रियता दिखी। विभिन्न मंत्रालयों द्वारा इस संदर्भ में उठाए गए कदमों में समन्वय स्थापित करने के लिए पीएमओ धुरी बना रहा।

=>अटल युग: आर्थिक पहलुओं में निर्णय लेने की सक्रिय सहभागिता रही। अगर इस दौरान विकास की ऊंची छलांग लगाने में देश सफल रहा तो वजह अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और सुरक्षा में पीएमओ की सक्रिय भागीदारी रही। पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद सृजित हुआ।

=>मनमोहन युग: संप्रग-एक और दो के दस साल के दौरान पीएमओ ज्यादा सक्रिय और ताकतवर नहीं रहा। सत्ता के दो केंद्र होने की बात इसकी प्रमुख वजह मानी गई। कुछ जानकार इस युग को पॉवर विदआउट रिस्पांस्बिलिटी एंड रिस्पांस्बिलिटी विदआउट पावरवाला भी करार देते रहे हैं।

=> मोदी युग ... ज्यादा क्या कहें ... मोदी ही सरकार हैं, और सरकार ही मोदी हैं।

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