पाकिस्तान के साथ चीन का संबंध सदैव ही विशिष्ट रहा है और द्विपक्षीय रिश्तों की सामरिक नींव 1950 के उत्तरार्द्ध में ही पड़ गई थी जब चीन और भारत के संबंधों में गिरावट की शुरुआत हुई।
- भारत से प्रतिकूल रिश्तों के कारण पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति को बीजिंग के लिए एक मूल्यवान दीर्घकालिक निवेश माना गया। भारत-चीन संबंधों में असहज स्थिति के कारण अक्टूबर 1962 में युद्ध भड़क गया था।
- पाकिस्तान को मदद के संदर्भ में चीन के कुछ महत्वाकांक्षी उद्देश्य हैं, विकास और बुनियादी ढांचे के लिए मदद के तौर पर करीब 46 अरब डॉलर की मदद देने के संकेत हैं। इसका उपयोग मुख्य तौर पर बिजली उत्पादन और परिवहन संपर्क को मजबूत बनाने के लिए किया जाएगा।
- इसका मुख्य लक्ष्य चीन-पाकिस्तान के बीच आर्थिक गलियारा कायम करना है जो अरब सागर के तट पर स्थित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को उत्तर-पश्चिम चीन में शिनजियांग से जोड़ेगा। माना जा रहा है कि इसके लिए कई अरब डॉलर की लागत वाली परियोजनाओं को 2030 तक पूरा कर लिया जाएगा। जब यह परियोजना पूर्ण हो जाएगी तो पूरी संभावना है कि इससे दक्षिण एशिया का व्यापार और ऊर्जा समीकरण मौलिक रूप से बदल जाएगा।
- भारतीय परिप्रेक्ष्य से देखें तो वास्तविकता यही है कि इस प्रस्तावित मार्ग के बनने से पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) पर चिंता और गहरा जाएगी। स्पष्ट है कि चीनी निवेश से नए राजनीतिक बदलाव आएंगे। मई माह में मोदी के बीजिंग दौरे में इस बात पर विशेष ध्यान रहेगा।
- मुख्य मुद्दा यही है कि क्या चीन की आर्थिक महत्वाकांक्षा और संपर्क बढ़ाने पर जोर सफल हो सकता है अथवा राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर उसकी चालाकी स्थितियों को और अधिक जटिल बनाएगी तथा चीन-पाकिस्तान और भारत के बीच त्रिपक्षीय रिश्ते और अधिक उलझेंगे? अनसुलझा भौगालिक विवाद अभी भी चीन-भारत संबंधों में बाधक बना हुआ है।
- इसी तरह कश्मीर मुद्दे को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद अभी भी कायम है। हकीकत यही है कि पाकिस्तान ने एकपक्षीय रूप से 1963 में जम्मू एवं कश्मीर के एक हिस्से को चीन को हस्तांतरित कर दिया, जिससे यह मसला और उलझ गया। अब जबकि मुख्य तौर पर पाकिस्तान को ध्यान में रखते हुए चीन कई बड़ी आर्थिक और संपर्क परियोजनाएं शुरू कर रहा है तो भारत को इस पर बहुत ही सावधानी से सोच-समझकर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए।
- भारत दक्षिण एशिया में चीन के इरादों को लेकर आशंकित है और यह मानता है कि या तो वह किनारे हो जाएगा या रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय) को छिपे तौर पर समर्थन देने वाले बीजिंग के साथ संघर्ष करेगा और चीन के उभार और प्रभाव को रोकने का प्रयास करेगा।
- संक्षेप में कहें तो चीन-पाकिस्तान के द्विपक्षीय रिश्तों को सामान्य रूप में नहीं देखा जा सकता, क्योंकि यह भारत के लिए अहितकर होगा। दिल्ली में यह धारणा गहरी है कि बीजिंग ने परोक्ष तौर पर पाकिस्तान को परमाणु हथियार और मिसाइल मुहैया कराई हैं और वह लगातार इस बात की जानबूझकर उपेक्षा कर रहा है कि पाकिस्तानी सेना सरकारी नीति के तहत भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने में जुटी हुई है।
- चीन पाकिस्तान को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए जितना अधिक राजकोषीय निवेश करने की योजना बना रहा है, उसका सार्थक उद्देश्य यही होना चाहिए कि पाकिस्तान में स्थिरता व सुरक्षा को बहाल किया जाए। बलूचिस्तान में स्थित ग्वादर दोनों देशों को रणनीतिक तौर पर एक अवसर प्रदान करता है, शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजना यही है कि स्थल और समुद्री मार्गों पर भारी निवेश किया जाए, ताकि पुराने सिल्क मार्ग को चालू किया जा सके।