1.एशिया महाद्वीप में पैर जमाना
विशेषज्ञों के अनुसार इस सदी में होने वाली समृद्धि अधिकांशतः एशिया-प्रशांत क्षेत्र से आएगी। दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति का इस इलाके में नए गठबंधन बनाना तर्कसंगत है। एशिया में चीन के अलावा, भारत ही सिर्फ प्रमुख देश है। भारत के साथ भागीदारी करना अमेरिका के लिए एकमात्र विकल्प रह जाता है।
2. चीन की चुनौती
वर्तमान वैश्विक गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जो आने वाले समय में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे सकता है। चीन के तथाकथित "शांतिपूर्ण विकास' रणनीति का मुकाबला करने के लिए, भारत अमेरिका के लिए सबसे अच्छा सहयोगी हो सकता है क्योंकि यह 3500 किमी लंबी भू-सीमा साझा करता है।
3. भारत का आकर्षक हथियार बाजार
फरवरी 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 और 2015 के बीच पांच वर्षों की अवधि में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश रहा है। यह प्रवृत्ति दुनिया के सबसे बड़े हथियार निर्यातक के लिए मौजूदा बाजारों (जैसे यूरोप) और प्रतिस्पर्धा (चीन से) में पूर्णता आने के संदर्भ में बड़ा अवसर प्रदान करता है।
4.भारत का ट्रैक रिकॉर्ड
इलाके में बेहतर रक्षा सहयोगी बनने के लिए भारत अधिक योग्य है क्योंकि यहां सैन्य-नागरिक संबंध सौहार्दपूर्ण हैं और लोकतंत्र क्रियाशील है। इस दृष्टि से अमेरिका ने भारत को प्रमुख रक्षा भागीदार के तौर पर मान्यता प्रदान की, इससे भारत को अमेरिका से अधिक उन्नत और संवेदनशील तकनीक खरीदने की अनुमति होगी।
5. ट्रांस-पेसिफिक क्षेत्र में भारत निर्णायक भूमिका में
- भारत को अब यह मानकर चलना चाहिए कि भारत इस समय ऐसी स्थिति में पहुंच रहा है जहां पर यह एशिया विशेषकर ट्रांस-पेसिफिक क्षेत्र में, अधिक सक्रिय एवं निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
- स्वाभाविक है कि ऐसे में भारत को किसी एक देश की बजाय कई देशों के साथ साझेदारी करनी होगी, यानी अमेरिका के साथ-साथ रूस (जिसके साथ भारत दशकों तक अत्यंत करीबी सैन्य संबंध रख चुका है), जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, ईरान, वियतनाम, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों के साथ।
- विशाखापत्तनम से भारत इसकी शुरुआत करता हुआ भी दिखा, जहां भारतीय नौसेना आयोजित इंटरनेशनल फ्लीट रिव्यू में 54 देश शामिल हुए थे।