राजकोषीय घटनाक्रम
- वर्ष 2016-17 में केन्द्र सरकार के राजकोषीय परिणाम कर राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि, पूंजीगत खर्चों में निरंतरता और गैर-वेतन/पेंशन राजस्व व्यय के समेकन के रूप में चिन्हित हुए। इसके परिणामस्वरूप सरकार को वर्ष 2016-17 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 3.5 प्रतिशत तक सीमित रखने में मदद मिली।
- वर्ष 2017-18 के केन्द्रीय बजट में क्रमिक राजकोषीय समेकन मार्ग को अपनाया गया है। वर्ष 2017-18 में राजकोषीय घाटे के कम होकर जीडीपी के 3.2 प्रतिशत पर आ जाने की आशा है। एफआरबीएम रूपरेखा के तहत राजकोषीय घाटे के जीडीपी का तीन प्रतिशत रहने का जो लक्ष्य तय किया गया है उसके वर्ष 2018-19 में प्राप्त होने की आशा है।
- 2017-18 के बजट में अनेक प्रक्रियागत सुधारों की शुरुआत की गई। इनमें रेलवे बजट को केन्द्रीय बजट में शामिल करना, केन्द्रीय बजट को निर्धारित तिथि से लगभग एक माह पहले यानी 1 फरवरी को पेश करना, खर्च को ‘योजना’ और ‘गैर-योजना’ व्यय में वर्गीकृत करने की परम्परा को समाप्त करना और अगले दो वित्त वर्षों के लिए प्रत्येक मांग हेतु अनुमानित व्यय (राजस्व एवं पूंजीगत) के साथ मध्यमकालिक व्यय रूपरेखा वक्तव्य की पुर्नसंरचना इन सुधारों में शामिल हैं।
- आगे चलकर जीएसटी इन महत्वपूर्ण राजकोषीय नीतिगत पहलों से भी अधिक चर्चा में रहा, जिसे 1 जुलाई, 2017 को लागू किया गया और उसमें केन्द्र एवं राज्य स्तरीय अनेक करों का समावेश कर दिया गया है। इससे भारतीय बाजारों और अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय बदलाव का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
मौद्रिक प्रबंधन एवं वित्तीय मध्यस्थता
- भारतीय रिजर्व बैंक ने वर्ष 2016-17 के दौरान नीतिगत दर में 0.5 प्रतिशत की कटौती की। हालांकि, रिजर्व बैंक अपनी मौद्रिक नीति के तहत फरवरी, 2017 से समायोजन के बजाय तटस्थ रुख पर फोकस करने लगा। अगस्त, 2017 में रेपो रेट 6.00 प्रतिशत और रिवर्स रेपो रेट 5.75 प्रतिशत रहा।
- 9 नवंबर, 2016 को पुराने बड़े नोटों का चलन बंद करने के निर्णय से बैंकिंग प्रणाली में मुद्रा प्रचलन काफी हद तक घट गया। 31 मार्च, 2017 तक मुद्रा प्रचलन में 19.7 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, जबकि आरक्षित मुद्रा में 12.9 प्रतिशत की कमी आंकी गईं।
- बैंकों से कर्जों का उठाव बाद में और भी घटता चला गया। वर्ष 2016-17 के दौरान सकल बकाया बैंक ऋण में औसतन लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान उद्योग जगत को मिले औसत सकल बैंक ऋण में 0.2 प्रतिशत की कमी आंकी गई।
- अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में विकास की सुस्त गति और बढ़ती ऋणग्रस्तता का असर बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता पर पड़ा, जो चिंता का विषय है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) का सकल गैर-निष्पादित अग्रिम (जीएनपीए) अनुपात सितम्बर, 2016 के 9.2 प्रतिशत से बढ़कर मार्च 2017 में 9.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया।
- प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत वित्तीय समावेश निरंतर तेज गति हासिल कर रहा है। प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत शून्य बैलेंस वाले खातों की संख्या निरंतर घटती जा रही है, जो मार्च 2015 के लगभग 58 प्रतिशत से कम होकर दिसम्बर, 2016 में तकरीबन 24 प्रतिशत के स्तर पर आ गई।
कीमतें और महंगाई
- पिछले तीन वर्षों के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर में उल्लेखनीय कमी देखने को मिली है। सीपीआई पर आधारित महंगाई दर जून, 2017 में अत्यंत कम होकर 1.5 प्रतिशत के स्तर पर आ गई।
- वर्ष 2016-17 के दौरान समस्त जिंस समूहों में व्यापक कमी आंकी गई। सर्वाधिक कमी खाद्य पदार्थों की कीमतों में दर्ज की गई।
- विगत महीनों में महंगाई दर बढ़ाने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार रहने वाली खाद्य महंगाई में वर्ष के दौरान उल्लेखनीय कमी आई है। मानसून के सामान्य रहने के साथ-साथ दालों और सब्जियों की आपूर्ति बेहतर होने से ही खाद्य महंगाई में कमी संभव हो पाई है। विगत कुछ महीनों के दौरान मुख्य महंगाई दर में भी कमी दर्ज की गई है, जो अंतर्निहित रुख को दर्शाती है।
- विगत कुछ महीनों के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) और थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई में सामंजस्य देखने को मिली है।
- वर्ष 2016-17 के दौरान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों दोनों में ही महंगाई कम हुई है। हाल के महीनों में ग्रामीण और शहरी महंगाई के बीच अंतर घट गया है।
जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और ऊर्जा
- भारत ने 2 अक्टूबर, 2016 को पेरिस समझौते का अनुमोदन किया। वर्ष 2020 के बाद की अवधि के लिए भारत के कदम उसके द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (एनडीसी) पर आधारित हैं।
- भारत के एनडीसी में वर्ष 2005 के स्तर के मुकाबले वर्ष 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 33-35 प्रतिशत की कमी करने, वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म आधारित विद्युत उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर स्थापित विद्युत क्षमता (संचयी) का 40 प्रतिशत करने और वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन एवं वृक्ष कवर के जरिये 2.5–3 गीगाटन उत्सर्जित कार्बन डाईऑक्साइड का अतिरिक्त कार्बन भंडार बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
- बहुपक्षीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ‘पेरिस नियम पुस्तिका’ तैयार करने में संलग्न हैं, जिसमें आवश्यक कदम एवं सहायता के लिए पारदर्शिता फ्रेमवर्क हेतु पेरिस समझौते पर अमल से संबंधित दिशा-निर्देशों तथा रूपरेखा, एनडीसी की विशेष बातें एवं लेखा विधि इत्यादि शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वयनकारी समिति एवं छह उप-समितियों का गठन करके भारत के एनडीसी पर अमल का खाका तैयार किया जा रहा है। ये समितियां अपने संबंधित एनडीसी लक्ष्यों के बारे में विस्तार से बताने और इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विशिष्ट नीतियों एवं कदमों की पहचान करने में जुटी हुई हैं।
- भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में स्वयं ही महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत दुनिया में सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार कार्यक्रम क्रियान्वित कर रहा है। इस कार्यक्रम में समग्र नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को वर्ष 2022 तक पांच गुना बढ़ाकर 175 गीगावाट करने की परिकल्पना की गई है। इसमें 100 गीगावाट सौर ऊर्जा, 60 गीगावाट पवन ऊर्जा, 10 गीगावाट बायोमास और 5 गीगावाट की अल्प पनबिजली क्षमता शामिल हैं।
- अपेक्षाकृत ज्यादा दक्ष ऊर्जा स्रोतों तक निर्धन लोगों की पहुंच बढ़ाने की जरूरत है। इस दिशा में आवश्यक कदम उठाते हुए सरकार द्वारा अनेक योजनाएं जैसे कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, पहल योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना क्रियान्वित की गई हैं। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में विशेष फोकस वाले कदम उठाए गए हैं ताकि अपेक्षाकृत कम उत्सर्जन और जलवायु अनुकूल विकास का मार्ग सुनिश्चित किया जा सके।
- भारत प्रगति के एक ऐसे चरण में है जिसमें तेज रफ्तार से विकास करने और बड़ी संख्या में देशवासियों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने की जरूरत है। अब भी बड़ी संख्या में देशवासी बिजली की सुविधा से वंचित हैं। एसडीजी 7 का उद्देश्य सभी की पहुंच किफायती, विश्वसनीय, सतत तथा आधुनिक ऊर्जा तक सुनिश्चित करना है।
- कोयला और नवीकरणीय ऊर्जा आधारित बिजली का सामाजिक लागत विश्लेषण विशेष अध्याय में किया गया है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा की ऊंची सामाजिक लागत के बारे में संकेत मिलता है। भंडारण लागत और कोयले पर निर्भर बिजली पर आधारित परिसम्पतियों को बेकार छोड़ देना ऐसी प्रमुख लागत हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा आधारित बिजली से संबंधित हैं। चूंकि भारत के लिए पहला लक्ष्य अपनी आबादी को शत-प्रतिशत ऊर्जा पहुंच सुलभ कराना और विकास में कमी की खाई को पाटना है, इसलिए समस्त ऊर्जा स्रोतों का दोहन करने की जरूरत है।
- भारत के वित्तीय क्षेत्र में भी अनेक कदम उठाए गए हैं। मई 2016 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक, नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सौर ऊर्जा आधारित विद्युत जेनरेटरों, बायोमास आधारित विद्युत जेनरेटरों, पवन चक्कियों, सूक्ष्म पनबिजली संयंत्रों इत्यादि के लिए 15 करोड़ तक के बैंक ऋणों को प्राथमिकता क्षेत्र वाले कर्जों का हिस्सा माना जाएगा। विदेशी वाणिज्यिक ऋण (ईसीबी) से जुड़े मानकों को और भी उदार बना दिया गया है, ताकि हरित परियोजनाएं सीमा पार ऋण जुटाने के लिए इस सुविधा का लाभ उठा सकें। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने मई 2017 में हरित बांड जारी करने की रूपरेखा पेश कर दी है।
बाह्य क्षेत्र
- भारत में भुगतान संतुलन की स्थिति वर्ष 2013-14 से लेकर वर्ष 2015-16 तक की अवधि के दौरान अच्छी एवं संतोषजनक रही थी, जो वर्ष 2016-17 में और बेहतर हो गई। व्यापार एवं चालू खातों के घाटे में निरंतर कमी और देश में पूंजी के प्रवाह में लगातार वृद्धि से ही यह संभव हो पाया, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में और ज्यादा इजाफा हुआ।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे हो रहे सुधार को परिलक्षित करते हुए भारत का निर्यात दो वर्षों तक सुस्ती का रुख दर्शाने के बाद वर्ष 2016-17 में 12.3 प्रतिशत बढ़ गया। इसके साथ ही आयात में 1.0 प्रतिशत की मामूली कमी दर्ज की गई, जिससे व्यापार घाटा वर्ष 2016-17 में कम होकर 112.4 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 5 प्रतिशत) के स्तर पर आ गया, जो वर्ष 2015-16 में 130.1 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 6.2 प्रतिशत) था।
- चालू खाता घाटा (सीएडी) निरंतर कम होकर वर्ष 2016-17 में जीडीपी के 0.7 प्रतिशत के स्तर पर आ गया, जो वर्ष 2015-16 में जीडीपी का 1.1 प्रतिशत था। व्यापार घाटे में तेजी से हुई कमी की बदौलत ही यह संभव हो पाया, जो शुद्ध अदृश्य आय में हुई कमी की तुलना में बहुत ज्यादा है।
- पूंजी का शुद्ध प्रवाह वर्ष 2016-17 में थोड़ा कम होकर 36.8 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.6 प्रतिशत) के स्तर पर आ गया, जो पिछले वर्ष 40.1 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.9 प्रतिशत) था। मुख्य रूप से अनिवासी भारतीयों की जमा राशि में कमी के चलते ही यह स्थिति देखने को मिली।
- भारत में एफडीआई का सकल प्रवाह वर्ष 2016-17 में काफी बढ़कर 60.2 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया, जो वर्ष 2015-16 में 55.6 अरब अमेरिकी डॉलर था। हालांकि, एफडीआई का शुद्ध प्रवाह (बाह्य एफडीआई के समायोजन के बाद) 1.1 प्रतिशत की मामूली कमी के साथ 35.6 अरब अमेरिकी डॉलर के स्तर पर आ गया, जो वर्ष 2015-16 में 36.0 अरब अमेरिकी डॉलर था।
- वर्ष 2017-18 (अप्रैल-जून) के दौरान निर्यात में दहाई अंकों (10.6 प्रतिशत) में वृद्धि दर्ज की गई। यही नहीं, निर्यात में पिछले 11 महीनों से निरंतर वृद्धि दर्ज की जा रही है।
- जिन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को चालू खाता घाटे का सामना करना पड़ रहा है, उनमें भारत एक ऐसा देश है, जिसके पास दूसरा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। इस मामले में भारत से केवल ब्राजील ही आगे है, जिसके पास 7 जुलाई, 2017 तक 386.4 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार आंका गया था।
- नवंबर 2016 से लेकर जनवरी 2017 तक निरंतर अपनी कीमत में कमी की स्थिति का सामना करने के बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की औसत मासिक विनिमय दर ने फरवरी से लेकर जून 2017 तक की अवधि के दौरान निरंतर मजबूती दर्शाई है। वहीं, दूसरी ओर पौंड स्टर्लिंग, यूरो और जापानी येन के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में मासिक स्तर पर उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। वर्ष 2016-17 में अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं के मुकाबले रुपये का प्रदर्शन बेहतर रहा।
- वर्ष 2016-17 के दौरान जहां एक ओर औसतन (सालाना आधार पर) भारतीय रुपये का अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 2.4 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ, वहीं दूसरी ओर 6 एवं 36 मुद्राओं के समूह के मुकाबले सांकेतिक प्रभावी विनिमय दर (एनईईआर) के मामले में रुपये का क्रमशः 0.5 तथा 0.1 प्रतिशत अवमूल्यन हुआ। हालांकि, वर्ष 2016-17 में 6 एवं 36 मुद्राओं के समूह के मुकाबले वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) के मामले में रुपये का क्रमशः 2.7 तथा 2.2 प्रतिशत अधिमूल्यन हुआ।
- मार्च 2016 के आखिर की तुलना में मार्च 2017 के आखिर में भारत के ज्यादातर बाह्य ऋण संबंधी संकेतकों ने बेहतरी दर्शाई। मार्च 2017 के आखिर में भारत पर कुल विदेशी ऋण भार 471.9 अरब अमेरिकी डॉलर का रहा, जो मार्च 2016 के आखिर की तुलना में 13.1 अरब अमेरिकी डॉलर (2.7 प्रतिशत) कम है। विदेशी ऋण एवं जीडीपी का अनुपात इस दौरान 23.5 प्रतिशत से कम होकर 20.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गया, जबकि विदेशी मुद्रा भंडार ने विदेशी ऋण को 78.4 प्रतिशत कवर मुहैया कराया, जो पिछले वर्ष 74.3 प्रतिशत था।
- व्यापार के मोर्चे पर भी बेहतरी की स्थितियां नजर आने लगी हैं। वर्ष 2017 और वर्ष 2018 के दौरान वैश्विक व्यापार में क्रमशः 3.8 प्रतिशत तथा 3.9 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। यही नहीं, भारत के व्यापार में भी अच्छी-खासी वृद्धि देखने को मिल रही है।
कृषि और खाद्य प्रबंधन
- भारत में खेतों का औसत आकार छोटा है और 1970-71 से उसमें कमी आती जा रही है। छोटी काश्तकारी कृषि में अर्थव्यवस्था का पूरा लाभ उठाने में प्रमुख बाधा है।
- कृषि की प्रगति का आकलन विभिन्न फसलों के वैश्विक उत्पादन के आधार पर किया जाना चाहिए ताकि किसानों की आय में इजाफा हो सके।
- कृषि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए ऋण एक महत्वपूर्ण जरिया है। किसानों के लिए ऋण के अनौपचारिक स्रोतों का दबदबा चिंता का प्रमुख विषय है। कृषि ऋण के आवंटन में क्षेत्रीय असमानता को भी दूर किया जाना आवश्यक है।
- भारत में बागवानी के सामने जो प्रमुख चुनौतियां मौजूद हैं, उनमें पैदावार के बाद होने वाला नुकसान, बेहतर बीजों की उपलब्धता और छोटे किसानो के लिए अपनी उपज बेचने के लिए बाजार तक पहुंच में कमी शामिल हैं।
उद्योग एवं संरचना
- 2015-16 के दौरान औद्योगिक कामकाज 8.8 प्रतिशत था, जिसमें 2016-17 में कमी हुई और वह 5.6 प्रतिशत हो गया।
- 2011-12 की नई श्रृखला के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का औद्योगिक विकास बताता है कि 2016-17 में कुल विकास 5 प्रतिशत रहा, जबकि पिछले साल यह 3.4 प्रतिशत था।
- 8 प्रमुख उद्योगो आधारित सूचकांक के अनुसार 2016-17 में विकास 4.8 प्रतिशत रहा, जबकि 2015-16 में यह 3.0 प्रतिशत था।
- भारतीय बाजारों में इस्पात की डंपिंग को रोकने के लिए 2016 में सरकार ने न्यूनतम आयात मूल्य लागू किया था। सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का परिणाम सामने आ रहा है क्योंकि भारत द्वारा इस्पात के आयात में 36.2 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि 2016-17 में निर्यात 102 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
- कपड़ा क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं बहुत अधिक हैं, खासतौर से महिलाओं के लिए। 22 जून, 2016 को सरकार ने कपड़ा एवं परिधान क्षेत्र के लिए 6000 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज को मंजूरी दी थी। नवंबर, 2016 में धनराशि के जारी होने के बाद कपड़ा निर्यात में तेजी देखी गई।
- सरकार द्वारा किये गए उपायों के परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2016-17 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 43.4 अरब अमेरीकी डॉलर हुआ, जो अब तक का सर्वोच्च निवेश है।
- यातायात संबंधी संरचना के मद्देनजर भारत कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत आगे है।
- 2016-17 के दौरान भारतीय रेल ने माल ढुलाई से 104339 करोड़ रुपये (अनंतिम) आय की, वर्ष में कम शुल्क वाले माल ढुलाई को अधिक मात्रा में करने के कारण 2015-16 के मद्देनजर 4.5 प्रतिशत की ऋणात्मक वृद्धि दर्ज की। 2016-17 के दौरान यात्री भाड़े से होने वाली आय 46280 (अनंतिम) रही। इस प्रकार उसमें 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।
- भारतीय घरेलू हवाई सेवाओं का भारत केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय यातायात में बहुत कम हिस्सा रहा।
- विदेशी हवाई सेवाओं द्वारा 6वीं मुक्त सेवा का इस्तेमाल, भारत की अपनी क्षमता का कम उपयोग, 0/20 नियम और बेड़ों की कमी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
- 20 नवम्बर, 2015 को सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति ठीक करने के लिए उदय योजना शुरू की थी। उदय योजना में शामिल होने वाले 26 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश का कुल बकाया ऋण 3.82 लाख करोड़ रुपये था। अब तक 15 राज्यों ने कुल 2.09 लाख करोड़ रुपये के उदय बान्ड जारी किए हैं। इनके अलावा डिस्कॉम ने 0.23 लाख करोड़ रुपये कीमत के बांड जारी किए हैं।
- उदय के शुरू होने के बाद सभी राज्यों का राष्ट्रीय औसत घाटा वित्त वर्ष 2016 में 21.1 प्रतिशत से कम होकर वित्त वर्ष 2017 में 20.2 प्रतिशत हो गया है। 2015-16 में बिलिंग क्षमता 81व प्रतिशत थी, जो 2016-17 में 83 प्रतिशत हो गई। इस तरह इसमें 2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। अखिल भारतीय स्तर पर और 15 राज्यों ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए शुल्कों की समीक्षा जारी कर दी है।
- स्मार्ट सिटी मिशन के अंतर्गत अप्रैल, 2017 तक 941 करोड़ रुपये की 57 परियोजनाएं पूरी कर ली गई हैं। 2018 के दौरान 15305 करोड़ रुपये की अतिरिक्त 462 परियोजनाओं को पूरा कर लिये जाने की संभावना है। इनमें कुछ परियोजनाएं शुरू हो चुकी हैं और कुछ अपने समय से चल रही हैं।
सेवा क्षेत्र
- सेवा क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास में लगातार अहम भूमिका निभा रहा है। 2016-17 में कुल मूल्य संवर्धन विकास में उसका हिस्सा 62 प्रतिशत है। बहरहाल, इस क्षेत्र की वृद्धि पिछले वर्ष की 9.7 प्रतिशत वृद्धि की तुलना में 2016-17 में 7.7 प्रतिशत रही। इसके बावजूद यह 2 अन्य क्षेत्रों से अधिक और 15 प्रमुख क्षेत्रों में लगभग सबसे ऊपर कायम है।
- सेवा क्षेत्र के विकास में नरमी आने का कारण 2 सेवा वर्गों के विकास की धीमी गति है। यह वर्ग कारोबार, होटल, यातायात, संचार और प्रसारण संबंधी सेवाएं (7.8 प्रतिशत) तथा वित्तीय, रियल इस्टेट और व्यावसायिक सेवाएं (5.7 प्रतिशत) संबंधी है। कुल पूंजी निर्माण में सेवा क्षेत्र का हिस्सा मौजूदा मूल्य के आधार पर लगातार बढ़ता जा रहा है। 2011-12 में यह 53.3 प्रतिशत था, जो 2015-16 में बढ़कर 60.3 प्रतिशत हो गया।
- आमतौर पर 2014-15 और 2015-16 (27.3 प्रतिशत और 29.3 प्रतिशत) में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में उल्लेखनीय विकास हुआ है। यह विकास खासतौर से सेवा क्षेत्र (67.3 प्रतिशत और 15 सेवाओं में सर्वोच्च 64.3 प्रतिशत) में दर्ज किया गया है। बहरहाल, 2016-17 में कुल एफडीआई इक्विटी के प्रवाह में नरमी देखी गई और सेवा क्षेत्र (सर्वोच्च 15 सेवाएं) में एफडीआई इक्विटी के प्रवाह में भी गिरावट आई।
- आर्थिक संकट के पूर्व की अवधि में भारत और विश्व के सेवा निर्यात में विकास लगभग समतल रहा, जबकि संकट बाद की अवधि में विश्व सेवा निर्यात विकास की तुलना में भारतीय सेवा के विकास में तेज गिरावट देखी गई। 2016-17 में सेवा निर्यातों में 5.7 प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें यातायात, व्यापार सेवाएं, वित्तीय सेवाएं और पर्यटन जैसे प्रमुख क्षेत्र शामिल हैं। हालांकि, सॉफ्टवेयर सेवा निर्यात का कुल सेवाओं में लगभग 45.2 प्रतिशत हिस्सा रहा, जिसमें 0.7 प्रतिशत की मामूली गिरावट देखी गई।
- विश्व रुझानों के अनुरूप भारत के सेवा क्षेत्र के कामकाज में 2016-17 के दौरान कमी रही। इसके बावजूद कुछ सेवाएं भारत की आर्थिक वृद्धि में लगातार योगदान देती रही हैं। दूरसंचार के क्षेत्र में बेहतर कामकाज हुआ और जिओ प्रभाव के मद्देनजर दूरसंचार कनेक्शन में इजाफा हुआ। इसके अलावा कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के विकास में कमी के बावजूद घरेलू पर्यटन संबंधी हवाई सेवाओं, विदेशी मुद्रा आय संबंधी पर्यटन सेवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी व्यापार प्रबंधन (आईटी-बीपीएम) में वृद्धि हुई।
- पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2016 के दौरान विदेशी पर्यटक आगमन में 9.7 प्रतिशत और अमेरीकी डॉलर के संदर्भ में पर्यटन के क्षेत्र में होने वाली विदेशी मुद्रा आय में 8.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ। सरकार ने पर्यटन क्षेत्र के प्रोत्साहन के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं, जिनमें 161 देशों के नागरिकों के लिए ई-वीजा, भारत को पर्यटन के स्थल के रूप में प्रोत्साहित करना, बहुभाषी पर्यटक सूचना की शुरूआत और स्वच्छ पर्यटन मोबाइल ऐप शामिल हैं।
- नेस्कॉम के अनुसार 2016-17 में आईटी-बीपीएम के संबंध में भारत के कुल राजस्व के बढ़ने की संभावना है जिसमें हार्डवेयर शामिल नहीं है। आशा की जाती है कि इन दोनों के संबंध में यह आय क्रमशः 154 अरब अमेरीकी डॉलर और 140 अरब अमेरीकी डॉलर का आंकड़ा छू लेगी। इस तरह इनमें क्रमशः 7.8 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत की वृद्धि संभावित है। इसी प्रकार आईटी-बीपीएम निर्यात के विषय में उम्मीद की जाती है कि वह 7.6 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 117 अरब अमेरीकी डॉलर हो जाएगा। इस बीच भारत, सरकार – से – सरकार और सरकार-से-नागरिक सेवाओं के लिए प्रौद्योगिकीयों को तेजी से अपना रहा है, जिससे घरेलू आईटी-बीपीएम बाजार को ताकत मिलेगी।
- रियल इस्टेट क्षेत्र में शामिल स्वामित्व और रिहायशी इकाइयों का 2015-16 में भारत के कुल जीवीए में 7.6 प्रतिशत हिस्सा रहा है। पिछले तीन सालों के दौरान इस क्षेत्र का विकास धीमा हुआ है। उल्लेखनीय है कि यह 2014-15 में 6.7 प्रतिशत हो गया, जबकि 2013-14 में यह 7.5 प्रतिशत था। इसके अलावा 2015-16 में यह 4.5 प्रतिशत तक गिर गया है। कम मांग के बावजूद मकानों की कीमतों में गिरावट नहीं आई और एनएचबी-रेसीडेक्स कायम रहा। 2015-16 की चौथी तिमाही की तुलना में 2016-17 की चौथी तिमाही के दौरान 50 शहरों में से 33 शहरों में कीमतों में इजाफा देखा गया।
- उपग्रह मैपिंग और उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं के क्षेत्र के संबंध में भारत का भविष्य उज्ज्वल है और इसमें अपार संभावनाएं हैं। पिछले 5 वर्षों के दौरान उपग्रह मैपिंग से भारत ने 100 करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा का अर्जन किया। उपग्रह प्रक्षेपण सेवाओं के निर्यात से भारत की विदेशी मुद्रा आय में बढ़ोतरी हुई है, जो 2015-16 और 2016-17 के संबंध में है। परिणामस्वरूप वैश्विक उपग्रह प्रक्षेपण सेवा से होने वाली आय में भारत का हिस्सा बढ़ा है।
- भारत का सेवा क्षेत्र विकास विश्व वित्तीय संकट के दौरान बहुत लचीला रहा और हाल के समय में उसमें नरमी देखी जा रही है। बहरहाल, हाल के महीनों में कुछ क्षेत्र बेहतर कामकाज कर रहे हैं।
सामाजिक संरचना, रोजगार और मानव विकास
- प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में बेहतर शिक्षण और माध्यमिक शिक्षा में लक्षित नामांकन स्तर में वांच्छित उपलब्धि मुख्य चुनौती है।
- भारत में रोजगार की स्थिति एक बड़ी चुनौती है, जो अनौपचारिक, असंगठित और अनियमित कामगारों से संबंधित है। इसके संबंध में कम लोगों को रोजगार प्राप्त है, कुशलता की कमी है और श्रम बाजारों पर कठोर श्रम नियम हावी हैं। इसके अलावा अनुबंधित श्रम भी एक चुनौती है।
- भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र के सामने में भी कई चुनौतियां हैं। इनमें स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक भूमिका कम हो रही है, स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है और कई लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं सस्ती दर पर नहीं मिल पा रही हैं।
सरकार के स्वच्छ भारत मिशन ने शुरूआत से ही उल्लेखनीय प्रगति की है। स्वच्छता और खुले में शौच से मुक्ति पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। खुले में शौच जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आ रही है। अनुमान है कि यह संख्या 35 करोड़ से कम हो जाएगी