लुसेंट जैसी किताबों को पढ़कर आप तथ्य रट तो सकते हैं लेकिन समझ विकसित नहीं कर सकते। मैंने देखा है, कई बार लोगों को बेसिक सी बातों के बारे में जानकारी नहीं होती।
एक सवाल किसी ने पोस्ट किया था चालू खाते के घाटे की बारे में लेकिन उन्हें बैंक में खुलने वाले चालू खाते और बैलेंस ऑफ़ पेमेंट में इस्तेमाल होने वाले चालू खाते के टर्म का अंतर नहीं पता था। वैसे इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी और ना ही उनकी कमी बता रही हूँ, ये तो ट्रेंड ही ऐसा चल रहा है कि लुसेंट रट लो ये रट लो वो रट लो।
जैसे मुस्लिम लीग के Direct Action की तारीख़ तो बहुत लोगों को पता होगी लेकिन उसका कारण अधिसँख्य को नहीं पता होगा।
ये रट्टू तोता बन कर आप अपने पैर कुल्हाड़े पर मार रहे है, इससे pre भले ही निकल जाए mains नहीं निकलेगा और अगर चमत्कार हो गया और mains भी निकल गया तो याद रखिये चमत्कार बार बार नहीं होते, mains के बाद इंटरव्यू भी होता है।
इसके अलावा दुसरे प्रकार की पोस्ट भी होती है कोई ये नोट्स दे दो कोई वो नोट्स दे दो, दोस्तों दूसरे के नोट्स आपके किसी काम नहीं आएंगे, ये नोट्स उन्होंने अपने लिए अपनी मेहनत से अपने हिसाब से अपने समझने के लिए बनाये है तो ये उनके लिए तो फायदेमंद है आपके लिए नहीं।हाँ अगर नोट्स एक व्यू develop करने के लिए मांगे जा रहे हैं जिस से उनके आधार पर हम ये देख सकें कि किसी विशिष्ट विषय का नोट्स बनाने में क्या बाते ध्यान रखनी हैं तो बात अलग है।
मतलब ये की अगर असली सफलता चाहते हैं जो संतुष्टि भी दे तो उसके लिए आपको तथ्यों की जानकारी के साथ तथ्यों की समझ भी विकसित करनी होगी और ये अपने आप होगी जब आप खुद पढ़ेंगे और अपने खुद के नोट्स बनाएंगे। मार्गदर्शन लेना अच्छी बात है पर निर्भर ही हो जाना आपकी मौलिकता और रचनात्मकता की आपके ही हाथों होने वाली हत्या है।
बात थोड़ी कड़वी जरूर है लेकिन है सच और असरदार।