आभार : अरविन्द जैन - IIS, UPSC दर्शन शास्त्र टॉपर, वर्ष 2014, अंक 313 / 500
दोस्तों मुख्य परीक्षा की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और आप सभी अपनी सधी हुई रणनीति के साथ डटकर तैयारी कर रहे होंगे। परीक्षा के इस चरण में सभी प्रश्नपत्रों का अपना महत्व है और हम किसी भी पेपर की अनदेखी नहीं कर सकते लेकिन इन सभी प्रश्नपत्रों में एक जगह हम अधिक आरामदायक स्थिति में होकर अच्छे अंक प्राप्त कर सकते है,और वह है हमारे द्वारा चुना गया विषय।दोस्तों जहाँ अन्य प्रश्नपत्रों में 50% अंक लाना अत्यन्त मुश्किल है वहीँ हम अपने विषय में आसानी से इसे पार कर सकते हैं।अपने विषय में हमारी जितनी पकड़ मजबूत होगी हमें उतने अधिक अंक मिलने की गुंजाइश रहेगी।अगर आपके पास दर्शन शास्त्र है तो ये उम्मीद और अधिक बढ़ जाती है क्योंकि इसका पाठ्यक्रम अन्य लोकप्रिय विषयों की तुलना में छोटा है जिसका revision आसानी से किया जा सकता है।
आज में उन बातों पर चर्चा करूँगा जिन पर ध्यान देने से दर्शन शास्त्र में अधिक अंक प्राप्त करना आसान हो सकता है-
1) सबसे पहले तो हमें अपने पाठ्यक्रम को अच्छी तरह से समझना होगा जैसे जो भी टॉपिक हमें पढ़ने हैं उनके बारे में मूलभूत जानकारी अर्थात उन दर्शनों का मूल हमें पता होना चाहिए ताकि किसी तरह का कोई confusion ना रहे इससे हम एक दर्शन का दूसरे दर्शन से भेद आसानी से कर सकेंगे।
2) हम जब भी किसी दर्शन को पढ़ें तो उस समय उस दार्शनिक की दृष्टि से पढ़ें,इसमें स्वयं का दिमाग ना लगायें।किसी दार्शनिक के दर्शन का आधार कहीं ना कहीं उनका जीवन भी रहता है तो यदि संभव हो तो उन दार्शनिकों के जीवन का संक्षेप परिचय हमें पढ़ लेना चाहिए इससे हम उनके दर्शन को उन दार्शनिकों से आसानी से connect कर पाएंगे।
3) अक्सर दर्शन शास्त्र की तैयारी के दौरान हमें लगता है कि सारे दर्शन एक दूसरे में अनधिकृत तरीके से घुसे जा रहे हैं,इस वजह से हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पाते कि अमुक विचार इसी दार्शनिक का है या नहीं।इसके उपाय के लिए सबसे पहले तो हमें प्रत्येक दार्शनिक के मूल विचार को रटने की जगह समझना होगा क्योंकि दर्शन शास्त्र एक तार्किक विषय है यहाँ दार्शनिकों के दर्शन अपने मूल विचार से तार्किक रूप से जुड़े हुए हैं जैसे बौद्ध दर्शन का मूल विचार प्रतीत्य समुत्पाद है तो उनके दर्शन के लगभग सभी सिद्धांत इसी विचार पर आधारित है।
4) दर्शन शास्त्र में अपने ज्ञान को अधिक परिपक्व बनाने के लिए पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है। इससे हमें प्रश्नों की प्रकृति के बारे में तो पता चलता ही है साथ ही साथ हमारा revision भी हो जाता है।इसके अलावा हमारे मन में चल रहे confusion का भी अंत होता है।
5) प्रश्नपत्रों के अध्ययन के साथ साथ उत्तर लेखन में गुणवत्ता लाने के लिए mock test देना भी आपकी रणनीति का अहम् हिस्सा होना चाहिए।
6) mock test हो या पुराने पशनपत्रों का अध्ययन, दोनों हल करते समय जिस चीज़ पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरुरत है वो है पूछे गए प्रश्न की प्रकृति एवं उसकी demand को समझना।। दर्शन शास्त्र में अच्छे अंक लाने का सबसे बड़ा सूत्र है पूछे गए प्रश्न को अच्छे से समझना। अक्सर हम जल्दबाज़ी में प्रश्न की demand को अच्छे से नहीं समझ पाते इसकी वजह से उत्तर आने के बावजूद अच्छे अंक नहीं मिल पाते।प्रश्न को समझने में थोड़ा समय लेना चाहिए और फिर उसकी गूढ़ता को समझकर अपना उत्तर प्रारम्भ करें। अभ्यास से प्रश्नों को समझने में लगने वाला समय कम किया जा सकता है।
7) परीक्षा में प्रश्नों का सटीक जवाब देना अत्यन्त आवश्यक है। कभी कभी कोई प्रश्न ऐसा आता है जिसे देखकर हम चहक उठते हैं क्योंकि उस टॉपिक पर हमारी अच्छी पकड़ होती है लेकिन जब अंक हमारी अपेक्षाओं के अनुकूल नहीं आते तो हम बहुत निराश हो जाते हैं।इसका एक काऱण सामान्यतया यह होता है कि ऐसे प्रश्नों को देखकर हम हमारी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाते और प्रश्न की demand के अलावा हमें उस टॉपिक का जो भी ज्ञान है वो सब उसके उत्तर में डालने की कोशिश करते हैं ताकि हमारा उत्तर सर्वश्रेष्ठ हो। लेकिन हम यहीं गलती कर देते हैं क्योंकि वो प्रश्न आपके संपूर्ण ज्ञान का आकांक्षी नहीं था ना ही परीक्षक को इस बात से फर्क पड़ता है कि आप कितने विद्वान् है,उन्हें तो बस इस बात से मतलब होता है कि जो पूछा गया है उसका to the point और सटीक उत्तर दिया जाए।
8) दर्शन शास्त्र में एक confusion यह भी होता है कि परीक्षा में कौनसे प्रश्न किए जाएं। कोई कहता है कि भारतीय दर्शन के ज्यादा करने चाहिए तो कोई पाश्चात्य दर्शन को अधिक अंकदायी मानता है तो कई लोग समकालीन दर्शन को प्राथमिकता देते हैं। मेरा यह मानना है कि इन बातों पर ध्यान देने के बजाय हमें उन प्रश्नों को लेना चाहिए जिन पर हमारी पकड़ अच्छी हो। यदि प्रश्नपत्र में आपको ऐसा लगता है कि कुछ प्रश्न ऐसे हैं जिन पर अन्य लोगों की जगह आपकी समझ अच्छी है तो वो प्रश्न अवश्य करने चाहिए। हालाँकि समकालीन दर्शन के प्रश्नों के दिए गए अच्छे उत्तर में अच्छे अंक मिलने की सम्भावना अधिक रहती है।
9) दर्शन शास्त्र में पेपर 1 में अधिकतर लोगों की तैयारी अच्छी रहती है और अंक भी अपेक्षकृत अच्छे मिलते हैं लेकिन पेपर 2 में सबके साथ ऐसा नहीं हो पाता। पेपर2 में अच्छे अंक लाना सफलता की गारंटी माना जाने लगा है।मेरा यह मानना है कि पेपर 2 का पाठ्यक्रम बहुत ही साधारण और छोटा है लेकिन समस्या इसके पाठ्यक्रम की ना होकर इसके सवालों की प्रकृति में हैं अतः इस पेपर के सवालों का अधिक से अधिक अभ्यास करना जरुरी है।
10) पेपर 2 को मुख्यतया दो भागों में बांटा गया है। पहला सामाजिक एवं राजनीतिक दर्शन है तो दूसरा धर्म एवं दर्शन है। सामाजिक एवं राजनितिक दर्शन को पढ़ते समय सबसे पहले हमें इस विषय को समाज शास्त्र और राजनीति विज्ञान से अलग करके देखना होगा। जहाँ दोनों विषय “क्या है” पर बल देता है वहीं सामाजिक- राजनीतिक दर्शन “क्या होना चाहिए”पर बल देता है। इस सूक्ष्म अंतर को समझने के पश्चात उत्तर लेखन में समसामयिक प्रसंगों को डालने का प्रयास रहना चाहिए जैसे वर्तमान में चल रहा तीन तलाक का मुद्दा बहुसंस्कृतिवाद, लोकतंत्र, अल्पसंख्यक अधिकार,महिला अधिकार और न्याय के पहलुओं को छूता है तो इस मुद्दे को कई जगह इस्तेमाल किया जा सकता है।
11) धर्म और दर्शन के पेपर का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें पूछे जाने वाले कई टॉपिक्स प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पेपर 1 से जुड़े हुए होते हैं बस यहाँ भी इनको कुछ अलग तरीके से पेश किया जाना होता है। जहाँ हम पेपर 1 में अधिकांशतः भारतीय और पाश्चात्य दार्शनिकों को अलग अलग पढ़ते हैं वहीं इस पेपर में दोनों तरह के दार्शनिकों के विचार एक साथ रखने पड़ते हैं इसलिए हमें इनकी समानता और असमानता के बारे में पता होना चाहिए।
12) धर्म और दर्शन के पेपर में भी सवालों का गहन निरीक्षण आवश्यक है। इस पेपर के प्रश्न बहुत सीधे तरीके से नहीं पूछे जाते ये आपको थोड़ा सोचने पर मजबूर करते हैं इसलिए धर्म और दर्शन के विविध आयामों पर आपकी अच्छी पकड़ होनी चाहिए।
13) दर्शन शास्त्र के पेपर के बारे में सामान्य अवधारणा यह देखने को मिलती है कि इसके उत्तर लेखन में विशिष्ट शब्दों का एवं संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग अपरिहार्य है और इसके अभाव में अच्छे अंक प्राप्त करना असंभव है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आपको किसी भी दर्शन का सार स्वयं अपने शब्दों में साधारण तरीके से लिखने की आवश्यकता है।परीक्षक आपकी प्रगाढ़ विद्वता का नहीं अपितु आपकी समझ का परीक्षण करना चाहता है।यह बात सही है कि कुछ विशिष्ट शब्दों को अपनी शब्दावली से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता इसलिए उनको अपने उत्तर में समाहित करना आवश्यक है लेकिन अनावश्यक रूप से क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग करने की कोई जरुरत नहीं है।
अंत में हम यही कहेंगे कि दर्शन के विद्यार्थी होने के नाते आपको अपनी समझ को अधिक विस्तार देने की आवश्यकता है जिससे आप सभी पहलुओं का विवेकपूर्ण विश्लेषण कर सकें और किसी तरह का कोई confusion ना रहे।
हालांकि अब आपके पास पुस्तकें पढ़ने का समय तो नहीं है लेकिन अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए आप निम्नलिखित पुस्तकों का प्रयोग कर सकते हैं-
- धर्म और दर्शन – वी. पी. वर्मा
उम्मीद करते हैं कि हमारे सुझाव आपकी तैयारी में आपका सहयोग करेंगे। अगर कुछ और सवाल आपके जहन में आते हैं तो इसी पेज पर प्रश्न पोस्ट कर सकते हैं, हम यथासंभव उनका उत्तर देने का प्रयास करेंगे।