कभी हरित क्रांति का अगुवा रहा पंजाब आज ड्रग्स की समस्या के कारण चर्चा में है।ड्रग्स से लत लोगो की तादाद बहुत बड़ी है\
एक नजर आंकड़ो पर:
सोसाइटी फ़ॉर प्रमोशन ऑफ यूथ एंड मासेज (ए़पीआईएम) के मुताबिक़ पंजाब में ड्रग्स और दवाइयों की लत के चपेट में क़रीब 2.3 लाख लोग हैं. जबकि क़रीब 8.6 लाख़ लोगों के बारे में अनुमान हैं कि उन्हें लत तो नहीं है, लेकिन वो नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक़ नशा करने वालों में 99 फ़ीसदी मर्द, 89 फ़ीसदी पढ़े लिखे, 54 फ़ीसदी शादी शुदा लोग हैं. हेरोइन सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाला मादक पदार्थ है (53 फ़ीसदी). हेरोइन इस्तेमाल करने वाला इस पर रोज़ाना क़रीब 1400 रुपए ख़र्च कर डालता है.
क्यों पंजाब में नौजवान इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं?
- असली समस्या है बेरोजगारी: पंजाब के नौजवानों के लिए आजीविका के विकल्पों का अभाव। यह वही पंजाब है, जो कभी अपने उद्यमी किसानों के लिए सराहा जाता था, जिसने 1960 और 70 के दशक के आरंभिक वर्षो में हरित क्रांति की कामयाबी की शुरुआती कहानियां रचीं। 1980 के दशक के बाद पंजाब देश के सबसे अधिक प्रति-व्यक्ति आय वाले सूबों में शामिल रहा। लेकिन पिछले दो दशकों में यह कृषि विकास दर के मामले में ज्यादातर राज्यों से पिछड़ता गया है। न सिर्फ तमाम मुख्य फसलों की पैदावार और उत्पादन थम-सा गया है, बल्कि जोत का रकबा कम होने से मुनाफा भी घटता चला गया है। फिर प्राकृतिक संसाधनों की बिगड़ती स्थिति ने भी नौजवानों को किसानी के काम से विमुख किया है।
मिट्टी की खराब होती गुणवत्ता और गिरते भूजल-स्तर के कारण खेती करना अब काफी महंगा कार्य हो गया है, और इसके मशीनीकरण के साथ हालात चरम पर पहुंच गए हैं। यंत्रों के कारण मजदूरों का इस्तेमाल काफी कम हो गया है, ऐसे में अब तक कृषि कार्य से रोजगार पा रहे कामगार बेकार हो रहे हैं। पंजाब में कृषि क्षेत्र की बदतर हालत किसानों की खुदकुशी से भी जाहिर होती है
- हाल के वर्षो में विदेश जाने की रफ्तार भी धीमी पड़ी है और राज्य में रोजगार के वैकल्पिक अवसरों के अभाव में बेरोजगारी की समस्या बद से बदतर होती गई है।
Conclusion
पंजाब में ड्रग्स की समस्या कानून-व्यवस्था का मसला नहीं है। सरकार की नाकामी ने यकीनन इस समस्या को और गंभीर बनाया है, पर यह मसला आर्थिक है। यह मुद्दा एक ऐसी रणनीति पर गंभीर बहस की जरूरत बता रहा है, जो न सिर्फ खेती छोड़ने वाले नौजवानों को लाभकारी रोजगार मुहैया कराने में समर्थ हो, बल्कि श्रम-बल का हिस्सा बनने वाले नए युवा-युवतियों की अपेक्षाओं को भी पूरा करती हो।
ड्रग्स की लत का खतरा तो हमारी आर्थिक नीति के गंभीर रोग का लक्षण मात्र है, जो रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा करने में नाकाम रही है। पंजाब जैसी बेचैनी दूसरे सूबों में भी दिखने लगी है और यही वक्त है कि केंद्र सरकार बेरोजगारी की समस्या से निपटने को लेकर एक ठोस रणनीति बनाए। लेकिन अफसोस, समस्या के हल की बात तो दूर, इसकी गंभीरता ही नहीं समझी जा रही है।