1. किसी भी आंकड़े के आकलन में आधार प्रभाव यानी बेस इफेक्ट की बड़ी भूमिका होती है. उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2017-18 की पहली छमाही में खुदरा महंगाई की औसत दर केवल 2.62 फीसदी थी. लेकिन इसके साल भर पहले (2016-17 की पहली छमाही में) यह इसके दोगुने से भी ज्यादा (5.42 फीसदी) थी. जानकारों के अनुसार चूंकि 2017 के अप्रैल से सितंबर के बीच सीपीआई अपेक्षाकृृत कम थी, इसलिए 2018 की समान अवधि में इसके ज्यादा रहने के आसार हैं. इसके चलते भी आरबीआई ने पहली छमाही में इसके 5.1 से 5.6 फीसदी रहने का अंदाजा लगाया है. हालांकि दूसरी छमाही में आधार प्रभाव के उच्च होने के अनुमान से वित्त वर्ष 2018-19 में अक्टूबर से मार्च के बीच खुदरा महंगाई पर अंकुश लगने की संभावना है.
2. केंद्र सरकार 2017-18 और 2018-19 में पहले से ज्यादा राशि खर्च करने जा रही है. इससे दोनों साल राजकोषीय घाटा (वह राशि जो सरकार की आय से ज्यादा खर्च होती है) पूर्व लक्ष्य से 0.3 फीसदी ज्यादा रहेगा. लोकसभा चुनाव के चलते राज्य सरकारों द्वारा भी ज्यादा खर्च किए जाने की संभावना है. इससे अगले कई महीनों तक बाजार में महंगाई के बढ़ने का अंदेशा है.
3. अगले खरीफ सीजन में फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) उनकी लागत का 110 फीसदी रखने के बजाय 150 फीसदी कर देने की घोषणा की गई है. सरकार के इस फैसले से वित्त वर्ष 2018-19 की दूसरी छमाही में फसलों के दाम पहले से एक तिहाई महंगे हो सकते हैं.
4. कच्चे तेल का दाम इस साल हालांकि लगभग 10 फीसदी गिरकर 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बना हुआ है. 2018 में इसकी कीमतों का औसत 60 डॉलर से ज्यादा रहने का अंदाजा है जो 2017 से करीब छह डॉलर ज्यादा होगा. इससे निश्चित तौर पर परिवहन और वस्तुओं के महंगा होने का खतरा बना हुआ है. तेल के महंगा होने से डॉलर की तुलना में रुपया भी कमजोर होने लगता है जिससे आयातित उत्पाद और महंगे हो जाते हैं.
5. इसके अलावा मानसून और केंद्र सरकार द्वारा घोषित भत्तों से भी खुदरा महंगाई के प्रभावित होने की संभावना है. अप्रैल के मध्य तक 2018 के मानसून के बारे में पहला पूर्वानुमान आने की संभावना है. जानकारों के अनुसार इसके बाद ही पता चल सकेगा कि इस साल मानसून का हाल कैसा रहेगा. इसके अलावा एक जुलाई, 2017 से सातवें वेतन आयोग के तहत घोषित आवासीय और अन्य भत्तों का भी खुदरा महंगाई पर असर पड़ने की आशंका है.