हाल के सामाजिक-आर्थिक विकास ने भारत के ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदल दी है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) का सर्वेक्षण (2016-17) इस बारे में बहुत कुछ कहता है।
Ø हर तीसरे साल कराए जाने वाले इस सर्वे के मुताबिक ग्रामीण खेतिहर परिवारों की औसत आय अब कृषि से ज्यादा दैनिक मजदूरी से होने लगी है।
Ø कृषि पर आश्रित एक ग्रामीण परिवार की औसत वार्षिक आय 1 लाख 7 हजार 172 रुपये है, जबकि गैर-कृषि गतिविधियों से जुड़े ग्रामीण परिवारों की औसत वार्षिक आय 87 हजार 228 रुपये है।
Ø रिपोर्ट के मुताबिक मासिक आमदनी का 19 प्रतिशत हिस्सा कृषि से आता है, जबकि औसत आमदनी में दैनिक मजदूरी का हिस्सा 40 फीसदी से अधिक है। 87 फीसदी ग्रामीण घरों में अब मोबाइल आ चुका है जबकि 88.1 फीसदी परिवारों के पास बचत खाते हैं। 58 फीसदी परिवारों के पास आज टीवी है वहीं 34 फीसदी परिवारों के पास मोटरसाइकिल और 3 फीसदी परिवारों के पास कार है। इसके अलावा 2 फीसदी परिवार लैपटॉप और एसी से लैस हैं। खेती-किसानी करने वाले 26 फीसदी और गैर-कृषि क्षेत्र के 25 फीसदी परिवार बीमा के दायरे में हैं। पेंशन योजना सिर्फ 20.1 फीसदी कृषक परिवारों ने ली है वहीं, सिर्फ 18.9 फीसदी गैर खेतिहर परिवारों के पास पेंशन योजना है।
इस सर्वेक्षण पर किसानों के कुछ संगठनों ने सवाल उठाए हैं। उनके अनुसार सर्वे में किसानों की परिभाषा बदल कर आंकड़े जुटाए गए हैं। 2012-13 के आंकड़े एनएसएसओ या नेशनल सैंपल सर्वे में एकत्र किए गए थे तब उस परिवार को कृषक परिवार माना गया था जिसे केवल खेती से 3 हजार रुपये तक की आमदनी मिलती हो। वहीं इनकी तुलना 2015-16 के जिन आंकड़ों से की गई उनमें खेती से 5 हजार कमाने वालों को कृषक परिवार का दर्जा दिया गया है। इसलिए इस बार आमदनी ज्यादा दिख रही है।
बहरहाल यह सर्वे कई स्तरों पर चिंता में भी डालता है। इसमें कहा गया है कि ग्रामीण क्षेत्र के 47 फीसदी परिवारों पर कर्ज का बोझ है। जाहिर है खेती से अपेक्षित लाभ नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि किसानों को मजदूरी भी करनी पड़ रही है। दूसरी बात यह है कि आय का स्तर भी असमान है। पंजाब के ग्रामीण परिवार की औसत आय 16 हजार 20 रुपये है जबकि आंध्र प्रदेश के ग्रामीण परिवार की महज 5 हजार 842 रुपये। हालांकि सबसे ज्यादा आय भी शहरों की आय से काफी कम है।
साफ है कि गांव में आई समृद्धि सीमित है। इसे बढ़ाने और इसके समान रूप से प्रसार की जरूरत है। भूमंडलीकरण के बाद सारा ध्यान बड़े उद्योग-धंधों के विकास पर केंद्रित हो गया है। ऐसे में गांवों के छोटे-मोटे उद्योग कमजोर पड़े हैं। आज कृषि में निवेश बढ़ाने और गांवों में लघु व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि ग्रामीणों की आमदनी बढ़ सके।
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