विश्व व्यापार संगठन बैठक: निजी स्वार्थों के चलते विफल हुआ

At WTO nations have failed to resolve public stockholding clause and insistance of e-commerce and investment facilitation has further acted as breakers to talks
#Patriks
अमरीका सहित यूरोपीय संघ चाहता है कि ई-कॉमर्स और निवेश सुविधा को बढ़ावा दिया जाए। विकासशील देश इसे विकसित देशों की ओर से उठाया गया नया मुद्दा मानते हैं। वे इसे छोटे विक्रेताओं के विरुद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में उठाया गया कदम मानते हैं।
पिछले दिनों हुई विश्व व्यापार संगठन की 11 वीं मंत्रिस्तरीय बैठक अमरीका के अडिय़ल रवैये से विफल हो गई। 
    अमरीका ने सार्वजनिक भंडारण के मुद्दे पर किसी भी प्रयास में शामिल होने से मना कर दिया। भारत इस बात पर जोर देता रहा है कि खाद्यान्न के सार्वजनिक भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान निकालना ही होगा। भारत के लिए यह मुद्दा बेहद अहम है, क्योंकि यह करोडों लोगों की खाद्य सुरक्षा से जुड़ा है।
    मौजूदा विवाद में विकासशील देशों की मांग है कि धनी देश खेती पर सब्सिडी घटाएं जबकि अमरीका सहित यूरोपीय संघ चाहता है कि ई-कॉमर्स और निवेश सुविधा को बढ़ावा दिया जाए। विकासशील देश इसे विकसित देशों की तरफ से उठाया गया नया मुद्दा मानते हैं और वे इसे छोटे विक्रेताओं के विरुद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में उठाया गया कदम मानते हैं। भारत खाद्य सुरक्षा मामले पर कतई झुकने को तैयार नहीं है। देश के 60 करोड़ से ज्यादा लोग खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के दायरे में आते हैं।
इतनी बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए सरकार के पास खाद्यान्नों का बड़ा भंडार होना जरूरी है। इसके लिए बड़े पैमाने पर सब्सिडी की जरूरत पड़ती है। इस बैठक से दो हफ्ते पहले ही भारत ने खाद्य सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी। अमरीका भारत की मांग का विरोध कर रहा है। आमतौर पर एनएसजी व संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मामलों पर तो चीन, भारत का विरोध करता रहा है।
इन सबके बावजूद विश्व व्यापार संगठन में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम में भारत और चीन में एकता देखी गई। नवंबर 2017 में भारत, चीन और 31 अन्य देशों ने कानूनी सुनिश्चितता के लिए बैठक बुलाई थी जिसमें कहा गया था कि कृषि मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन समझौते के स्थायी समाधान को संशोधित किया जाना चाहिए। अमरीका जैसी महाशक्ति के लिए आवश्यक है कि वह स्वार्थ से बाहर निकले। कोई भी वैश्विक प्रणाली बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय के आधार पर ही चल सकती है अन्यथा वह अपने ही बोझ तले दब जाएगी।
 

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