- स्वर्ण जमा योजनाएं और उनकी समस्याएं
- आभूषण कारोबार में एक प्रणाली है जिसके तहत कंपनियां उपभोक्ताओं से ऋण लेती हैं। अर्थव्यवस्था में तनाव और सोने की कीमतों में इजाफा दोनों के एक साथ आगमन ने कई आभूषण कारोबारियों के लिए कठिनाइयां पैदा कर दी हैं। सामान्य दिनों में एक दूसरे को जानने वाले आम लोगों के बीच जो अनौपचारिक व्यवस्था कारगर रहती है, वह कठिन समय में ज्यादा तादाद वाले लोगों के बीच समुचित ढंग से काम नहीं करती। इस बाजार के कामकाज में सुधार के अवसर मौजूद हैं। देश में जिन कारोबारी मॉडलों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है उनमें से एक है 'स्वर्ण जमा योजना'। इन योजनाओं में एक व्यक्ति नियमित अंतराल पर एक निश्चित धनराशि आभूषण कारोबारी के पास जमा करता है और भविष्य की एक तारीख पर उसे इस मूल्य का सोना या आभूषण मिलता है।
- ज्यादा से ज्यादा इसे आपसी विश्वास का रिश्ता कहा जा सकता है। नियमित भुगतान उपभोक्ता के लिए बचत है और आभूषण विक्रेता के लिए पूंजी जुटाने का तरीका। उच्च सामाजिक भरोसे वाली व्यवस्था में ऐसी व्यवस्था के लिए एक वैध भूमिका है। परंतु ऐसे अनौपचारिक उपाय ज्यादा व्यापक स्वरूप देने पर कमजोर पड़ जाते हैं। यदि उपभोक्ता के पैसे से आभूषण कारोबारी सोना खरीदता है तो यहां जोखिम ज्यादा नहीं होता। परंतु यदि आभूषण कारोबारी सोना नहीं खरीदता है तो सोने के मूल्य से जुड़ा जोखिम उभरने लगता है। जब सोने की कीमत ऊपर जाएगी तो जोखिम से बचाव न रखने वाले आभूषण कारोबारी को घाटा होगा। गत वर्ष सितंबर से इस वर्ष अगस्त के बीच सोने की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्घि हुई है जिससे तनाव भी उत्पन्न हुआ है।
- देश में ऋण तक कमजोर पहुंच के कारण आभूषण कारोबारी ऐसे उपायों का इस्तेमाल पूंजी जुटाने के लिए करते हैं। आदर्श स्थिति में मूल्य जोखिम से बचाव के लिए उनको उचित मात्रा में स्वर्ण डेरिवेटिव की खरीद करनी चाहिए। परंतु देश में वित्तीय डेरिवेटिव का इस्तेमाल बहुत सीमित है। ऐसा इसलिए क्योंकि अनेक नियामकीय और कर संबंधी बाधाएं मौजूद हैं। हाल के महीनों में ऐसी रिपोर्ट आई हैं जो बताती हैं कि इन योजनाओं को चला रहे आभूषण कारोबारी मुश्किल में हैं। मुंबई के अखबार मिड डे में नाकामी की ऐसी ही एक घटना के बारे में रिपोर्ट छपी हैं।
- मुख्यधारा के कारोबारी या आर्थिक अखबार देश भर में घट रही ऐसी घटनाओं के सिरे नहीं जोड़ते। स्वर्ण जमा योजना, स्वर्ण आभूषण, स्वर्ण बॉन्ड, स्वर्ण ईटीएफ, स्वर्ण निवेश, आभूषण, स्वर्ण मूल्य, स्वर्ण मूल्यांकन आदि। मिड डे में छपी खबरें कहती हैं कि उपभोक्ताओं द्वारा ऐसी योजनाओं में जमा की गई करीब 300 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि दांव पर लगी है। यदि मान लिया जाए कि यह सटीक आकलन है तो अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए कहा जा सकता है यह राशि बहुत बड़ी नहीं है। परंतु ऐसी घटना एकबारगी नहीं है: गूगल पर तलाश करने पर ऐसी तमाम खबरें पढऩे को मिलती हैं। इन्हें जोड़ा जाए तो बहुत बड़ा आंकड़ा सामने आता है। ऐसी छोटी से छोटी घटना सैकड़ों परिवारों को प्रभावित करती है।
- त्रासदी यह है कि सभी प्रभावित आभूषण कारोबारी ठग नहीं हैं। परंतु ऐसी घटनाएं मजबूत कारोबार को भी ध्वस्त कर सकती हैं। एक बार अगर कानाफूसी का सिलसिला चालू हो गया तो इसमें यह क्षमता है कि ग्राहक, आभूषण कारोबारियों से अपने पैसे वापस मांग सकते हैं। अगर एक बार पैसे मांगने वालों की लंबी कतार लग गई तो समस्या को हल करना नामुमकिन सा हो जाएगा। मुझे आर के नारायणन की सन 1952 में लिखी किताब फाइनैंशियल एक्सपर्ट की याद आती है जो ऐसी घटनाओं के मानवीय पक्ष पर नजर डालती हैं।
- अगर ऐसे रिश्ते विश्वास के सीमित दायरे में हों और लोग सोशल मीडिया से परे आपस में मिलकर इन्हें खारिज कर सकें तो भी यह कारगर रह सकता है। परंतु जहां लोग एक दूसरे को नहीं जानते वहां रिश्ता भंगुर हो जाता है। आम परिवार ऐसी योजनाओं में पैसे लगाने जैसे जोखिम क्यों लेते हैं? यहां कई कारक काम करते हैं। देश में औपचारिक वित्त खराब तरीके से काम करता है। सोना एक ऐसी परिसंपत्ति है जो काफी अहम है और जिसे आसानी से छीना भी नहीं जा सकता। भारत की असंगठित अर्थव्यवस्था काफी बड़ी है और औपचारिक वित्त से जुड़ा निगरानी तंत्र लोगों को डरा रहा है। लोग पैसे जमा करने के अनौपचारिक तरीके तलाश कर रहे हैं। मिड डे में प्रकाशित खबरों की एक और खासियत यह है कि जहां कई लोग संबंधित कारोबारियों से पैसा वापस चाहते हैं, वहीं केवल दो लोगों ने पुलिस में शिकायत करने की मंशा जताई। इन दो लोगों ने भी अब तक अपने दावों की पुष्टिï में कोई दस्तावेज नहीं पेश किया है। जब फर्म नाकाम होती है और यदि वह ढेरों उपभोक्ताओं के प्रति जवाबदेह है तो यह मकान खरीदने वालों की दिक्कत की तरह है। जरूरत निस्तारण के एक बेहतर ढांचे की है। फर्म नाकाम होती रहती हैं। जरूरत है एक निष्पक्ष प्रणाली की ताकि लोग आगे बढ़ सकें। दिक्कत यह है कि अनौपचारिक अनुबंधों के मामले में हमारे देश का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं है।
- हम ऐसे कारोबारी मॉडल आसानी से चुन सकते हैं जो दोनों पक्षों के लिए हितकारी हों। आम परिवार नियमित बचत करना चाहते हैं। वे भविष्य में सोने की खरीद पर मूल्य जोखिम से भी बचाव चाहते हैं। इसे बेहतर तरीके से कैसे किया जा सकता है? आम परिवार सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान की सहायता ले सकते हैं। इसके माध्यम से हर महीने एक निश्चित राशि गोल्ड ईटीएफ में डाली जा सकती है। भविष्य की किसी तिथि में वे इसे बेच सकते हैं। आभूषण कारोबारी कच्चे माल यानी सोने के लिए कार्यशील पूंजी चाहते हैं। गोल्ड ईटीएफ बैंकों को शुल्क के बदले सोना उधार दे सकते हैं। यह मौजूदा व्यवस्था से बेहतर होगा जहां सोना बेकार पड़ा रहता है। बैंक उस सोने को आभूषण कारोबारी को उधार दे सकते हैं और शुल्क प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे अनुबंध में उपभोक्ता, आभूषण कारोबारी, गोल्ड ईटीएफ और बैंक सभी बेहतर स्थिति में रहते हैं।
- इसमें दो बाधाएं हैं। हमारे देश में वित्त के केंद्रीय नियोजन की मौजूदा व्यवस्था के अधीन हर चरण के कारोबारी रिश्तों में वित्तीय नियामक की मंजूरी चाहिए। इन व्यवस्थाओं का इस्तेमाल करने वाले सरकार की निगरानी व्यवस्था में आ ही जाएंगे जो शायद उन्हें रास न आए।