1922 से लेकर अब तक आर्थिक असमानता (Economic inequality) की खाई स्थिति अत्‍यंत भयानक

A recent report by french economist highlight increasing gap between rich and poor and it is at its peak. Till 1980s it was narrow but after that gap is increasing.

#Amar_Ujala

Increasing gap between rcch & poor

नब्बे के दशक में जब देश में आर्थिक सुधार शुरू हुए, तो पूरी आबादी का एक छोटा-सा हिस्सा तेजी से समृद्ध होने लगा। ऐसा नहीं था कि बाकी लोगों को उसका फायदा नहीं मिल रहा था, करोड़ों लोग गरीबी रेखा से ऊपर चले गए, लेकिन गरीब-अमीर के बीच का फासला तेजी से बढ़ता जा रहा था। अब हालत यह है कि भारत आर्थिक असमानता के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर का देश बन गया है। यानी कि गरीबों और अमीरों की आय में इतना बड़ा फासला हो गया है कि उसे खत्म करना तो दूर, कम करना भी संभव नहीं है। असमानता का इंडेक्स 1990 में जहां 45.18 था, वहीं यह 2013 में बढ़कर 51.36 हो गया। यह गति दुनिया में सबसे ज्यादा रही है। ऐसा नहीं है कि अन्य लोगों के पास धन नहीं आया, लेकिन वह उस अनुपात में नहीं था, जो ऊपर के वर्ग में था।

देश के एक प्रतिशत लोगों के पास देश का 58 प्रतिशत धन है। देश के 84 अरबपतियों के पास 248 अरब डॉलर की दौलत है। इस तरह के आंकड़े दुनिया के कई देशों से आ रहे हैं, लेकिन भारत के आंकड़े विचलित करने वाले हैं।

Recent report by French Economist

  • प्रसिद्ध फ्रेंच अर्थशास्‍त्री थामस पिकेटी और उनके सहयोगी लुकास चांसेल ने अपने एक अध्‍ययन में पाया है कि देश में आयकर कानून लागू किए जाने के वर्ष 1922 से लेकर अब तक आर्थिक असमानता की खाई की जो स्थिति है, अत्‍यंत भयानक है।
  • अध्‍ययन कहता है कि देश की कुल आय का 22 प्रतिशत हिस्‍सा सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के हाथ में है। उनके मुताबिक 1922 से 2014 की अवधि में यह अंतर तेजी से बढ़ा।
  • आर्थिक सुधारों ने हालात में जबर्दस्त बदलाव किया। अमीर और अमीर होते चले गए, जबकि गरीब वहीं खड़े रह गए। दुनिया में ऐसी असमानता कहीं देखी नहीं गई थी।

नई कॉर्पोरेट संस्कृति ने आर्थिक विषमता को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हाल ही में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि देश की एक बहुत बड़ी आईटी कंपनी के सीईओ का वेतन उसी कंपनी के एक औसत कर्मी से 416 गुना ज्यादा है। ताजा रिपोर्ट यह भी कहती है कि दौलत के थोड़े से लोगों के हाथों में जमा होने का असर देश की राजनीति पर भी पड़ा है, क्योंकि अरबपतियों के पास राजनीतिक ताकत आ गई है। आज भारतीय राजनीति में दौलतमंदों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और समाज के कमजोर तबकों की उपेक्षा आम बात होती जा रही है। आर्थिक सुधारों ने भारत की राजनीति पर सबसे ज्यादा असर डाला है। इसकी झलक इसी बात से मिलती है कि इस 16 वीं लोकसभा में 400 से भी ज्यादा सांसद करोड़पति हैं।

Explanation of this gap  by some economist

कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ऐसा टैक्स की ऊपरी सीमा में कटौती के कारण हुआ और देश में आय में असमानता बढ़ी। 1980 के बाद सरकार की सोच बदली और ऐसा कहा गया कि अगर टैक्स की ऊपरी सीमा घटाई जाएगी, तो टैक्स देने वालों की तादाद स्वतः बढ़ेगी। लेकिन यह बात आंशिक रूप से ही सच हुई। अब सच्चाई यह है कि भारत सरकार अपनी जीडीपी का महज 16.7 प्रतिशत टैक्स के जरिये पाती है, जो औसत विकासशील देशों से काफी कम है। अगर सरकार की कमाई टैक्स के जरिये ज्यादा होगी तो उसके खर्च में भी बढ़ोतरी होगी।

How to remove this gap

कैसे दूर होगी यह असमानता? जाहिर है कि यह विषम असमानता सरकार की नीतियों के कारण पैदा हुई है और यह उसके द्वारा ही खत्म होगी।

  • सरकार को अपनी कल्याणकारी योजनाओं पर कहीं ज्यादा खर्च करना होगा। उसे स्वास्थ्य और शिक्षा पर कहीं ज्यादा राशि आवंटित करनी होगी। अभी इन मदों पर हमारा देश बहुत ही कम खर्च करता है।
  • शिक्षा पर हम कुल जीडीपी का 3.1 प्रतिशत और स्वास्थ्य पर महज 1.3 प्रतिशत खर्च करते हैं, जो अपर्याप्त है। मध्यम वर्ग को अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए निजी स्कूलों का सहारा लेना पड़ता है और इसी तरह बीमार होने पर महंगे अस्पतालों का सहारा लेना होता है। इससे उनकी कुल संपत्ति में क्षरण होता है और वे ऊपर के वर्ग में जा नहीं पाते। इस खर्च को बढ़ाकर हम देश की बहुत बड़ी आबादी के जीवन स्तर को ऊंचा कर सकते हैं
  • भारत की अर्थव्यवस्था में जो अभी क्रय शक्ति समानता के आधार पर 9.4 खरब डॉलर की है, बहुत संभावनाएं हैं। इस आकार की अर्थव्यवस्था में समाज के सभी तबके के लिए काफी कुछ है। जिन 13 देशों विकासशील देशों ने असमानता दूर करने की कोशिश की और सफल भी हुए, उन्होंने जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं को खूब बढ़ावा दिया, टैक्स के ढांचे में मूलभूत बदलाव किया और मजदूरों के अधिकारों की ओर ध्यान दिया। भारत में आम मजदूरों की हालत तो थोड़ी ठीक है, पर महिला श्रमिकों को आज भी उनसे 30 प्रतिशत कम राशि मिलती है, जो अपर्याप्त है। इससे उनके जीवन-यापन पर फर्क पड़ता है। टैक्स के मामले में उन्होंने ऐसी व्यवस्था की कि अधिक धन वालों को उसी अनुपात में कहीं ज्यादा टैक्स देना पड़े। पर भारत में ऐसी प्रतिबद्धता नहीं दिखती और इसलिए गरीबी कम करने के वैश्विक प्रतिबद्धता के इंडेक्स में कुल 152 देशों में भारत 132वें नंबर पर है।

अगर सरकार कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च बढ़ाएगी, तो यह धन कहां से आएगा, यह सवाल महत्वपूर्ण है। इसके लिए सरकार को अपनी टैक्स नीति में बदलाव करना होगा। टैक्स का दायरा बढ़ाना होगा और जरूरत हो तो ढांचा भी बदलना होगा। सिर्फ यह सोचकर कि ऊपर के वर्ग पर टैक्स बढ़ाने से कारोबार और निवेश को धक्का लगेगा, सरकार को हिचकना नहीं चाहिए। उसे हर हालत में टैक्स से कुल प्राप्ति बढ़ाने की कोशिश करनी ही होगी। अगर ज्यादा से ज्यादा लोगों की आय बढ़ती है, तो उनके खर्च में भी बढ़ोतरी होगी। इससे मैन्युफैक्चरिंग उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, जो अंततः जीडीपी में वृद्धि का सबब बनेगा।

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