औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक 2019

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गत सप्ताह औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक 2019 को मंजूरी प्रदान कर दी। अब इसे चर्चा के लिए संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। यह विधेयक केंद्रीय श्रम मंत्रालय के देश के श्रमिकों से संबंधित कई मौजूदा कानूनोंं को सहज बनाने और संहिताबद्ध करने के वर्ष भर पुराने प्रयासों का हिस्सा है। इसके अलावा भी कई संहिताओं की योजना है। उनमें से एक वेतन और पेंशन से संबंधित है जिसे कानून में परिवर्तित किया जा चुका है। इसके अलावा एक अन्य का संबंध काम करने की परिस्थितियों से है और उस पर सदन में चर्चा चल रही है। चौथी संहिता सामाजिक सुरक्षा पर होगी और उसके राजकोषीय निहितार्थों पर करीबी नजर होगी। परंतु औद्योगिक संबंधों पर आधारित इस संहिता की बात करें तो यह सर्वाधिक अपेक्षित में से एक है। तमाम नियोक्ता और अर्थशास्त्री लंबे समय से यह मांग कर रहे थे कि इस कानून में संशोधन करके श्रम बाजार को लचीला बनाया जाए। रोजगार में छंटनी के मामले में भारत दुनिया के सर्वाधिक प्रतिबंधित नियमन वाले बाजारों में से एक है। माना जाता रहा है कि देश में विनिर्माण क्षेत्र में पूंजी निवेश को हतोत्साहित करने की यह एक बड़ी वजह है।

  • बहरहाल, विधेयक कुछ मामलों में कमजोर नजर आता है। यह एक तरह से यथास्थिति का दोहराव है। बड़े नियोक्ताओं द्वारा कर्मचारियों को रखने और निकालने को आसान बनाने संबंधी मूल प्रश्न का सीधे समाधान नहीं किया गया है। 100 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियां अभी भी नियमित कर्मचारियों को बिना सरकारी मंजूरी के नहीं निकाल सकतीं। बहरहाल, संहिता अधिसूचना के माध्यम से 100 कर्मचारियों वाली सीमा को परिवर्तित करने की इजाजत देती है। यह मौजूदा रुख के अनुरूप ही है जिसके तहत राज्यों को श्रम कानूनों में बदलाव की इजाजत है और इसे बाद में राष्ट्रपति की मंजूरी प्रदान की जाती है। बहरहाल, श्रम कानूनों में एक संपूर्ण राष्ट्रीय स्तर के बदलाव का कोई वास्तविक विकल्प नहीं है। यदि ऐसा होता है देश में कारोबारी सुगमता की स्थितियों में काफी सुधार होगा।

  • नियमित कर्मचारियों की छंटनी में मुश्किल के चलते अनुबंधित श्रमिकों की तादाद बढ़ रही है। देश की कई फैक्टरियों में नियमित कर्मचारी और अनुबंधित कर्मचारी समान काम करते हैं लेकिन अनुबंधित श्रमिकों को तुलनात्मक रूप से बहुत कम लाभ मिलते हैं। इसके खिलाफ तमाम न्यायिक निर्णयों के बावजूद यह व्यवस्था कायम है। संहिता ने अनुबंधित श्रम के इस्तेमाल को नियमित करने का काम किया है, बशर्ते कि कर्मचारियों को बीमा और छुट्टियों के मुद्रीकरण जैसे सांविधिक लाभ मिलते रहें। इससे अनुबंधित श्रम के नियोक्ताओं की लागत बढ़ेगी। सवाल यह है कि उत्पादकों की प्रतिक्रिया समग्र रोजगार में कमी के रूप में सामने आएगी या नियमित कर्मचारियों की तादाद बढ़ेगी। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कंपनियां इन कर्मचारियों को सीधे नियुक्त कर सकेंगी और ठेकेदारों की जरूरत समाप्त हो जाएगी।

  • एक मसला नौकरी से निकाले जाने वालों के हर्जाने का भी है। बहरहाल यदि श्रम बाजार में लचीलापन होगा तो निकाले जाने वाले श्रमिकों को हर्जाना भी अच्छा मिलेगा। इस मोर्चे पर नई संहिता कमजोर साबित होती है। परंतु तमाम कमियों के बावजूद कुल मिलाकर यह एक महत्त्वपूर्ण अग्रगामी कदम है। यह भी उम्मीद की जानी चाहिए कि चूंकि एक बार विधेयक पारित हो जाने के बाद कर्मियों की छंटनी के लिए सरकार की मंजूरी की सीमा में बदलाव आ जाएगा तो उस स्थिति में कार्यपालिका को इस बदलाव को देशव्यापी स्वरूप प्रदान करने में भी मदद मिलेगी।

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