कर्जखोरों पर कड़ाई

Government has introduced amendment to Insolvency code through amendment. This article analyse utility of this.

सरकार की योजना जान बूझकर कर्ज न चुकाने वालों पर थोड़ी और सख्ती बरतने की है। इसके लिए दिवालिया कानून (इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड, 2016) में संशोधन करके इसे और धारदार बनाया जाएगा।

  • कंपनी के साथ-साथ प्रमोटर पर भी शिकंजा कसने का यह विरला मौका होगा। इसके तहत, फंसे हुए कर्ज के लिए जिम्मेदार विलफुल डिफॉल्टर (जान-बूझकर कर्ज न चुकाने वाले) एक साल तक किसी अन्य कंपनी के अधिग्रहण के लिए बोली नहीं लगा सकेंगे।
  • Wilful Defaulter: वह होता है जो सक्षम होने के बावजूद ऋण नहीं चुकाता या ऋण को दूसरे कामों में लगाता है, या फिर ऋणदाता की जानकारी के बिना कंपनी की संपत्ति को बेच देता है।

What are lacunas in current Bill?

  • दरअसल मौजूदा कानून से यह साफ नहीं हो रहा था कि दिवालिया होने जा रही कंपनी के प्रवर्तक अपने नियंत्रण वाली संपत्ति का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं।
  • अभी ऐसा एक उपयोग, कोई और कंपनी खरीदने की कसरत कम से कम एक साल के लिए नहीं की जा सकेगी।
  • प्रमोटरों ने सरकारी बैंकों को भारी चूना लगा रखा है। ऐसे भी मामले देखे गए हैं कि इन्होंने अपनी किसी कंपनी के नाम पर बैंकों से कर्ज उठाया और उस कंपनी की संपदा किसी और कंपनी में ट्रांसफर करके उसे दिवालिया घोषित करा दिया। इस तरह उनका कारोबार बढ़ता रहा लेकिन वे कर्ज चुकाने से बच गए। यह एक तरह से उनका बिजनेस मॉडल बन गया है। बाद में जुगाड़ लगाकर वे दिवालिया कंपनी को भी दोबारा हासिल कर लेते हैं।
  • सरकार जान-बूझकर दिवालिया बनने वालों पर नियंत्रण के लिए कानून ला चुकी है, पर इसके कुछ प्रावधानों को लेकर कुछ हलकों में चिंता भी व्यक्त की जाती रही है।

 मुश्किल यह है कि सरकार एक तरफ से सिस्टम को दुरुस्त करके चलती है तो दूसरी तरफ से उसमें नए छेद ढूंढ लिए जाते हैं। हमारे यहां अभी सरकारी बैंकों का जोर ज्यादा है और ये राजनीतिक नेतृत्व के इशारे पर किसी को भी लोन बांट देते हैं। उद्योगपति-नेता गठजोड़ का ही प्रभाव है कि कई कारोबारी मनमाने ढंग से ऋण लेने में सफल हो जाते हैं। बैंक अधिकारियों के लिए बैंक का स्वास्थ्य कोई मायने नहीं रखता। उन्हें पता होता है कि उनकी रोजी और रुतबा राजनीतिक आका को खुश करके ही चलने वाला है। सरकारी बैंकों के बढ़ते एनपीए की सबसे बड़ी वजह यही है। ऐसे में कर्ज देने से लेकर वसूली तक सख्त उपाय जरूरी हैं।

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