औरतों की अदृश्य बेरोजगारी

#Prabhat_Khabar

  • आंकड़ों के अनुसार, 2014 से 2016 तक कुल 4.3 लाख नये रोजगारों का ही सृजन हुआ, जो घोषित संख्या का आधा भी नहीं.
  • खुद सरकार के 2016 के श्रम आयोग (लेबर ब्यूरो) के आंकड़ों के अनुसार, मनरेगा योजना के तहत पिछले सालों की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक बेरोजगारों ने रोजगार के लिए आवेदन किया, जो सुस्त पड़ते शहरी उद्योग जगत और सुखाड़ के मारे ग्रामीण इलाकों में बढ़ती बेरोजगारी का प्रमाण है. इनमें से भी 1.6 करोड़ आवेदकों को मनरेगा के तहत अनियतकालीन (साल में 120 दिन) काम तक नहीं मिला.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की चर्चित शोध संस्था ई-पॉड (एविडेंस फॉर पॉलिसी डिजाइन) ने भारतीय कामगार भारतीय महिलाओं की स्थिति पर सिकुड़ती शक्ति शोध रपट जारी की है, जिसके मद्देनजर इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में महिलाओं पर (तत्कालीन) मुख्य आर्थिक सलाहकार ने ध्यान दिलाया और यह दर्ज कराया कि पिछले दशक में संगठित तथा असंगठित, दोनों ही तरह के भारतीय कामगारों में महिलाओं की भागीदारी में लगातार गिरावट आयी है. और 2.5 करोड़ कमासुत महिला कामगार कार्यक्षेत्र से बेदखल हुई हैं. ‘बेटी पढ़ाओ’ सरीखी योजनाओं से फायदा लेकर बच्चियां स्कूल जरूर जाने लगी हैं, पर स्कूल पास कर लेने से क्या?

संगठित क्षेत्र को उच्च तकनीकी डिग्री और अंग्रेजी जाननेवाले दक्ष हाथ चाहिए. नतीजतन विकासशील देशों के गुट ‘ब्रिक्स’ में हम महिलाओं को रोजगार देने के क्षेत्र में सबसे निचली पायदान पर और जी-20 देशों की तालिका में नीचे से दूसरी पायदान पर आ गये हैं

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