- दूरसंचार क्षेत्र का वित्तीय तनाव समाप्त करने के लिए गठित सचिवों की समिति को इस क्षेत्र के बचे रहने के लिए तत्काल अंतरिम उपायों पर काम करना होगा। परंतु क्या केवल इसका बचे रहना देश के विकास और वृद्धि के लिए पर्याप्त होगा? क्या यह संभव है कि बाकी क्षेत्रों से अलग-थलग दूरसंचार क्षेत्र में सुधार किया जाए? हालांकि सेवाओं का मूल्य न्यूनतम है लेकिन हमारी संचार आवश्यकताओं का ध्यान ठीक तरह से नहीं रखा जा रहा है। क्या हमारे अभागे नागरिकों और उपक्रमों के लिए कभी यह संभव होगा कि खराब सेवाओं और गंवाई जा रही उत्पादकता से परे अन्य देशों के साथ बराबरी कर सकें। यह संभव है बशर्ते कि हम बड़े ढांचागत बदलावों में सफल हों। इसकी शुरुआत दूरसंचार से होनी चाहिए। परंतु दूरसंचार क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए सरकार के साथ-साथ हम सभी को इस हकीकत को स्वीकार करना होगा कि जिस तरह वित्तीय कारक अर्थव्यवस्था को गति देते हैं, डिजिटलीकरण और संचार को उत्पादन और आपूर्ति के केंद्र में लाना होगा। दूरसंचार और डिजिटलीकरण बुनियादी ढांचा क्षेत्र तथा तमाम अन्य क्षेत्रों में नीतिगत रूप से सक्षम बनाने का काम करते हैं। दुनिया के प्रमुख देश इस क्षेत्र में आगे हैं और इतनी सक्षमता से काम कर रहे हैं कि हमारे लिए वह सोचना भी मुश्किल है। हमें उस राह को हासिल करने के लिए योजना बनानी होगी। बकाया भुगतान से छेड़छाड़, शुल्क में कमी और बदलाव आदि से हालात बदलने वाले नहीं हैं। इस लिहाज से समिति का दायरा बहुत सीमित है। वह केवल दर्द को कम कर सकता है जबकि जरूरत यह है कि इस उद्योग में नई जान फूंकी जाए।
- अगर समिति का दायरा व्यापक होता तो क्या हम डिजिटलीकरण को विकास और वृद्धि के लिए अपनी मूल नीति बना सकते थे? चीन के दूरसंचार सुधारों पर आधारित एक अध्ययन को देखें तो सुधारों को लेकर उनका रुख सरकार के सार्वभौमिक कवरेज, संचालन और नियंत्रण तथा सक्षमता और उद्योग जगत की मुनाफा कमाने की कोशिश को संतुलित स्वरूप प्रदान करने का था। इसके साथ ही लोगों और उपक्रमों को अधिक मुक्त और तीव्र संचार की आवश्यकता थी। आज हमें भी इसकी आवश्यकता है।
- सरकार, न्यायपालिका, प्रेस और उपभोक्ताओं को भी यह समझना और स्वीकार करना होगा कि दूरसंचार संकट फंसे हुए कर्ज की व्यापक समस्या का हिस्सा है। इसका संबंध एनपीए और बैंकिंग से है जो अचल संपत्ति और विनिर्माण, बिजली और सड़क तथा स्थिर और अनुमन्य करों से जुड़ा है। सरकार द्वारा भुगतान में देरी और कर आतंक पर रोक लगनी चाहिए। यथास्थिति बरकरार रखने से समस्या हल नहीं होगी। दूसरी बात यह कि जमा लेने वाले संस्थानों को भारतीय रिजर्व बैंक का नियमन मानना चाहिए। संकटकाल में विशेषज्ञता और क्षमता के साथ तत्काल कदम उठाने चाहिए ताकि परिसंपत्तियों और परिचालन का बचाव किया जा सके। जैसा सत्यम या आईएलऐंडएफएस के साथ हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि जमाकर्ताओं और कर्जदाताओं का काफी पैसा फंसा होता है। पंजाब ऐंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक जैसी अफसरशाही प्रक्रियाओं में परिणाम एक और जॉम्बी बैंक के रूप में सामने आता है जहां जीवित रहने के लिए जमाकर्ताओं का धन प्रयोग में लाया जाता है।
- कमेटी का ध्यान नकदी प्रवाह, उसकी आवक और समय पर रहना चाहिए, न कि केवल रियायती आवक के तात्कालिक मूल्य पर। रोजगार का मुद्दा एक वैध चिंता है लेकिन इसमें स्थायित्व होना जरूरी है। इसके लिए समय पर पैसे की आवक आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं होता है तो समय पर नकदी समर्थन आदि की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि बिना स्थायी नकदी के सब्सिडी बरकरार रखना मुश्किल है। कुछ समस्याओं से निपटने के लिए नीतियों में विधायी बदलाव करना होता है।
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बीएसएनएल और एमटीएनएल
- बीएसएनएल और एमटीएनएल की बात करें तो एक हालिया आलेख यह बताता है कि क्योंकि इनमें नई जान फूंकने की कवायद बेमानी हो सकती है। इन कंपनियों पर हद से ज्यादा कर्ज है। सरकारों ने एयर इंडिया की तरह इनका इस्तेमाल भी बाजार बिगाडऩे के लिए किया है। इसके चलते छिड़ी कीमतों की जंग ने पूरे उद्योग को औंधे मुंह कर दिया। एक विकल्प आकार कम करना और नया कौशल प्रदान करना है। या फिर शायद दोनों काम करने की आवश्यकता है। सुरक्षा और जनहित दोनों को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया जाना चाहिए। इनका संचालन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाना चाहिए। इससे ऐसी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी जिसमें स्पेक्ट्रम आवंटन बिना नीलामी के उपयोग आधारित भुगतान पर किया जा सकेगा। इसके अलावा वाईफाई को 60 गीगाहट्र्ज और 6 गीगाहट्र्ज तक विस्तारित किया जा सकेगा।
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कमजोर वित्तीय तंत्र
- समिति को वित्तीय संस्थानों को मजबूत बनाने की आवश्यकता पर बल देने की जरूरत है। वित्तीय तंत्र उत्पादक गतिविधियों के लिए दूसरे दर्जे का बुनियादी ढांचा मुहैया कराता है। उन्हें पर्याप्त बुनियाद की आवश्यकता होती है जिसमें संचार, ऊर्जा, पानी कचरा, सीवेज परिवहन आदि की उचित व्यवस्था हो। घर, सुरक्षा और कानून व्यवस्था तो हैं ही। हालांकि हममें से अधिकांश लोग इसे हल्के में लेते हैं लेकिन इसमें दो राय नहीं कि ये बहुत अहमियत रखते हैं। सामाजिक अव्यवस्था और आर्थिक अपर्याप्तता के चलते इनके लिए जोखिम उत्पन्न हो गया है। इसके अलावा बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा आदि भी जरूरी हैं। तभी इन क्षेत्रों में प्रशिक्षित लोग काम कर पाएंगे।
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- कुछ वर्ष पहले तक कमजोर बुनियादी ढांचे के बावजूद वित्तीय तंत्र हमारी असल ताकत था। हालांकि एनपीए की बढ़ती घटनाओं के कारण यह समय-समय पर नष्ट भी होता रहा। हालांकि इस क्षेत्र की पेशेवर क्षमता में मजबूती थी जिसने दबाव के बावजूद इसे थामे रखा। समय बीतने के साथ-साथ इन संस्थानों में गिरावट आई। इसमें अन्य बातों के अलावा ऋण की गुणवत्ता और एनपीए भी वजह था। अनुपालन में कमजोरी के कारण धोखाधड़ी के मामले पकड़े नहीं जा सके। इस दौरान नोटबंदी भी हुई और बीमा योजनाएं बेचने के दबाव ने भी असर दिखाया। सरकारों को इन चीजों को समझते हुए पेशेवर रुख उत्पन्न करना होगा।
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समिति के दायरे का विस्तार करके दूरसंचार और डिजिटलीकरण के ऐसे लक्ष्य तय किए जा सकते हैं जो संचालन, उद्योग और उपयोगकर्ताओं के हित में हों। इस दिशा में काम करते हुए चीन तथा स्वीडन जैसे देशों से सीख ली जा सकती है। इसके साथ ही लिंकेज और एनपीए की समस्या से निपटा जा सकता है। शायद ऐसा करके हम मौजूदा गतिरोध वाले राजनीतिक रुख से दूरी बना पाएं।