Moodies has upgradad Indian Rating this will bound have positive impact on Indian Economy
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वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने जब हाल में भारत की रेटिंग में 13 वर्षों बाद सुधार किया तो इसे एक उपलब्धि के तौर पर इसलिए देखा गया, क्योंकि इससे पहले इस एजेंसी ने भारत की रेटिंग में तब सुधार किया था जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। मनमोहन सिंह के दस वर्षों के पूरे कार्यकाल में भारत की रेटिंग जंक से बस थोड़ा ही ऊपर थी।
Criteria for Rating:
रेटिंग एजेंसियां दरअसल कई मानदंडों पर किसी देश की क्षमताओं का आकलन करती हैं। उदाहरणस्वरूप ये एजेसियां :
- संबंधित देश की कर्ज चुकाने की क्षमता को मापती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि किसी देश में निवेश करने में कितना जोखिम है और आने वाले समय में यह कितना और बढ़ या घट सकता है, इसका अंदाजा अधिकांश निवेशक देश की रेटिंग देखकर ही लगाते हैं।
मूडीज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेटिंग देने वाली प्रमुख एजेंसियों में से एक है। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स और फिच भी ऐसी ही प्रमुख एजेंसियां हैं और माना जा रहा है कि जब ये एजेंसियां भी भारत को लेकर अपना नया अनुमान जारी करेंगी तो यकीनन उसमें कुछ सुधार नजर आएगा।
Impact of upgradation:
- इन एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली रेटिंग और विश्लेषण वैश्विक पूंजी बाजार पर काफी असर रखते हैं। ऐसे में भारत की रेटिंग का बेहतर होना आर्थिक दृष्टि से एक अच्छी खबर है जिसका असर न सिर्फ देश में निवेश पर पड़ेगा, अपितु भारतीय उद्यमों के लिए पूंजी भी सस्ती होगी।
रेटिंग में यह सुधार कोई अकेला वाक्या नहीं है। केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार द्वारा किए जा रहे संरचनात्मक सुधार भी अपना असर दिखाना शुरू कर रहे हैं। विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता सूची में भी भारत की स्थिति में 30 स्थान का सुधार आया है। विश्व बैंक का ही लॉजिस्टिक इंडेक्स दर्शाता है कि भारत में सामान को एक स्थान से दूसरी जगह लाना और ले जाना कितना आसान और सस्ता हो गया है। इस इंडेक्स में भी 19 स्थानों का सुधार हुआ है। विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक प्रतिस्पर्धा सूचकांक में भारत 32 स्थान ऊपर आया है जो दर्शाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से अधिक दक्ष हुई है। विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की आर्थिक प्रक्रिया में नई खोजें और नवीनीकरण में 21 स्थानों का सुधार हुआ है और यह सब पिछले दो वर्षों के दौरान हुआ है।
मूडीज ने भारत की रेटिंग सुधार के जो कारण बताए है
- वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी भी ऐसा ही निर्णय था जो दशकों से लटका हुआ था। यह आजादी के बाद सबसे बड़ा कर सुधार माना जा रहा है। इसने न सिर्फ अलग-अलग प्रकार के दर्जनों करों को समाप्त करके कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे देश को आर्थिक रूप से एकीकृत कर दिया, बल्कि कच्चे-पक्के बिल का खेल खत्म करके टैक्स चोरी पर अंकुश भी लगाया। इसके अलावा सरकार द्वारा मौद्रिक नीति ढांचे में किए गए सुधार भी है। भले ही आरबीआइ के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को दूसरा कार्यकाल नहीं देने के आधारहीन विवाद में अखबारों से लेकर खबरिया चैनलों की बहस में बहुत वक्त बर्बाद किया गया हो, लेकिन सरकार ने 2016 में एक मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी बनाकर देश की मौद्रिक नीति को और व्यवस्थित किया है। इसे सिर्फ आरबीआइ गवर्नर पर निर्भर न बनाकर छह सदस्यीय विशेषज्ञ समिति के अधीन कर दिया है।
- इसके साथ ही लचीला मुद्रास्फीति ढांचा अपनाकर मौद्रिक नीति को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार अधिक पारदर्शी और दक्ष बनाने का काम किया है। आज चार प्रतिशत से कम की महंगाई दर कई वर्षों के निचले स्तर पर है और विदेशी निवेश आजादी के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर। इसके साथ ही मूडीज ने आधार और प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण यानी डीबीटी को भी एक सफल नीति बताया है। इसने भ्रष्टाचार और कालाबाजारी पर लगाम कसकर सरकारी घाटे को कम करने में अहम भूमिका निभाई है। मोदी सरकार गैस सिलेंडर पर सब्सिडी को पूरी तरह समाप्त करने की तैयारी कर रही है। गैस बाजार मूल्य पर खरीदिए और सब्सिडी के लिए योग्य लोगों के बैंक खाते में रुपया सीधे आ जाएगा। इसने गैस सिलेंडर की कालाबाजारी रोकी है और सरकारी महकमे में भ्रष्टाचार के रास्ते कम किए हैं। आधार ने फर्जी लाभार्थियों को तंत्र से बाहर निकालने का महत्वपूर्ण काम किया है।
- आधार, डिजिटल इंडिया और बैंक में सीधे रुपया भेजने की नीति के अंतर्गत सरकार ने अभी तक करीब 780 अरब रुपये सीधे जनता के बैंक खातों में भेजे हैं और धोखाधड़ी और अपव्यय में बह जाने वाले 580 अरब रुपये बचाए हैं। इससे केंद्र के राजकोषीय घाटे पर लगाम लगी है जो कि अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए आवश्यक है। जाहिर है कि आधार, डिजिटल इंडिया, बैंक खातों के जरिये आर्थिक लेन-देन को बढ़ावा देने की सरकार की नीति तमाम लोगों की आंखों में खटकने लगी है और ‘गरीब जनता’ के नाम पर सरकार पर ऐेसे राजनीतिक हमले भी शुरू हो गए हैं कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को डुबो रही है। लगता है कि जो 580 अरब रुपये सीधे तौर पर सरकार ने भ्रष्टाचार और अपव्यय से बचाए हैं उससे काले धन पर निर्भर न जाने कितनों का हाल बेहाल हो गया है। इसकेसाथ ही काले धन और बेनामी संपत्ति के विरुद्ध कार्रवाई और नोटबंदी जैसे कदम भी उठाए गए। नोटबंदी ने बताया कि देश के मात्र .011 प्रतिशत लोगों के पास ही देश का 33 प्रतिशत कैश था। नोटबंदी के बाद वे इसे बैंक में जमा करने पर मजबूर हुए। इसमें से 3.5 लाख करोड़ रुपये जांच के दायरे में हैं। इस कदम को भी एजेंसी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में औपचारिक क्षेत्र को बढ़ाने वाला माना है। इससे आने वाले वक्त में अधिक से अधिक आर्थिक गतिविधियां कानून और कर के दायरे में आएंगी जिससे सरकार के पास जनकल्याण की परियोजनाओं पर अधिक खर्च करने के बावजूद घाटा नियंत्रण में रहेगा।
- हाल में सरकार द्वारा बैंकों का पुनर्पूंजीकरण भी रेटिंग सुधार का एक बड़ा कारण रहा।
दशकों की गलत नीतियों और भ्रष्टाचार के कारण अप्रत्याशित रूप से बढ़ी गैर निष्पादित आस्तियों यानी एनपीए से जूझ रहे बैंक भी उद्योग-धंधों को पूंजी देने से कतरा रहे थे और अर्थव्यवस्था में सरकार की कोशिशों के बाद भी निवेश ऊपर नहीं उठ पा रहा था। इसके साथ ही सरकार ने देश में पहली बार दीवालियेपन से जूझ रही कंपनियों और उनके देनदार-लेनदारों के मुद्दे सुलझाने के लिए स्पष्ट और आधुनिक कानून बनाया है जिससे बैंकों को ऐसे हालात से दोबारा न गुजरना पड़े। कुल मिलाकर मूडीज के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था उन्नत-पथ पर अग्र्रसर है और 2018 से ही 7.5 प्रतिशत से अधिक विकास-दर हासिल कर लेगी। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि केंद्र सरकार के स्तर पर तो काफी सुधार हुआ है, लेकिन राज्य सरकारों की रीति-नीति अभी भी गैरजिम्मेदार ही है जो अर्थव्यवस्था को नीचे खींच रही है। इसके साथ ही इसे भी काफी महत्वपूर्ण बताया गया है कि भूमि-सुधार और श्रम-सुधार कितनी तेजी से आगे बढ़ते हैं। इस मामले में भी राज्यों को सक्रियता दिखाने की जरूरत है