भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फंसे हुए कर्ज के निस्तारण का एक नया खाका पेश किया है जो ऋण चुकाने में चूक करने वाले बैंकों और कंपनियों की मुश्किल बढ़ा सकता है।
CHANGES
फंसे हुए कर्ज के निपटान से संबंधित मौजूदा योजनाएं मसलन स्ट्रैटेजिक डेट रिकंस्ट्रक्चरिंग स्कीम (एसडीआर) और स्कीम फॉर सस्टेनेबल स्ट्रक्चरिंग ऑफ स्ट्रेस्ड ऐसेट्स (एस4ए)आदि इस नई व्यवस्था में शामिल होंगी।
यह व्यवस्था इन्सॉल्वेंसी ऐंड बैंगक्रप्टसी कोड (आईबीसी) 2016 को प्रमुखता देती है और ज्वाइंट लेंडर्स फोरम की अवधारणा को खारिज करती है। फंसे हुए कर्ज के निपटान से संबंधित यह नया खाका अपरिहार्य था क्योंकि अब देश में एक दिवालिया कानून है और इससे निपटने संबंधी पिछली योजनाएं बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहीं। हर कोई जानता है कि कई बैंक और कॉर्पोरेट कर्जदार इनका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते थे।
दूसरा बड़ा बदलाव है फंसे हुए कर्ज की समय पर पहचान के लिए ध्यान केंद्रित करना और ऐसी परिसंपत्तियों का तेजी से निस्तारण करना। अब जबकि ज्वाइंट लेंडर्स फोरम भी नहीं है तो आरबीआई के नए दिशानिर्देशों की मांग है कि बैंक फंसे कर्ज वाले खातों की पहचान तत्काल करें
। बैंकों से यह अपेक्षा है कि वे ऐसे खातों का अलग से उल्लेख करेंगे, आरबीआई को उनके बारे में जानकारी देंगे और सीधे निस्तारण प्रक्रिया की शुरुआत करेंगे।
केंद्रीय बैंक ने देनदारी में चूक के मामलों की रिपोर्टिंग को तिमाही के बजाय मासिक कर दिया है। देनदारी में चूक करने वाले जिन संस्थानों का डिफॉल्ट 5 करोड़ रुपये से अधिक होगा उन्हें साप्ताहिक आधार पर रिपोर्ट करना होगा। मामला केवल जल्दी जानकारी देने का नहीं है बल्कि इस पर तेजी से कार्रवाई भी करनी होगी।
आरबीआई ने यह भी स्पष्ट किया है कि जैसे किसी एक बैंक में या संयुक्त रूप से किसी कर्जदार के खाते में डिफॉल्ट होगा, तत्काल उससे निपटने की प्रक्रिया आरंभ करनी होगी। दूसरे शब्दों में कहें तो बैंकों को निस्तारण प्रक्रिया करनी ही होगी।
आरबीआई ने इसके लिए स्पष्ट समय सीमा तय कर दी है। एक मार्च के बाद निस्तारण प्रक्रिया के नतीजे छह महीने के भीतर आने ही होंगे। अगर इससे अधिक समय लगता है तो 15 दिन के भीतर दिवालिया प्रक्रिया की शुरुआत कर दी जाएगी। अंतिम जानकारी के मुताबिक सितंबर 2017 तक सूचीबद्ध भारतीय बैंकों का फंसा हुआ कर्ज 8.40 लाख करोड़ रुपये था। इतने ऊंचे स्तर के फंसे हुए कर्ज ने बैंकिंग व्यवस्था की नया कर्ज देने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया। इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर हुआ।
नया खाका अल्पावधि में कई बैंकों के लिए दिक्कत पैदा करेगा और कर्जदारों के लिए चुनौती लेकर आएगा। उदाहरण के लिए निस्तारण योजना पेश करने की तय मियाद का अर्थ है बड़ी तादाद में खाते दिवालिया प्रक्रिया में जाएंगे।
बैंकों के मूल्यांकन में कमी और कुछ खातों के नकदीकरण की संभावना भी बढ़ जाएगी। इसके अलावा बड़े खातों के मामले में पुनर्गठन की किसी भी योजना पर सभी शामिल बैंकों को सहमत होना होगा। यह आसान काम नहीं होगा क्योंकि अनुभव बताता है कि ऐसा बहुत ही मुश्किल से होता है। आरबीआई को इस पहलू पर नए सिरे से विचार करना पड़ सकता है।
लंबी अवधि के दौरान यह संशोधित ढांचा बेहतर काम करेगा क्योंकि अभी भी यह प्रक्रिया फंसे हुए कर्ज की समस्या को हल करने के लिए एक वर्ष का वक्त देती है। शुरुआती छह महीने का वक्त निस्तारण योजना के क्रियान्वयन के लिए और उसके बाद 270 दिन की अवधि आईबीसी के अधीन। चूंकि इससे पहले की निस्तारण प्रक्रिया अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी इसलिए आरबीआई को इस आवश्यक सुधार को अंजाम देने के लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए।
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