अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए मजबूत हो दूरसंचार

This  article is about strengthening Telecom service in India and what steps to be taken in this regard

#Business_Standard

इसमें दो राय नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था कई दिक्कतों से दो-चार है। वह दिशाहीन और गतिहीन भी हो चुकी है। इसके लिए मौजूदा सरकार के कुछ कदम तो जिम्मेदार हैं ही, साथ ही कुछ चीजें विरासत में भी मिली हैं। उदाहरण के लिए पिछली सरकार के आत्मसंतोष, घोटाले और विपक्ष की जिद इसके लिए जिम्मेदार है। इसकी वजह से संसदीय प्रक्रिया को ठेस लगी। इसके बाद आई नई सरकार भी हालात को उस कदर संभाल नहीं पाई जैसी कि उससे अपेक्षा थी। बहरहाल आरोप-प्रत्यारोप से कोई फायदा नहीं है। बल्कि कोशिश यह होनी चाहिए कि आगे सुधार को अंजाम दिया जा सके।

What to be done?

कुछ कदम ऐसे हैं जिनको तत्काल उठाए जाने की आवश्यकता है लेकिन हम शायद उनको टाल रहे हैं। मूलभूत बुनियादी ढांचा हमारी तात्कालिक आवश्यकता है। इसके अलावा सामाजिक संस्थानों और नेतृत्व को भी एकीकृत करने की आवश्यकता है। जरूरत इस बात की है कि कुछ सामान्य व्यवस्थाएं निर्मित की जाएं और संरचनात्मक, उत्पादक गतिविधियों को अंजाम दिया जाए। हालांकि इसमें समय लगेगा और ऐसा करना आसान भी नहीं होगा।

  • बुनियादी ढांचा क्षेत्र में ब्रॉडबैंड सबसे जल्दी और सबसे तेज प्रतिफल प्रदान कर सकता है।
  • इसके लिए ऐसी नीतियां अपनानी होंगी जो अपने आप पर थोपे गए प्रशासनिक प्रतिबंधों के बजाय मौजूदा संसाधनों को उचित पहुंच दे पाएं। इसके अलावा ऊर्जा, पानी और सीवेज तथा परिवहन आदि के क्षेत्र में काम करना काफी जटिल है।
  •  इन कामों में पूंजी भी बहुत ज्यादा लगेगी। इतना ही नहीं बेहतर संचार सहयोग के साथ अन्य बुनियादी सुविधाओं का निर्माण और प्रबंधन करना भी आसान हो जाएगा।

Is government doing something in this regard

  • प्रथम द्रष्टïया तो यही प्रतीत होता है कि सरकार ऐसा कर रही है। उदाहरण के तौर पर तीन महीने पहले एक अंतर मंत्रालय समूह (आईएमजी) का गठन किया गया जिसे ऋणग्रस्त दूरसंचार क्षेत्र को निजात दिलाने संबंधी हल सुझाने थे।
  • अंतरिम रिपोर्ट से कोई अच्छे संकेत नहीं निकलते। इसमें सुझाव दिया गया है कि किसी बड़े नीतिगत बदलाव की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सुधार के संकेत मिल रहे हैं। दुर्भाग्य की बात है कि आईएमजी की अंतिम अनुशंसा भी ऐसी ही है। उसने स्पेक्ट्रम और लाइसेंस शुल्क भुगतान को 10 वर्ष के बजाय 16 वर्ष कर दिया है और ब्याज दरों में करीब 2 फीसदी की कमी कर दी है। बहरहाल लाइसेंस शुल्क या स्पेक्ट्रम शुल्क में कोई कमी नहीं की गई है, ही समावेशन के लिए स्पेक्ट्रम की सीमा शिथिल की गई है। अंतरसंबंधित शुल्क का निर्धारण दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) करेगा और स्पेक्ट्रम नीलामी को अप्रैल 2018 के बाद अंजाम दिया जाएगा। परंतु अत्यधिक नकदी और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा वाले इस क्षेत्र में पूंजी की आवश्यकता को कुछ और महीने तक टालने तथा अन्य प्रस्तावित उपायों से हालात में कोई बदलाव नहीं आएगा।
    क्या इससे दूरसंचार क्षेत्र में सुधार आएगा? मुझ समेत कई पर्यवेक्षकों और सेवाप्रदाताओं को लगता है कि ऐसा नहीं होगा। नीचे दी गई वजहों से यह प्रश्न उठता है कि क्या आईएमजी ने अपनी अनुशंसाएं पूरी जानकारी के आधार पर कीं या फिर क्या उनको हकीकत का पूरा अंदाजा था।

बड़े बदलाव क्यों आवश्यक?

  • कड़े नीतिगत कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है।
  •  स्ट्रेटजी ने सुझाव दिया कि विकसित देशों की दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियों का डाटा सेवाओं पर मार्जिन नकारात्मक है। यह भारत के लिए अहम है। क्योंकि एक तो हमें नेटवर्क और डिलिवरी क्षेत्र में अहम वृद्घि की आवश्यकता है, दूसरा यह व्यवहार्य है और तीसरा इसके बावजूद इसमें स्थायित्व है और नकदी की आवक सकारात्मक है।
  • हकीकत यह है कि पहले से संकटग्रस्त इस क्षेत्र का राजस्व सन 2016 में रिलायंस जियो के आगमन के बाद तेजी से गिरा है। इसके साथ ही सरकार का लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क भी कम हुआ है। इस क्षेत्र की बात करें तो रिलायंस जियो ने पूरे बाजार में उथलपुथल मचाने के बावजूद जून 2017 तक के छह माह के लिए केवल 47.81 करोड़ रुपये की राशि लाइसेंस और स्पेक्ट्रम शुल्क के रूप में चुकाई। यह सेवाप्रदाताओं के कुल भुगतान के एक फीसदी से भी कम था क्योंकि उसका राजस्व कम रहा। इसके विपरीत भारती एयरटेल ने 2,902.75 करोड़ रुपये, वोडाफोन ने 2005.25 करोड़ रुपये और आइडिया सेल्युलर ने 1677.67 करोड़ रुपये चुकाए। इस नीति ने इस क्षेत्र को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया क्योंकि राजस्व और सरकारी संग्रह में तेजी से गिरावट आई। इससे बुनियादी ढांचा कमजोर पड़ा।
  • यद्यपि केवल उच्च सरकारी राजस्व को मानक मानना भी ठीक नहीं है।
  •  स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स की एक रिपोर्ट में राजस्व में इस वर्ष 10 फीसदी गिरावट का अनुमान है। लेकिन यह तो केवल एक पहलू है। बाजार की हालत लगातार खराब रहने वाली है। परिचालन राजस्व और सरकारी संग्रह में कमी उसे प्रभावित करेगी।
  • इन तमाम वजहों से उद्योग की क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है जबकि देश को बेहतर प्रदर्शन और पहुंच की आवश्यकता है क्योंकि देश में करीब 30 करोड़ डाटा ग्राहक हैं। पर्याप्त नेटवर्क पहुंच का निर्माण करना होगा केवल तभी शिक्षा, स्वास्थ्य और मनोरंजन की सरकारी और वाणिज्यिक जरूरतें पूरी की जा सकेंगी।
  • केवल सरकार ही उचित नीतियां और नियम विकसित कर सकती है। सन 1997-98 में इस क्षेत्र में ठहराव के बाद तत्कालीन राजग सरकार ने सन 1999 में दूरसंचार नीति की मदद से एक राजस्व साझेदारी व्यवस्था की थी। शुुरुआत में सरकार की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा थी लेकिन बाद में इसमें कमी की गई और प्रतिस्पर्धा बढ़ाई गई। मोबाइल टेलीफोनी में तेज इजाफा हुआ और इसके साथ ही सरकारी राजस्व भी बढ़ा। ब्रॉडबैंड में भी वैसी तेजी लाने के लिए हमें तत्काल कुछ नीतिगत कदमों की आवश्यकता है:
  • लागत कम करने के लिए बुनियादी संरचना साझा करना। इसके लिए दो-तीन कंपनियों का समूह बने ताकि प्रतिस्पर्धा हो। इनकी निगरानी सरकार के पास रहे। उदाहरण के लिए स्वीडन का 70 फीसदी हिस्सा टेलीनॉर और एचआई3जी के साझा नेटवर्क से आच्छादित है। इसे बड़े शहरों के बाहर साझा किया जाता है। साझा नेटवर्क के लिए उपकरण उपलब्ध हैं। हमें केवल नीतियों की आवश्यकता है।
  •  स्पेक्ट्रम को एक साझा सार्वजनिक संसाधन बनाया जाए। आवंटित स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंसशुदा सेवाप्रदाताओं और विनिर्माताओं और डेवलपरों को द्वितीयक पहुंच (प्राथमिक धारक को प्राथमिकता दी जाती है) उचित राजस्व-साझेदारी वाली कीमत पर दी जाए वह भी बिना शुल्क के। इसकी शुरुआत बिना इस्तेमाल के टीवी की बची हुई फ्रीक्वेंसी से की जाए।
  • वाईफाई के लिए वैश्विक मानकों के अनुरूप स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाए।
    ऐसा करने से स्पेक्ट्रम और नेटवर्क का अधिकतम इस्तेमाल संभव होगा। यह आज की तरह कृत्रिम प्रतिबंधों वाला नहीं होगा। बेहतर नेटवर्क और सेवाओं से हम सभी लाभान्वित होंगे। इसके साथ ही सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा।

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