बेअसर होता विश्व व्यापार संगठन
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इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि विभिन्न अमरीकी राष्ट्रपतियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कोई 71 वर्षों तक जिस वैश्विक व्यापार, पूंजी प्रवाह और कुशल श्रमिकों के लिए न्याययुक्त आर्थिक व्यवस्था के निर्माण और पोषण में योगदान देकर विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) को आगे बढ़ाया, अब वही डब्लूटीओ उसी अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के निर्णयों से जोखिम में है। डब्लूटीओ के अस्तित्व और उपयोगिता का प्रश्न सामने है।
- भारत सहित विकासशील देशों के करोड़ों लोग अनुभव कर रहे हैं कि डब्लूटीओ के बावजूद विकासशील देशों का शोषण हो रहा है।
- अमरीका के संरक्षणवादी रवैये से वैश्विक व्यापार युद्ध लगभग शुरू हो चुका है।
- वर्ष 2018 की शुरुआत से अब तक अमरीका ने चीन, मैक्सिको, कनाडा, ब्राजील, अर्जेंटीना, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, यूरोपीय संघ के विभिन्न देशों के साथ-साथ भारत की कई वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाए हैं। जवाब में प्रभावित देश भी आयात शुल्क बढ़ाने को मजबूर हैं। अमरीका ने भारत के स्टील व एलुमिनियम पर शुल्क बढ़ाया, तो भारत ने भी मेवे, झींगा, सेब, फास्फोरिक एसिड, स्टील क्षेत्र समेत कुल 29 अमरीकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाया।
अमरीका ने कनाडा के क्यूबेक सिटी में जी-7 शिखर सम्मेलन के बाद समझौते को नामंजूर कर और जी-7 सदस्य देशों से कुछ आयातों पर नए व्यापारिक प्रतिबंध घोषित कर वैश्विक व्यापार युद्ध के दरवाजे पर एक और दस्तक दी। 23 जून को ट्रंप प्रशासन ने इबी-5 निवेशक वीजा कार्यक्रम बंद करने का प्रस्ताव कांग्रेस के सामने रखा। ट्रंप सरकार का आरोप है कि इस वीजा के जरिए विदेशियों द्वारा अमरीका में फर्जीवाड़ा करने की घटनाएं बढ़ रही है। इसी तरह, 16 जून को ब्रिटिश सरकार ने आव्रजन नीति में बदलाव से संबंधित प्रस्ताव संसद में पेश किया। इसमें भारत को छोडक़र 25 देश शामिल किए गए, जिनके छात्रों को टियर-4 वीजा श्रेणी में ढील दी जाएगी। आयातित वस्तुओं पर शुल्क का मसला हो या सेवा क्षेत्र में प्रतिभाओं के कदमों को रोकने के लिए वीजा संबंधी नियमों को लेकर विकसित देशों के अन्याययुक्त फैसलों का, डब्लूटीओ प्रभावी साबित नहीं हो पा रहा है। विभिन्न देशों को चाहिए कि डब्लूटीओ के मंच से ही वैश्वीकरण के दिखाई दे रहे नकारात्मक प्रभावों का हल निकालें। ऐसा नहीं हुआ तो दुनियाभर में विनाशकारी व्यापार लड़ाइयां ही 21वीं सदी की हकीकत बन जाएंगी।