- एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बीते चार सालों में केवल 36 लाख सालाना की दर से ही रोजगार पैदा हो पाए हैं. वहीं लेबर ब्यूरो के अनुसार अर्थव्यवस्था में आठ फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले संगठित क्षेत्र में 2014 से 2016 के बीच तीन लाख से भी कम की औसत से रोजगार पैदा हुए हैं.
- वित्त वर्ष 2014-15 में यह आंकड़ा 4.93 लाख का था जबकि इसके अगले दो साल यह आंकड़ा महज 1.55 और 2.31 लाख तक सिमटकर रह गया. हालांकि संगठित क्षेत्र के आकार और प्रधानमंत्री के वादे को देखते हुए इससे हर साल करीब 16 लाख रोजगार पैदा करने की जरूरत थी.
- भारतीय रिजर्व बैंक भी अपने एक अध्ययन में 2014 से 2016 के बीच कम रोजगार पैदा होने की बात मान चुका है. वहीं नोटबंदी और जीएसटी के चलते 2016 के अंत से अब तक असंगठित क्षेत्र में भी रोजगार की संभावनाएं नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई हैं. इसके अलावा पिछले चार साल में अर्थव्यवस्था के अपेक्षित गति से वृद्धि न करने से भी देश में बेरोजगारी का औसत प्रतिशत लगातार बढ़ा है|
Read More@ GSHINDI रोजगार (Job) सृजन: स्वतंत्र भारत में सरकार की प्राथमिकता
- अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार 2014 में देश में बेरोजगारी की दर 3.41 फीसदी थी जो अगले तीन सालों (2015, 2016 और 2017) में बढ़ते हुए 3.49, 3.51 और 3.52 फीसदी हो गई.
- हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली निजी एजेंसी सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी (सीएमआईई) के बेरोजगारी संबंधी आंकड़े आईएलओ से करीब एक फीसदी ज्यादा हैं. सीएमआईई यह भी कहती है कि अप्रैल 2018 में देश में 5.86 फीसदी बेरोजगारी थी. वैसे अर्थशास्त्रियों का मानना है कि किसी भी अच्छी अर्थव्यवस्था में चार फीसदी से ज्यादा बेरोजगारी ठीक नहीं होती है.