Society has big role to play to execute the idea of good governance.
#Amar_Ujala
What is good Governance?
राज्य के नागरिकों की सेवा करने की क्षमता का अर्थ ही सुशासन है। सुशासन के अंतर्गत वे सभी नियम व कानून प्रक्रियाएं, संसाधन एवं व्यवहार शामिल हैं, जिनके द्वारा नागरिकों के मसले व्यक्त किए जाते हैं, संसाधनों का प्रबंधन किया जाता है और शक्ति का प्रयोग किया जाता है। अर्थात राज्य द्वारा संसाधन एवं शक्ति का प्रयोग समाज के विकास एवं कल्याण के लिए किया जाता है। सुशासन को प्रभावी ढंग से लागू करने करने में राज्य / सरकार, बाजार एवं नागर समाज (सिविल सोसाइटी) की महत्वपूर्ण भूमिका है। नागर समाज के अंतर्गत गैर-सरकारी संगठन, नागरिक समाज के संगठन, मीडिया संगठन, एसोसिएशन, ट्रेड-यूनियन व धार्मिक संगठन आते हैं।
Role of Society to bring good Governance
सुशासन को अमल में लाने के लिए नागरिक समाज का अहम स्थान है, क्योंकि यही समाज की क्षमता में वृद्धि करते हैं और उसे जागरूक बनाते हैं। यही सरकार या राज्य को आगाह करते हैं कि कैसे नागरिकों की भागीदारी से उनका संपूर्ण विकास किया जाए। नागरिक समाज सामूहिकता को बढ़ावा देकर सहभागिता को सामाजिक जीवन का अंग बनाता है।
एनजीओ वे संस्थाएं होती हैं, जिनकी गतिविधि सरकारी या विदेशी संस्थाओं के सहयोग से चलती हैं। इन संस्थाओं को बढ़ावा देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सामान्यतः वे होते हैं, जिनका समाज से सरोकार होता है और वे अपने प्रारंभिक ‘करियर’ में सामाजिक कार्यकर्ता ही रहे। लेकिन बाद में एक संस्था बनाई, उसे पंजीकृत कराया और तीन वर्ष बिना कोई सरकारी या विदेशी सहायता लिए कार्य करते रहे, अक्सर झूठी-सच्ची ‘बैलेंस-शीट’ बनाते रहे और बाद में सरकारी अनुदान प्राप्त करने योग्य हो गए। ऐसी संस्थाएं सरकार एवं उसके नौकरशाहों से तालमेल करके अपनी गतिविधियां चलाती हैं। लेकिन देखने में यह आया कि ऐसी संस्थाओं में विचार तो होता है, लेकिन धार नहीं होती। संघर्ष करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। वे अधिकतर पीपीटी/लैपटॉप व हवाई-सफर में व्यस्त रहने में ही उलझकर रह जाते हैं।
Is government strengthening Civil Societies?
गैर-सरकारी संगठनों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन लोक-कार्यक्रम एवं ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास परिषद (कपार्ट) है। लेकिन तीन सितंबर,2013 को मंत्रिमंडल ने अपनी बैठक में कपार्ट को दो वर्ष के अंदर बंद करने का निर्णय लिया था। सरकार द्वारा ऐसा निर्णय लेना ही बहुत कुछ व्यक्त करता है कि कर्पाट का ‘कबाड़ा’ क्यों हुआ। इससे अधिक कुछ और कहने की जरूरत नहीं। इस समय जरूरत सामाजिक आंदोलनों की है। ग्रामीण समाज के लोग नेताओं एवं नौकरशाहों के रवैये से ऊब चुके हैं। वे चाह रहे हैं कि कोई उनको साथ लेकर चले। उनके साथ सहभागितापूर्ण कार्य करे। उन्हें हर कार्य में निर्णायक बनाए। वे केवल अपना मत देने तक ही सीमित न रहें।
गांवों में यदि वास्तव में विकास करना है, तो उसके लिए एनजीओ संस्कृति को बदलना होगा। हां, इन संस्थाओं का कार्य प्रशिक्षण देकर सामाजिक कार्यकर्ता बनाना तथा उच्च-स्तर की खोज एवं दस्तावेज तैयार करना हो सकता है। ग्रामीण समाज में जागरूकता और हाशिये के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए तो आंदोलन होना ही चाहिए, जिनमें वे लोग ही संचालक हों, वे ही संसाधन मुहैया कराएं एवं उसका निरीक्षण एवं मूल्यांकन करें। मताधिकार संघ इसका जीवंत उदाहरण है।
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